जख्मी सड़कों पर हाई कोर्ट सख्त

By: Mar 16th, 2018 12:07 am

केंद्र सरकार, एनएचपीसी के साथ मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

शिमला— हिमाचल में सड़कों की दयनीय स्थिति को देखते हुए हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और अजय मोहन गोयल  की खंडपीठ ने जनहित में दायर याचिका की सुनवाई के पश्चात केंद्र सरकार सहित राज्य के मुख्य सचिव,  एनएचपीसी को नोटिस जारी कर शपथपत्र में माध्यम से जवाब तलब किया है। याचिका में दलील दी गई है कि राज्य और केंद्र सरकार द्वारा प्रदेश में सड़कों का रखरखाव नहीं किया जा रहा है और खासकर जिला चंबा में सड़कों की स्थिति दयनीय है, जिससे हर साल सड़क दुर्घटनाओं में सैकड़ों लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार के पास फंड होने के बावजूद हिमाचल रूरल रोड पालिसी में दिए प्रावधानों के तहत इन सड़कों का रखरखाव नहीं किया जा रहा है। खंडपीठ ने याचिका की प्रारंभिक सुनवाई के पश्चात प्रतिवादियों को आदेश दिए हैं कि वे अपना निजी शपथ पत्र दायर कर अदालत को बताएं कि जिला चंबा में कितनी सड़कें हैं और उनकी क्या स्थिति है। खंडपीठ ने लोक निर्माण विभाग के प्रमुख अभियंता को आदेश दिए हैं कि वह शपथ पत्र के माध्यम से बताएं कि चंबा जिला में सड़कों की स्थिति कैसी है, खासकर चंबा से भरमौर तक। मामले की सुनवाई 20 मार्च को निर्धारित की गई है।

बांधों से 15 फीसदी पानी न छोड़ने पर नोटिस

शिमला — हिमाचल प्रदेश में स्थापित सभी हाइड्रो प्रोजेक्ट/बांधों द्वारा पालिसी के प्रावधानों के तहत 15 प्रतिशत पानी न छोड़े जाने के मामले में प्रदेश हाई कोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है। प्रार्थी अधिवक्ता पुष्पेंद्र वर्मा द्वारा जनहित में दायर याचिका की प्रारंभिक सुनवाई के पश्चात कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने केंद्रीय सरकार सहित राज्य के मुख्य सचिव, सचिव (पेयजल एवं सिंचाई), हिम ऊर्जा, एनएचपीसी और राज्य प्रदूषण बोर्ड को नोटिस जारी कर शपथ पत्र के माध्यम से जवाब तलब किया है। प्रार्थी ने याचिका में दलील दी है कि हिमाचल प्रदेश की जनता पहले ही सूखे की मार झेल रही है और ऐसे में प्रदेश में स्थापित सभी हाइड्रो प्रोजेक्ट हाइड्रो पालिसी के प्रावधानों के तहत 15 प्रतिशत पानी नहीं छोड़ रहे हैं। इस कारण प्रदेश में पेय स्रोत, सिंचाई स्रोत, झीलें, झरने इत्यादि सूखने के कगार पर हैं। याचिका के माध्यम से अदालत को बताया गया कि हालांकि केंद्र सरकार ने बांधों से पानी छोड़ने की प्रतिशतता को 20-30 फीसदी बढ़ाने का सुझाव दिया है, ताकि जल स्रोत न सूखें। प्रार्थी ने अदालत से गुहार लगाई है कि राज्य सरकार को आदेश दिए जाएं कि वह सुनिश्चित करे कि सभी हाइड्रो  प्रोजेक्ट बांध से 15 प्रतिशत पानी छोड़ें और राज्य सरकार को यह भी आदेश दिए जाएं कि इस प्रतिशतता को केंद्र सरकार के सुझावों के अनुसार 20-30 फीसदी बढ़ाया जाए। मामले की आगामी सुनवाई 16 अप्रैल को निर्धारित की गई है।


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