इलेक्ट्रीशियन से संगीतकार बने रवि

By: Mar 4th, 2018 12:10 am

भारतीय हिंदी फिल्मों के ख्याति प्राप्त संगीतकार रवि का जन्म 3 मार्च, सन् 1926 को दिल्ली में हुआ था। उनका पूरा नाम रवि शंकर शर्मा था। रवि ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, हालांकि उनकी दिली तमन्ना पार्श्व गायक बनने की थी। इलेक्ट्रीशियन के रूप में काम करते हुए रवि ने हारमोनियम बजाना और गाना सीखा।

फिल्मी सफर : रवि जब दिल्ली में रहते थे, तब उनको फिल्म संगीत का बहुत शौक था। वह मोहम्मद रफी के गानों के शौकीन थे। अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए वह इलेक्ट्रिशियन बन गए थे। सन् 1950 में वह दिल्ली से मुंबई रवाना हो गए। मुंबई में न उनके पास रहने का घर था और न ही हाथ में कोई पैसा। अपनी ज्यादातर रातें तब वह मलाड स्टेशन पर बिताते थे। एक दिन हेमंत कुमार ने उन्हें देखा तो वह उन्हें अपने साथ ले गए। उन्होंने पहले रवि से ‘आनंद मठ’ फिल्म में ‘वंदेमातरम्’ गीत में कोरस गवाया और फिर उन्हें अपना सहायक निर्देशक बना लिया। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘नागिन’ की सुपर हिट बीन वाली धुन रवि ने ही तैयार की थी, जो पहली बार ‘तन डोले, मेरा मन डोले’ में इस्तेमाल हुई थी। हेमंत दा से अलग होने के अगले दिन ही निर्माता नाडियाडवाला ने रवि को बतौर संगीत निर्देशक तीन फिल्में ‘मेहंदी, घर संसार’ और ‘अयोध्यापति’ दे दीं। उधर, निर्माता एसडी नारंग ने भी रवि को ‘दिल्ली का ठग’ और बांबे का चोर’ जैसी फिल्में दे दीं।  फिल्म ‘नागिन’ में रवि ने हेमंत कुमार के सहायक रूप में बहुत मेहनत की थी और फिल्म में बीन की धुन बनाई। फिल्म में बीन की धुन उन्होंने गीत ‘मेरा दिल ये पुकारे आजा’ से लेकर बनाई थी। इसी बीच रवि की मुलाकात निर्माता-निर्देशक देवेंद्र गोयल से हुई जो उन दिनों अपनी फिल्म ‘वचन’ के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। देवेंद्र गोयल ने रवि की प्रतिभा को पहचान उन्हें अपनी फिल्म में बतौर संगीतकार काम करने का मौका दिया। अपनी पहली ही फिल्म में रवि ने दमदार संगीत देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था।

रवि को अपनी जिंदगी में कई बार अग्निपरीक्षाओं से गुजरना पड़ा, मगर वह हर बार अपनी परीक्षाओं में खरे उतरे। रवि के बारे में एक दिलचस्प बात यह भी है कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत की कोई शिक्षा नहीं ली थी, फिर भी उन्होंने शास्त्रीय संगीत पर कई सुपर हिट धुनें बनाईं। सही मायने में आशा भोंसले को जिन गिने-चुने संगीतकारों ने तराशा,उनमें रवि प्रमुख थे। साथ ही महेंद्र कपूर जैसे गायक की जिंदगी तो रवि साहब की धुनों पर गीत गाकर ही बनी। बात सन् 1981 की है, निर्माता-निर्देशक बीआर चोपड़ा उन दिनों निकाह फिल्म बना रहे थे। जिसके गीत ‘दिल के अरमां आंसुओं में बह गए’ को संगीत प्रेमी काफी पसंद करते हैं। संगीतकार रवि को बीआर चोपड़ा के अलावा रामानंद सागर एसडी, नारंग, देवेंद्र गोयल, नाडियाडवाला, गुरुदत्त और ओपी नैयर जैसे कई निर्माताओं ने तो लिया ही, दक्षिण के भी कई निर्माता उनके जबरदस्त प्रशंसक थे। जेमिनी फिल्म्स की तो अधिकांश हिंदी फिल्मों में रवि ने संगीत दिया, जिसमें ‘घूंघट, घराना, पैसा या प्यार, आदि।

पुरस्कार  व सम्मान : संगीतकार रवि को जेमिनी पिक्चर्स की एसएसवासन निर्देशित फिल्म ‘घराना’ 1961 और वासु फिल्म्स की भीमसिंह निर्देशित ‘खानदान’ 1965 के संगीत निर्देशन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। वर्ष 1971 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री देकर सम्मानित किया। दक्षिण भारतीय फिल्मों के संगीत के लिए भी वहां के राज्य पुरस्कार और राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा और भी कई पुरस्कार और सम्मान हासिल किए। उनके दो अंतिम उल्लेखनीय सम्मान मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाने वाला लता मंगेशकर पुरस्कार और मालवा रंगमंच समिति द्वारा दिया जाने वाला कवि प्रदीप शिखर सम्मान था।

मृत्यु : हिंदी फिल्मों के ख्यातिप्राप्त संगीतकार रवि का लंबी बीमारी के बाद 86 वर्ष की आयु में निधन 7 मार्च, 2012 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ। रवि एक मुकम्मल संगीतकर थे। उनमें कविता और शायरी की समझ थी। इसलिए उनके गीत जीवंत बन सके। मेलोडी रचने में तो उनका कोई सानी नहीं था। उनके कंपोज किए गानों में अनोखा ओज था। उनके संगीत निर्देशन में गायक या गायिका की आवाज हमेशा एक अनोखे उठान पर रहती थी। उन्होंने ये तीनों किरदार जबरदस्त सफलता से निभाए। मुंबई के फिल्म उद्योग में उनका कोई गॉडफादर नहीं था। उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया, वह अपनी मेहनत और प्रतिभा के बलबूते पर किया। जीवन की हर परिस्थिति और हर अवसर के लिए रवि ने यादगार गीत कंपोज किए। उनका संगीत लाखों की पसंद बना।


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