ठोस परियोजनाओं की नींव डाले बजट

By: Feb 22nd, 2018 12:10 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

बजट में प्रतिवर्ष कम से कम एक हजार करोड़ रुपए के प्रावधान के साथ न्यूनतम तीन मेगा परियोजनाओं को 2022 के चुनावों से पहले जमीन पर साकार किया जाए। इस रणनीति पर सरकार आगे बढ़े तो अगले पांच वर्षों में 15 बड़ी परियोजनाओं के द्वारा रोजगार के नए क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है…

हिमाचल प्रदेश के वित्त विभाग ने पिछली परंपरा के अनुसार किसानों, बागबानों, डेयरी एवं उद्योग संगठनों से जुड़े लोगों, पर्यटन कारोबारियों और जनसाधारण से 2018-19 के बजट के लिए अपनी वेबसाइट पर सुझाव आमंत्रित किए हैं। इस बार एक कदम आगे बढ़ते हुए सेवा में सुधार, सुशासन और स्वरोजगार के क्षेत्रों में बेहतरीन सुझाव देने वाले दो लोगों के लिए 25 हजार तथा 15 हजार रुपए के पुरस्कार भी रखे हैं।  19 फरवरी, 2018 तक सरकार तक कुल 294 सुझाव पहुंच भी चुके हैं। मुख्यमंत्री भी प्रदेश के सभी 68 विधायकों के साथ विधायकों की बजट प्राथमिकताओं पर बैठक भी कर चुके हैं। लिहाजा इस बार कुछ हटकर नए बजट की उम्मीदें बंधती हैं।

हिमाचल प्रदेश का भौगोलिक स्वरूप पर्वतीय होने के चलते विकास संबंधी कुछ अड़चनें तो जरूर हैं, लेकिन गुणवत्तापूर्ण जीवनशैली के मामले में हिमाचली नागरिकों का स्तर निःसंदेह दूसरे राज्यों के मुकाबले श्रेष्ठ ही माना जाना चाहिए। वर्तमान में शिक्षा क्षेत्र में हिमाचली नागरिकों एवं सरकार की अत्यधिक सतर्कता एवं जागरूकता से शिक्षा का प्रतिशत बढ़ने के साथ-साथ शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। इससे निपटने की चुनौती भी नई सरकार की ओर मुंह बाय खड़ी है। बजट में किस प्रकार से नई पहल हो, इसका भी ध्यान रखा जाना जरूरी है। बेरोजगार हिमाचली युवाओं को प्रदेश के भीतर ही रोजगार उपलब्ध करवाने की दिशा में ठोस प्रावधान हों, इसके लिए जिला कांगड़ा के इंदौरा और ऊना के मैदानी क्षेत्रों में नए उद्योग स्थापित करने के लिए आवश्यक बुनियादी संरचना का विकास कर बाहरी राज्यों के बड़े उद्योगपतियों को विशेष रियायतें देकर आमंत्रित किया जाना चाहिए। बजट में प्रतिवर्ष कम से कम एक हजार करोड़ रुपए के प्रावधान के साथ न्यूनतम तीन मेगा परियोजनाओं को 2022 के चुनावों से पहले जमीन पर साकार किया जाए, जिनके लागू होने से रोजगार के नए अवसर खुलते हों। ये परियोजनाएं सड़क, संचार, खेल, सूचना प्रौद्योगिकी,  कृषि, बागबानी, स्वास्थ्य, पर्यटन, सीमेंट और बिजली से जुड़ी परियोजनाएं हो सकती हैं। यदि सरकार सालाना तीन नई परियोजनाओं के लिए बजटीय आबंटन करती है, तो पांच वर्षों में 15 बड़ी परियोजनाओं के द्वारा रोजगार के नए क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है। लेकिन किसी भी परियोजना का दयनीय हश्र नहीं होना चाहिए और न ही झूठी वाहवाही लूटने के इरादों से योजनाओं को लागू करने की घोषणाएं हों।

