मृगतृष्णा होती जा रही इंजीनियरिंग की नौकरी

By: Feb 28th, 2018 12:05 am

किसी अच्छे इंजीनियर के पीछे उसके अध्यापक का बहुत हाथ होता है, लेकिन आजकल अच्छे अध्यापकों की बहुत कमी है। लोग रुचि से नहीं, बल्कि रोजगार के उद्देश्य से अध्यापक बन रहे हैं। ऐसे अध्यापकों के पास चाहे जितना भी ज्ञान क्यों न हो, वे विद्यार्थियों तक उस ज्ञान को नहीं पहुंचा पाते…

भारतीय समाज में इंजीनियर की एक अलग पहचान है। बहुत सारे विद्यार्थियों का सपना इंजीनियर बनना है और बहुत सारे विद्यार्थी इंजीनियर बन भी रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में हर वर्ष लगभग दस से 15 लाख के करीब इंजीनियर तैयार हो रहे हैं और इन में से 80 प्रतिशत इंजीनियर इंजीनियरिंग की नौकरी के काबिल ही नहीं हैं।

एक तरफ तो भारत में 117 जैसे संस्थान हैं, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं और यहां से पढ़े हुए विद्यार्थियों का पूरे विश्व में डंका बजता है। विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियों के प्रमुख इन संस्थानों से निकले हुए हैं। दूसरी तरफ ऐसे निजी व सरकारी इंजीनियरिंग कालेज हैं, जहां न आधारभूत संरचना है न अच्छे अध्यापक। किसी अच्छे इंजीनियर के पीछे उसके अध्यापक का बहुत हाथ होता है, लेकिन आजकल अच्छे अध्यापकों की बहुत कमी है। लोग रुचि से नहीं, बल्कि रोजगार के उद्देश्य से अध्यापक बन रहे हैं।

ऐसे अध्यापकों के पास चाहे जितना भी ज्ञान क्यों न हो, वे विद्यार्थियों तक उस ज्ञान को नहीं पहुंचा पाते। भारत में हर साल जरूरत से ज्यादा इंजीनियर और खराब इंजीनियर निकल रहे हैं। पिछले कुछ सालों से छात्रों की तादाद में बहुत वृद्धि हुई है। अमरीका और चीन के इंजीनियरों को मिला दो, तो भी भारत उनसे ज्यादा इंजीनियर तैयार कर रहा है। इंजीनियरिंग की नौकरियां कम हुई हैं। बहुत सारे इंजीनियर पांच से दस हजार में नौकरी कर रहे हैं और बहुतों को तो यह भी नसीब नहीं हो रही है। विद्यार्थी इंजीनियरिंग के बाद बैंकिंग या यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। बैंकिंग के क्षेत्र में जो चुनकर नए लोग आ रहे हैं, वे अधिकतर इंजीनिरिंग के क्षेत्र से ही आ रहे हैं।

विद्यार्थी इंजीनियरिंग तो पास कर रहे हैं, पर वह इंजीनियर नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि इंजीनियर की नौकरियां नहीं हैं। नौकरियां कम जरूर हो गई हैं, पर जो अच्छे इंजीनियर हैं, उनकी अभी भी बहुत मांग है। अच्छा इंजीनियर बनने के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। एक अच्छा इंजीनियर बनने के लिए एक अच्छा कालेज होना चाहिए, अच्छे अध्यापक हों, आधुनिक लैब हो, जहां निरंतर तकनीकी काम होता हो। इसके लिए बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है। सरकारी क्षेत्र में बजट का अभाव होता है और निजी क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना है, अच्छे-बुरे इंजीनियर से उनका कुछ भी लेना देना नहीं है। भारत में अच्छे इंजीनियर न होने का एक ओर कारण है कि भारत में आधुनिक उन्नत तकनीक की खोज नहीं की जाती है। हम उसको विदेशों के आयात करते हैं। भारतीय कंपनियां नई तकनीक की खोज में ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना चाहती है। मैन्युफैक्चरिंग में जहां पहले ज्यादा से ज्यादा इंजीनियरिंग की नौकरियां मिलती थीं, वह अब आटोमेशन हो गया है। पहले जहां असेंबली लाइन में करीब 100 इंजीनियर काम देखते थे, अब आटोमेशन के कारण ये संख्या दस हो गई है। इंजीनियर नहीं तकनीशियन चाहिए होते हैं, जो मशीनों को चलाना जानते हों। भारत में 40 से 50 प्रतिशत विद्यार्थी इंजीनियरिंग में नहीं जाना चाहते। उनकी उसमें रुचित नहीं है और उन्हें अच्छे संस्थान में प्रवेश भी नहीं मिलता है। बहुत सारे विद्यार्थी इसलिए इंजीनियरिंग करना चाहते हैं, क्योंकि उनके भौतिक विज्ञान, मैथ और रसायन विज्ञान में बहुत अच्छे अंक आए हैं। इसलिए वह इंजीनियरिंग करना चाहते हैं, न कि रुचि के कारण।

ये ठीक है कि उनकी उसमें रुचि नहीं है, लेकिन इंजीनियरिंग के प्रति उनकी उसमें रुचि नहीं है, लेकिन इंजीनियरिंग के प्रति उनकी रुचि भी उत्पन्न की जा सकती है, जो हमारा पाठ्यक्रम है वह बहुत पुराना है उसको बदलने की जरूरत है। अब तो विद्यालय की पाठशालाओं में भी स्मार्ट कक्षाओं में पढ़ाई होती है और जो हमारे इंजीनियरिंग कालेजों में अभी भी चाक और ब्लैक बोर्ड पर हो रही है। हमारे इंजीनियरिंग कालेज के क्लासरूम उन्नत तकनीक से जुड़े हुए होने चाहिए। जब कोर्स के दौरान विद्यार्थियों की वोकेशनल ट्रेनिंग की बारी आती है तो उद्योग जगत से भी विद्यार्थियों की कोई मदद नहीं मिलती है। वे एक कंपनी से दूसरी कंपनी में चक्कर काटते रहते हैं, परंतु उन्हें किसी भी कंपनी में अपनी प्रतिभा निखारने का मौका नहीं मिलता है। वे सिर्फ किताबी ज्ञान तक ही सीमित रहते हैं। नौकरी न मिलने का एक और कारण है अंग्रेजी भाषा में पकड़ न होना। ऐसे विद्यार्थी साक्षात्कार के समय अपने आपको ज्यादा सुविधाजनक नहीं पाते है।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ऐसे इंजीनियर चाहिए, जिनकी अंग्रेजी भाषा में पकड़ अच्छी हो। भारत में बहुत सारे इंजीनियरिंग के संस्थान आजकल छात्रों का इंतजार कर रहे हैं। इंजीनियरिंग की 2016-17 के दौरान 54 प्रतिशत सीटें खाली रह गई और इसी दौरान हिमाचल में 82 प्रतिशत सीटें खाली रही। इसका कारण है कि पढ़ाई के बाद छात्र व छात्राओं का बेरोजगार रह जाना। हमारी अभी तक जो भी सरकारें रही हैं। उन्होंने  इस तरफ अभी तक कोई भी ध्यान नहीं दिया है। सबने नए संस्थान तो खोल दिए, लेकिन सुविधाओं की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और न ही ये देखा की वहां से पढ़कर निकल रहे विद्यार्थियों के रोजगार का क्या हो रहा है।

– अरुण चौहान, मंडी


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