कबड्डी के ‘ रत्न ’ रतन लाल ठाकुर
रतन लाल ठाकुर स्कूल के समय वॉलीबाल, बास्केटबाल व एथलेटिक्स के साथ कबड्डी खेलते रहे। आर्मी से सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए बड़े भाई और सर्विसेज की ओर से प्रसिद्ध बॉक्सर रहे देवी राम ठाकुर को प्रेरणास्रोत मानते हुए और स्कूल में गुरु पीईटी कृष्ण लाल के नेतृत्व में उन्होंने कबड्डी में आगे बढ़ना शुरू किया…
एक शिष्य से गुरु तक का सफर तय करना सही मायने में सफलता की ऐसी कहानी होती है, जिसे गुरु-शिष्य के बेहद अतुलनीय व कर्णप्रीय दो ही शब्दों की जुबानी बड़ी ही शिद्दत के साथ किसी के भी साथ साझा किया जा सकता है। यह प्यार से भी प्यारा रिश्ता होता है। कबड्डी प्रशिक्षक रतन लाल ठाकुर के शिष्य से गुरु बनने की कहानी भी बड़ी ही रोचक व दिलचस्प है। सदर विस क्षेत्र के तहत सिकरोहा के तहत पड़ने वाले छोटे से सिल्हा गांव से निकलकर बुलंदियों तक पहुंचे रतन लाल इसे अपने माता-पिता व गुरुजनों का आशीर्वाद ही मानते हैं। सिल्हा गांव में दुर्गा राम ठाकुर व बुंदु देवी के घर पहली नवंबर 1964 को जन्मे रतन लाल ठाकुर ने राजकीय प्राथमिक पाठशाला सिकरोहा से पांचवीं तक की शिक्षा हासिल करने के बाद नम्होल उच्च विद्यालय से छठी से दसवीं तक ही शिक्षा ग्रहण की। स्कूल समय से ही खेलों में रुझान था।
स्कूल के समय वॉलीबाल, बास्केटबाल व एथलेटिक्स के साथ कबड्डी खेलते रहे। आर्मी से सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए बड़े भाई और सर्विसेज की ओर से प्रसिद्ध बॉक्सर रहे देवी राम ठाकुर को प्रेरणास्रोत मानते हुए और स्कूल में गुरु पीईटी कृष्ण लाल के नेतृत्व में कबड्डी खेल में आगे बढ़ना शुरू किया। 1981 में दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद लोकल स्तर पर खेलना शुरू किया और राज्य स्तर तक कबड्डी खेली। वर्ष 1987 में बिलासपुर स्थित साई खेल छात्रावास में चयन हुआ, जहां उनके गुरु नंदलाल ठाकुर के सान्निध्य में प्रशिक्षण प्राप्त किया। साई में प्रशिक्षण हासिल करते-करते पांच नेशनल टूर्नामेंट खेल लिए। इसके बाद 1988 में कबड्डी के इंडिया कैंप में सिलेक्शन हुई।
उसके बाद से लेकर कुल 16 नेशनल, 6 नॉर्थ जोन टूर्नामेंट और 10 बार ऑल इंडिया टूर्नामेंटों में भाग लेकर कई पदक जीते। 1988 में ही वेस्टर्न सेंटर गांधी नगर गुजरात स्थित एनआईएस में चयन हुआ और इसके बाद सफर शुरू हुआ एक प्रशिक्षक का। कबड्डी प्रशिक्षक बनने के बाद भी खेलना जारी रखा और साथ ही में नम्होल, जुखाला, दयोथ, कन्या विद्यालय कंदरौर के साथ ही जिला व प्रदेश स्तर की टीमों को भी प्रशिक्षण देना शुरू किया। पहली बार 1992 में उनके नेतृत्व में प्रदेश की लड़कियों ने राष्ट्रीय प्रतियोगिता में रजत पदक जीता। जिसमें सीमा, अजरा, भावना, मेनका व मोनिका जैसी खिलाड़ी शामिल रहीं। अपने इस कार्यकाल में प्रदेश की महिला व पुरुष टीमों को एक प्रशिक्षक के रूप में स्वर्ण, रजत व कांस्य जैसे करीब डेढ़ सौ से ज्यादा मेडल दिला चुके हैं। रतन लाल ठाकुर द्वारा प्रशिक्षित प्रदेश के करीब 40 खिलाड़ी इंडिया कैंप में भाग ले चुके हैं। 