गीता रहस्य

By: Feb 24th, 2018 12:05 am

 वेद का जो ज्ञान है, उसको न मानने के कारण ही समाज में भ्रांतियां फैल रही हैं। अतः भगवद्गीता के भी संपूर्ण सत्य अर्थ जानने के लिए हमें सर्वप्रथम वेदों के अध्ययन की आवश्यकता है क्योंकि श्रीकृष्ण महाराज ने भी सर्वप्रथम वेदों का ही अध्ययन किया था…

अतः हम ईश्वर के द्वारा, ईश्वर के बताए हुए गुण, कर्म, स्वभाव का ही चिंतन करें। अज्ञानवश मनुष्यों के द्वारा बताए हुए ईश्वर के गुणों का चिंतन करके दुख के भागी न बनें। श्रीकृष्ण महाराज ने भी ईश्वर के गुणों का यही वर्णन श्लोक 8/9 में किया है। वस्तुतः वेदों के अनुसार तो परमेश्वर की अनंत गुण है, यहां तो कुछ ही गुणों का वर्णन है। जैसा कि ‘कविम्’ का अर्थ है सर्वज्ञ अर्थात सबको जानने वाला। ‘पुराणम्’ का अर्थ अनादि है अर्थात अनंत बार यह सृष्टि रची गई, इसकी पालना हुई और नष्ट हुई। तब से ही ईश्वर चला आ रहा है और सदा ही रहेगा तथा सृष्टि की रचना, पालना और प्रलय के बाद पुनः रचनादि का क्रम अनादि है और अनंत है। इसी प्रकार ईश्वर भी अनादि है और अनंत है। ‘अणोः अणीयांसम्’ अर्थात परमाणु से भी अति सूक्ष्म तत्त्व है। इसी प्रकार अन्य शब्दों में श्रीकृष्ण महाराज ने परमेश्वर को मन, बुद्धि इंद्रियों से परे कहा है अर्थात मन और बुद्धि द्वारा जो ईश्वर का चिंतन होता है ईश्वर उतना ही नहीं है, उससे कहीं अधिक है। श्रीकृष्ण महाराज ने इन ‘अणोः अणीयांस’ शब्दों को भी अथर्ववेद मंत्र 10/8/25 के भाव को लेकर प्रस्तुत किया है। यह अथर्ववेद मंत्र कहता है ‘एकम’ एक तत्त्व ‘बालात’ एक बाल से भी ‘अणियस्कम’ अधिक सूक्ष्म है। अर्थात वह परमात्मा सूक्ष्म से भी अतिसूक्ष्म होकर प्राणियों के भीतर रम रहा है। इन वेदों के वचन और इन वचनों से लिए हुए श्रीकृष्ण महाराज के श्लोक 8/9 में कहे गए शब्द उस निराकार सर्वशक्तिमान, संसार के रचयिता, सर्वव्यापक परमेश्वर की महिमा गा रहे हैं और श्रीकृष्ण महाराज श्लोक 8/9 के अंत में  कह रहे हैं ‘अनुस्मरेत’ अर्थात वेदाध्ययन के बाद इन्हीं गुणों वाले परमेश्वर का जो भी ध्यान, स्मरण करता है, वह इस परमेश्वर को पा जाता है। अतः स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण महाराज स्वयं परमात्मा नहीं है। वह तो भगवद्गीता में परमेश्वर के अलौकिक वेदों में वर्णन किए हुए गुणों का ही व्याख्यान कर रहे हैं।  वेद का जो ज्ञान है, उसको न मानने के कारण ही समाज में भ्रांतियां फैल रही है। अतः भगवद्गीता के भी संपूर्ण सत्य अर्थ जानने के लिए हमें सर्वप्रथम वेदों के अध्ययन की आवश्यकता है क्योंकि श्रीकृष्ण महाराज ने भी सर्वप्रथम वेदों का ही अध्ययन किया था, उसके पश्चात ही उनके मुख से वेदों का ज्ञान अर्जुन को धर्मयुद्ध की प्रेरणा देने के लिए निकलता था।


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