वीर चंद ने बनवाया नयनादेवी का मंदिर

By: Feb 28th, 2018 12:05 am

एक गुर्जर ने वीर चंद के पास आकर कहा कि उसकी गाय नित्य पत्थर की एक शिला पर दूध की धार छोड़ती है। जब उसने वहां पहुंच कर शिला हटाई, तो उसके नीचे उसे दुर्गा की एक मूर्ति मिली…

बिलासपुर

इतिहास ः कहलूर (बिलासपुर) की वंशावली और परंपरा के अनुसार इस राज्य के संस्थापक के पूर्वज बुंदेलखंड चंदेरी में राज करते थे। चंदेरी के राजवंश में 70वें राजा का नाम हरिहर चंद था। एक बार उसने चंदेरी राज्य का सब काम अपने पुत्र गोविंद चंद को सौंपकर अपने साथ अन्य चारों पुत्रों-बीर चंद, गंभीर चंद, कबीर चंद और सुबीर चंद को साथ लेकर उत्तर की ओर ज्वालामुखी देवी के दर्शन के लिए प्रस्थान किया। उन दिनों कांगड़ा का राजा नादौन में था। उसने राजा हरिहर चंद का अच्छा आदर-सत्कार किया। राजा तथा उसके चारों पुत्र कुछ दिनों के लिए वहां ठहर गए। दोनों राजाओं के सैनिकों के सैनिक खेल होने लगे। एक बार लगातार तीन दिन तक महाराज हरिहर चंद के सैनिकों से कांगड़ा के राजा के सिपाही हारते हरे। चौथे दिन कांगड़ा के राजा के कुछ ऐसी चालाकी की कि एक खेल में राजा हरिहर चंद के पुत्र सुबीर चंद के प्राण ही निकल गए। इस पर दोनों राजाओं के सैनिकों में लड़ाई छिड़ गई। उसी लड़ाई में राजा हरिहर चंद और कांगड़ा का राजा मारे गए। कुछ एक लिखते हैं कि कांगड़ा के राजा का बड़ा पुत्र मारा गया था। लड़ाई बंद होने के पश्चात तीनों भाई वीर चंद, कबीर चंद और गंभीर चंद ज्वालामुखी पहुंचे। वहां से तीनों भाई साथ में आए कुछ सैनिकों को लेकर अपने भाग्य की खोज में तीनों दिशाओं में चल पड़े। कबीर चंद कुमाऊं की ओर चला गया। वहां के किसी राजा ने उसे धर्म पुत्र बना लिया। बाद में उसने कुमाऊं में अपना राज्य स्थापित कर लिया, जो कि बहुत दिनों तक उसके वंशजों के हाथ में रहा। उसने अपने राज्य को कहां स्थापित किया इसका कोई पता नहीं, परंतु कुमाऊं के इतिहास तथा परंपरा के अनुसार कत्यूरी राज्य के बाद जिसने कुमाऊं के चंद राज्य की नींव डाली उसका नाम सोम चंद था गंभीर चंद हिमटा, जिसे चनेहणी भी कहते हैं, की ओर गया। बड़ा भाई वीर चंद अपने सैनिक साथियों के साथ सतलुज नदी घाटी की ओर मुड़ा। पहले पहल वह जंदबड़ी में आया और वहां के स्थानीय सामंतों को दबाकर वहीं पर सतलुज के बाएं किनारे पर बस गया। वहीं पर उसने एक दुर्ग भी बनाया। एक जनश्रुति है कि एक दिन नैणा नाम के एक गुर्जर ने वीर चंद के पास आकर कहा कि उसकी गाय नित्य पत्थर की एक शिला पर दूध की धार छोड़ती है। जब उसने वहां पहुंच कर शिला हटाई, तो उसके नीचे उसे दुर्गा की एक मूर्ति मिली। वीर चंद ने उस पहाड़ी पर उक्त मूर्ति के लिए मंदिर बनाया, जो नयनादेवी के नाम से प्रसिद्घ हुआ। इस प्रकार एक और श्रुति के अनुसार फिर एक दिन कहलू नाम के एक गुर्जर ने वीर चंद के पास आकर निवेदन किया कि एक बार उसी शिला पर उसकी बकरी खड़ी थी, तो बाघ ने झपट कर तीन बार उसको ले जाना चाहा, पर बकरी ने तीनों बार बकरी ने अपने सींगों से पीछे धकेल दिया।


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