वेटलैंड की छांव में ही सुरक्षित है मानव अस्तित्व

By: Feb 2nd, 2018 12:05 am

अजय पाराशर

लेखक, सूचना एवं जन संपर्क विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय, धर्मशाला में उप निदेशक हैं

विविधता संरक्षण में आर्द्रभूमियां बेहद अहम हैं, क्योंकि ये कई जीवों की शरणस्थली के रूप में कार्य करती हैं। इनके करीब रहने वाले बाशिंदों को पर्यटनोन्मुखी रोजगार के अलावा ईंधन के लिए लकडि़यां, फल, जड़ी-बूटियां, वनस्पतियां, चारा आदि आसानी से उपलब्ध हो जाता है…

एक अनुमान के अनुसार भारतवर्ष का कुल 4.63 प्रतिशत इलाका आर्द्रभूमि या वेटलैंड आच्छादित है। दूसरे शब्दों में कहें तो देश की 15,26,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर दलदली या आर्द्रभूमि मौजूद है। इसके अलावा 2.25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल से कम आकार वाले करीब 5,55,557 स्थलों को भी आर्द्र भूमियों के रूप में चिन्हित किया गया है। अगर आंतरिक और बाह्य आर्द्र भूमियों की बात की जाए तो 69.22 फीसदी आंतरिक और 27.13 प्रतिशत तटीय वेटलैंड हैं।  वेटलैंड या आद्रभूमि (जलागम) क्षेत्र का शाब्दिक अर्थ है नमी या दलदली इलाका। आर्द्रभूमि झील, नदी या विशाल तालाब के किनारे वाला वह हिस्सा होता है, जहां प्रचुर मात्रा में नमी पाई जाती है। इस तरह की भूमि के कई फायदे होते हैं। इस प्रकार की भूमि जल को प्रदूषणमुक्त बनाती है। देश में आर्द्रभूमि वाले स्थल ठंडे और शुष्क इलाकों के अलावा मध्य भारत के कटिबंधीय मानसूनी क्षेत्रों और दक्षिण के नमी वाले क्षेत्रों तक फैले हुए हैं। दक्षिण प्रायद्वीप में मौजूद अधिकतर वेटलैंड मानव निर्मित हैं, जो तमाम मानवीय जरूरतों को पूरा करने में मदद करते हैं।

वेटलैंड मानव अस्तित्व के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जमीन के भीतरी जल स्तर को बढ़ाने में आर्द्र भूमियां महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। ये हमें मीठा पानी उपलब्ध करवाने के अतिरिक्त जल से हानिकारक कचरे को छानने का अहम कार्य करती हैं। ये पानी में विद्यमान तलछट और पोषक तत्त्वों को अपने में जज्ब कर लेती हैं और सीधे नदी में जाने में रोकती हैं। इस प्रकार पानी की गुणवत्ता कायम रहती है। इसके अलावा यह हमें खाद्य पदार्थों के स्रोत तथा आजीविका के साधन उपलब्ध करवाते हैं। बाढ़ और सूखे के जोखिम को कम करने के अलावा चरम घटनाओं में बफर के रूप में कार्य सुरक्षा तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार साबित होते हैं। ऐसे क्षेत्र जैव विविधता के लिए भी अत्यंत उपयोगी साबित होते हैं। समुद्री तटरेखा के अस्तित्व को बनाए रखने में इनका अहम योगदान होता है। इनमें समुद्री तूफान और आंधी के प्रभाव को सहन करने की योग्यता होती है।

विविधता संरक्षण में आर्द्र भूमियां बेहद अहम हैं, क्योंकि ये कई जीवों की शरणस्थली के रूप में कार्य करती हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन और खाद्यान उत्पादन में आ रही कमी के मद्देनजर हमें इन्हें बचाने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे, ताकि ये अपनी पारिस्थितिकी भूमिका को सही तरीके से निभा सकें। कई प्रकार के देशी-विदेशी परिंदे खास मौसम में इनकी ओर आकर्षित होते हैं। जलागम क्षेत्र कई प्रवासी पक्षियों की शरणस्थली के रूप में कार्य करते हैं। राजहंस, पनकौआ, ओस्प्रे, इंडियन स्किम्मर, संगमरमरी टील आदि पक्षी इनमें विशेष तौर पर आना पसंद करते हैं। पर्यटक और पक्षी प्रेमी इनके चलते वेटलैंड की ओर खिंचे चले आते हैं। आर्द्र भूमियों के आर्थिक महत्त्व के चलते इनके करीब रहने वाले बाशिंदों को पर्यटनोन्मुखी रोजगार के अलावा ईंधन के लिए लकडि़यां, फल, जड़ी-बूटियां, वनस्पतियां, चारा आदि आसानी से उपलब्ध हो जाता है।

बदलते परिवेश में देश की कई आर्द्र भूमियों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। प्रदूषण, शहरों में फैलते कंकरीट के जंगल, जलग्रहण क्षेत्रों से छेड़खानी, रेत का जमाव, कृषि में उर्वरकों या अन्य रसायनों का प्रयोग इसकी मुख्य वजह है। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए दो फरवरी, 1971 को ईरान के रामसर शहर में वेटलैंड सम्मेलन में रामसर समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। तब से हर साल पूरे संसार में दो फरवरी को वेटलैंड दिवस मनाया जाता है। पहला विश्व वेटलैंड दिवस साल 1997 में आयोजित किया गया था। इस सिलसिले में हर वर्ष वेटलैंड के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कई प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस साल के विश्व वेटलैंड का विषय है, ‘सुनहरे-टिकाऊ शहरी भविष्य के लिए वेटलैंड’। अगर हिमाचल की बात जाए तो प्रदेश में कई वेटलैंड मौजूद हैं जो विभिन्न पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में फैले हैं और स्थानीय समुदाय की आजीविका के स्रोत हैं। वर्तमान में प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय स्तर के तीन वेटलैंड, कांगड़ा जिला में पौंग बांध, सिरमौर जिला में रेणुका तथा लाहुल-स्पीति में चंद्रताल विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने मंडी जिला के रिवालसर तथा चंबा जिला के खजियार को संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए  शामिल किया है।

लोगों में आर्द्रभूमि के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से हिमाचल प्रदेश राज्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद (हिमकोस्ट) दो फरवरी को पौंग बांध क्षेत्र के समीप जवाली के मिनी सचिवालय में प्रातः 10ः30 बजे राज्य वेटलैंड संरक्षण प्राधिकरण, पर्यटन, वन, मत्स्य तथा शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन के सहयोग से राज्य स्तरीय समारोह का आयोजन करने जा रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर इस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे। इससे पूर्व विभिन्न कार्यक्रमों तथा प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया, जिनमें चित्रकला प्रतियोगिता, प्रकृति की सैर, पक्षियों का अवलोकन, जैव विविधता के बारे में जानकारी आदि देना शामिल था। इस अवसर पर मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश आद्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ करने के अतिरिक्त वैटलेंड कैलेंडर और पत्रिका का विमोचन भी करेंगे।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App