1857 संग्राम की पहली चिंगारी कसौली में भड़की
1857 संग्राम की पहली चिंगारी कसौली की सैनिक छावनी में भड़की। 20 अप्रैल, 1857 ई. को अंबाला रायफल डिपो के छह सैनिकों ने कसौली में एक पुलिस चौकी में आग लगा दी। पुलिस चौकी जलकर राख हो गई। वास्तविक तौर पर यह विद्रोह सबसे पहले दस मई, 1857 को मेरठ से आरंभ हुआ था…
जन आंदोलन व पहाड़ी रियासतों का विलय
1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम की गूंज पहाड़ों में भी उठी। इसकी पहली चिंगारी कसौली की सैनिक छावनी में भड़की। 20 अप्रैल, 1857ई. को अंबाला रायफल डिपो के छह सैनिकों ने कसौली में एक पुलिस चौकी में आग लगा दी। पुलिस चौकी जलकर राख हो गई। वास्तविक तौर पर यह विद्रोह सबसे पहले दस मई, 1857 को मेरठ से आरंभ हुआ था। शिमला में यह समाचार 13 मई को पहुंचा। अंग्रेजों में इस समाचार से आतंक छा गया। कुछ लोगों ने भाग कर जुन्गा, कोटी और बलसन के शासकों के यहां शरण ले ली और कुछ ने स्पाटू व डगशाई की सैनिक बैरकों में शरण ली। कसौली में तैनात नसीरी सैनिक टुकड़ी (गोरखा रेजिमेंट) ने अंबाला जाने के आदेश को मानने से इनकार किया और 16 मई, 1857 को विद्रोह की घोषणा कर दी। उन्होंने खजाने पर अधिकार कर लिया और शिमला के निकट जतोग की ओर बढ़े। सूबेदार भीमसिंह ने क्रांतिकारी विद्रोह सेना का नेतृत्व किया। इस अवधि में यह अफवाह फैल गई कि जतोग में स्थित गोरखा सैनिकों ने विद्रोह कर दिया है और वे शिमला को लूटने के लिए आ रहे हैं। शिमला के डिप्टी कमिश्नर विलियम हेय ने तुरंत मंडी के मियां रत्न सिंह को, जो उस समय उसके पास बैठे थे, विद्रोह सैनिकों से बात करने के लिए भेजा। शिमला में स्थित अंग्रेज निवासियों में आतंक फैल गया। उनमें से कइयों ने भाग कर पड़ोस के राजाओं के यहां शरण ली और कुछ स्पाटू और डगशाई के सैनिक स्थलों में चले गए। इस अवसर पर कुछ पहाड़ी राजाओं ने थोड़े बहुत सैनिक इस विद्रोह से निपटने के लिए भेजे। जल्दी ही स्थिति सुधर गई और भागे हुए लोग वापस शिमला लौट गए। वे देखकर चकित रह गए कि उनके घरों का सामान किसी ने छुआ तक नहीं था। स्वतंत्रता संग्राम की इस प्रथम लड़ाई में शिमला पहाड़ी क्षेत्र की सभी पहाड़ी रियासतों ने अंग्रेजों का घोर विरोध किया। उत्तेजित प्रजा ने जुब्बल, कोटगढ़, कोटखाई, रामपुर और किन्नौर आदि क्षेत्र में अंग्रेज अधिकारियों और व्यापारियों का विरोध किया और इन्हें भागने पर मजबूर किया। बुशहर के राजा शमशेर सिंह (1849-1914) ने अंग्रेज सरकार द्वारा लगाया गया 15000 रुपए वार्षिक नजराना देना बंद कर दिया। विद्रोह के दौरान अंग्रेजी सरकार की कोई आर्थिक और सैनिक सहायता नहीं की और रियासत को स्वतंत्र घोषित कर दिया। शिमला की पहाड़ी रियासतों के पोलिटिकल एजेंट तथा शिमला जिला के डिप्टी कमिशनर विलियम हेय ने बुशहर के राजा के विरुद्ध सेना भेजने का निर्णय लिया, परंतु सैनिक टुकड़ी उपलब्ध न होने के कारण वह कोई कार्रवाई न कर सका। इस क्रांति के संचालन के लिए एक संगठन भी बनाया गया था। इसका मुख्य नेता स्पाटू का राम प्रसाद बैरागी था।
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