हिमाचल प्रदेश के तीनों सरकारी विश्वविद्यालयों के बजट को बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि इनके यहां धन के अभाव की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। राज्यपाल महोदय स्वयं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के हालात का जायजा लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। यहां अनुसंधान और नई परियोजनाओं की गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए बजटीय सहारे की भी दरकार है। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने पर्यटन क्षेत्र के सुधार एवं विकास के प्रति अपनी मंशा जाहिर की है और निःसंदेह प्राकृतिक सुंदरता से लबरेज हिमाचल को इस क्षेत्र में काफी कुछ करने की गुंजाइश भी है। धार्मिक, प्राकृतिक और साहसिक पर्यटन को बढ़ावा मिले, यही हमारे युवाओं को रोजगार यह समय की मांग है। बिल्लिंग इसका जीता जागता प्रमाण है। पैराग्लाइडिंग और टेंडम फ्लाइट्स के कारण आज यहां हर तरह के कारोबारियों के लिए स्वरोजगार के दरवाजे खुले हैं। इसी तरह हिमाचल के दूसरे इलाकों में भी नए पर्यटक स्थलों की पहचान कर उन्हें विकसित करने के लिए धनराशि के प्रबंधन की जरूरत है। बजट में पर्यटन निगम के होटलों को भी सुधारने संवारने की आवश्यकता है। पर्यटकों को लूटपाट से बचाने के लिए नीतिगत सुधारों को लागू किया जाना जरूरी है। जैसा कि मैंने पहले सुझाव दिया कि सरकार अपने कार्यकाल के प्रत्येक बजट में तीन से पांच मेगा प्रोजेक्ट्स की नींव रखे, उनका वित्त पोषण करे और उनके समयबद्ध क्रियान्वयन की निगरानी रखे जो रोजगार एवं विकास के स्थायी वाहक बनें। एक अन्य मांग जो हिमाचल के नागरिक अरसे से करते आ रहे हैं, वह है अपने ही राज्य में घर वापसी पर चुकाया जाने वाला टोल टैक्स जबकि मजे की बात यह है कि पंजाब-हरियाणा जाने पर सिवाय फोरलेनिंग प्लाजा पर ही टोल टैक्स देना होता है। सरकार को अपने नागरिकों के लिए वापस हिमाचल लौटने पर लगने वाले इस टैक्स से आजादी देनी ही चाहिए। हिमाचल प्रदेश सरकार साल-दर-साल सभी विभागों को बजट आबंटन कर अपने कार्य की इतिश्री मानकर चुपचाप बैठ जाती है, लेकिन क्या तनख्वाह-पेंशन इत्यादि के बाद बचे बजट का धरातल पर समुचित प्रबंधन हुआ है या नहीं इसकी पड़ताल भी जरूरी है। इसके लिए सरकार को अपनी फीडबैक व्यवस्था को मजबूत बनाने की जरूरत है।

गैर जरूरी भवनों के निर्माण के रूप में हो रहे अपव्यय पर भी रोक लगनी चाहिए। जो सरकारी भवन खाली पड़े हैं, जीर्णोद्धार करवाकर उनको इस्तेमाल में लाने की व्यवस्था होनी चाहिए। स्वरोजगार को बढ़ावा मिले तथा हमारी शिक्षित युवा पीढ़ी कृषि कर्म की ओर प्रवृत्त हो, इसके लिए विभाग को गांव-गांव जाकर जागरूकता शिविर लगाकर युवाओं को सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों, योजनाओं और अनुदान पर चल रही स्कीमों की जानकारी दी जानी चाहिए, ताकि युवा भी मुर्गी, मत्स्य पालन, मशरूम उगाने, सब्जी उत्पादन, पशुपालन द्वारा डेयरी उत्पादों के स्वरोजगार कर्म से जुड़कर अपने परिवारों सहित हिमाचल की आर्थिकी को मजबूत बना सकें।


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