2012 में रितू नेगी जूनियर हिमाचल टीम की कप्तान बनी और मलेशिया में भारतीय टीम के लिए स्वर्ण पदक जीता। प्रियंका नेगी ने पांच बार भारतीय महिला कबड्डी टीम का प्रतिनिधित्व किया और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी का दर्जा हासिल किया। 2015 में प्रदेश की कबड्डी स्टार निधि ने अंतरराष्ट्रीय मैच में भाग लेकर देश के लिए रजत पदक प्राप्त किया। कबड्डी खेल के क्षेत्र में रतन लाल ठाकुर की उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें एमेच्योर कबड्डी फेडरेशन द्वारा हिमाचल कबड्डी संघ का संयोजक बनाया गया और 2017 में उन्हें संघ के सचिव पद पर नियुक्ति दी गई। इसके बाद भी उपलब्धियों का दौर ऐसा जारी रहा, जो आज तक जारी है।
इसी बीच कई जगहों पर युवाओं की कबड्डी खेल में रुचि को देखते हुए उन्हें अपने स्तर पर फ्री प्रशिक्षण भी दिया। जून 2000 में हिमाचल प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग में कोच नियुक्त हुए। 2007 में राज्य खेल छात्रावास बिलासपुर में नियुक्ति हुई। जिसके तहत 2007 में स्टेट होस्टल बिलासपुर की लड़कियों ने साई धर्मशाला को स्कूली स्टेट गेम्स में हराया। प्रदेश कबड्डी संघ का सचिव बनने के बाद अर्जित उपलब्धियां ऐसी हैं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता है। रतन लाल ठाकुर कहते हैं कि प्रदेश के युवाओं के लिए प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन कर युवाओं को इस खेल के प्रति जागरूक करना है। उनका सपना है कि प्रदेश के खिलाडि़यों को अर्जुन अवार्ड मिले और कबड्डी खेल और ज्यादा बुलंदियों तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि सचिव बनने के बाद से हासिल उपलब्धियों का श्रेय अंतरराष्ट्रीय कबड्डी संघ के अध्यक्ष जनार्दन सिंह गहलोत व एमेच्योर कबड्डी फेडरेशन ऑफ इंडिया की अध्यक्ष मृदुला भदौरिया को दिया है। रतन लाल ठाकुर वर्तमान में धर्मशाला साई खेल छात्रावास में सेवाएं दे रहे हैं।
-कुलभूषण चब्बा, बिलासपुर
जब रू-ब-रू हुए…
खेल नियमों में संशोधन करे हिमाचल…
किसी खिलाड़ी का प्रशिक्षक बनना किन बातों पर निर्भर करता है?
किसी भी खिलाड़ी का प्रशिक्षक बनना बहुत सी बातों पर निर्भर करता है। एक अच्छा खिलाड़ी ही एक बेहतर प्रशिक्षक हो सकता है। वह एक अच्छा व्यक्ति होना चाहिए। खेल की स्किल में मास्टर होना चाहिए। इसके साथ ही वह एक बेहतरीन डेमोंस्ट्रेटर भी होना चाहिए।
खुद को खिलाड़ी के रूप में अधिक सफल मानते हैं या एक कोच के रूप में सफलता का पैमाना बड़ा देखते हैं?
खुद को एक खिलाड़ी के रूप में सफल नहीं मानता हूं। हिमाचल कबड्डी टीम का कप्तान रहा हूं और इंडिया कैंप भी लगाया है, लेकिन इसके बावजूद कभी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी नहीं बन पाया। इसलिए स्वयं को एक कोच के रूप में सफल मानता हूं। क्योंकि प्रशिक्षक के रूप में कई खिलाड़ी तैयार किए, जिनमें से कई खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर के बने। करीब 50 खिलाडि़यों ने इंडिया कैंप लगाए और कई मेडल जीते।
वर्तमान दौर में हिमाचल के कबड्डी खिलाडि़यों का मूल्यांकन कैसे करेंगे?
