श्रीविश्वकर्मा पुराण

By: Feb 24th, 2018 12:05 am

जिन्होंने अपने एक हाथ में कोड़ा धारण किया है, दूसरे में सूत्र, तीसरे में जल का कमंडल तथा चौथे हाथ में समस्त ज्ञान सूत्रोें के ज्ञान भंडार समान पुस्तक को धारण किया है, जो हंस के ऊपर विराजमान है तथा तीन नेत्रों से युक्त हैं तथा जिनके मस्तक के ऊपर मुकुट शोभा पा रहा है…

इस तरह कहकर पानी छोड़ देना इसके बाद हाथ में चावल लेकर पृथ्वी का ध्यान करना तथा नीचे का मंत्र पढ़ना।

पृथ्वी त्वया धृता लोका देवीत्वं विष्णुनाधृता।

त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरु आसनं।।

इस प्रकार बोलकर पृथ्वी के ऊपर चावल छोड़ दें, इसके बाद जल भरे पात्र के ऊपर नीचे का मंत्र बोलकर चावल छोड़ दें।

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।

नर्वदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधि कुरु।।

इसके बाद नीचे का मंत्र पढ़कर दोनों दीपों का पूजन करना चाहिए।

मो दीप देव रुहस्तवं कर्मसाक्षी प्रसीद में।

यावत्कर्म करोम्यत्र तावत्वं सुस्थिरोभव।।

इस प्रकार मंत्र बोलकर दीपक के ऊपर चंदन पुष्प तथा चावल चढ़ाएं, फिर घंटा बजाकर घंटे का पूजन करना चाहिए। इस समय नीचे का मंत्र बोलना।

आगमार्थ तु देवानां गमनार्त तु रक्षसाम।

घंटानाद प्रकुर्वीत पश्चात घंटा पूजतेत।।

इस प्रकार मंत्र पढ़कर सर्वप्रथम घंटा की आवाज करना फिर जल से स्नान कराकर अच्छे वस्त्र से साफ करना तथा चंदन पुष्प अक्षत वगैरह से घंटा का विधिवत पूजन करके उसके स्थान पर रखना।

इतना करने के बाद भगवान विश्वकर्मा का पूजन करना। जो कोई मनुष्य शक्तिशाली हो तथा विस्तारपूर्वक भगवान के पूजन करने की भावना रखता हो, तो उसको सबसे पहले गणपति, सोलह मातृ का, चौसठ योगिनी, चौसठ भैरव, नवग्रह वास्तु बगैरह सब देवताओं का उत्तम रीति से पूजन करना, जिसको विस्तार से करने की शक्ति न हो ऐसे मनुष्यों को इन सब देवताओं का केवल मन में स्मरण करके नमस्कार करना, इसके बाद नीचे बताई हुई विधि से प्रभु विश्वकर्मा का पूजन करना चाहिए।

कंवा सूत्रांवु पात्रं वहाति करतले पुस्तक ज्ञान सूत्रं।

हंसारुढ़ स्त्रिनेत्रः शुभमुकुट शिराः सर्वतो बुद्धकाय।

त्रैलोक्य येन सृष्टि सकलसुर गृहं राजहर्यादि हर्भ्य।

देवो सौ सूत्रधारः जगर विलहितः ध्यायते सर्वसत्वे।

अर्थ: जिन्होंने अपने एक हाथ में कोड़ा धारण किया है, दूसरे में सूत्र, तीसरे में जल का कमंडल तथा चौथे हाथ में समस्त ज्ञान सूत्रोें के ज्ञान भंडार समान पुस्तक को धारण किया है, जो हंस के ऊपर विराजमान हैं तथा तीन नेत्रों से युक्त हैं तथा जिनके मस्तक के ऊपर मुकुट शोभा पा रहा है। ऐसे देव जिन्होंने तीनों लोकों का सर्जन किया है, सब देवताओं, राजाओं, प्रजाजनों के निवास स्थलों का निर्माण किया है, सारे जगत के सूत्रधार तथा जगत का कल्याण करने वाले प्रभु का सभी प्राणी अति प्रेमपूर्वक ध्यान करें। इसके बाद प्रभु का आवाहन करने के लिए हाथ में चंदन वाले पुष्प तथा अक्षत ले फिर आगे के मंत्र पढ़ें।


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