वर्तमान दौर में प्रदेश के कबड्डी खिलाडि़यों का मूल्यांकन उनके खेल के हिसाब से ही करेंगे। एक खिलाड़ी में स्पीड, स्ट्रेंथ, लचीलापन, एडोरेंस और उनके शारीरिक व्यक्तित्व से ही उसका मूल्यांकन करेंगे।
कबड्डी के अलावा ऐसे कौन से खेल हैं, जिनके माध्यम से हिमाचल बेहतर प्रदर्शन कर सकता है?
कबड्डी के अलावा एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, वालीबाल, जूडो, वुशु, कुश्ती और शूटिंग में अच्छा प्रदर्शन किया जा सकता है।
क्या आप हिमाचल में वर्तमान खेल वातावरण से संतुष्ट हैं। कहां खामी दिखाई देती है। आपके सुझाव?
वर्तमान में प्रदेश में खेल के वातावरण से संतुष्ट नहीं हूं। प्रशिक्षकों की कमी नहीं होनी चाहिए और खिलाडि़यों को बेहतरीन सुविधाएं मिलनी चाहिएं। वहीं बेहतर कार्यों के लिए प्रशिक्षकों के लिए गुरु वशिष्ट अवार्ड शुरू करना चाहिए।
खेलों के जरिए रोजगार संभावनाओं और राज्य के दायित्व में कहां बढ़ोतरी देखते हैं?
खेलों के जरिए ही अब खिलाडि़यों को रोजगार भी मिल रहा है, लेकिन मेरा सुझाव है कि खिलाडि़यों के लिए आरक्षण का कोटा तीन से पांच फीसदी कर देना चाहिए।
हिमाचल की खेल अधोसंरचना की मौजूदा स्थिति पर आपकी राय। होना क्या चाहिए?
हिमाचल प्रदेश की खेल अधोसंरचना की मौजूदा स्थिति पर मेरी राय है कि प्रदेश के खेल नियम में संशोधन होना चाहिए और खिलाडि़यों की मेडल राशि में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए।
ग्रामीण व स्कूली खेलों की दिशा में हिमाचल के प्रयास व परिणाम किस तरह सफल हो पाएंगे?
ग्रामीण व स्कूली खेलों की दिशा में प्रयास व परिणामों को सफल बनाने के लिए पाठशालाओं में मोबाइल प्रशिक्षण शिविर लगाए जाएं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी इनका प्रयोग बड़े स्तर पर किया जाना चाहिए।
कबड्डी के राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कारपोरेट जगत के दखल व प्रो- कबड्डी जैसे लीग मुकाबलों से आप भविष्य की कैसी कल्पना करते हैं?
प्रो- कबड्डी लीग मुकाबलों से हम भविष्य की कल्पना कर सकते हैं कि हिमाचल प्रदेश से अधिक से अधिक खिलाड़ी प्रो-कबड्डी लीग में खेलेंगे। इससे खिलाडि़यों को जहां पैसा मिल रहा है, वहीं और उनमें उत्साह भी पैदा हो रहा है।
हिमाचल में खेलों को लेकर आपका कोई सपना और ऐसी कोई उपलब्धि जो आज भी आपको सम्मान दिलाती है?
प्रदेश में खेलों को लेकर मेरा यह सपना था और है कि राष्ट्रीय कबड्डी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त हो और अधिक से अधिक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार हों। मेरी यही उपलब्धियां मुझे आज प्रदेश व देश में सम्मान दिला रही हैं।
हिमाचली कबड्डी को जो खिलाड़ी और आगे ले जाएंगे, उनमें से आपके पसंदीदा हीरो कौन हैं?
मेरे कबड्डी खेल को और आगे ले जाने के लिए मेरे पसंदीदा खिलाडि़यों में अजय ठाकुर, महेंद्र बदरेल, विशाल भारद्वाज, विनित, सुरेंद्र, प्रियंका, ज्योति, निधि, पुष्पा, कविता, सुषमा व साक्षी ऐसे हैं जो प्रदेश कबड्डी के हीरो हैं। अजय ठाकुर को अगर अर्जुन अवार्ड मिलता है तो वह प्रदेश के अन्य खिलाडि़यों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेंगे।
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