मूलाधार चक्र की साधना के तीन प्रमुख फायदे

By: Mar 31st, 2018 12:07 am

योग का एक पूरा सिद्धांत मूलाधार से विकसित हुआ, जो इस शरीर के अलग-अलग इस्तेमाल से लेकर इनसान के अपनी परम संभावना तक पहुंचने से जुड़ा है…

मूलाधार का मतलब है मूल आधार, यानी यह हमारे भौतिक ढांचे का आधार है। अगर यह आधार स्थिर नहीं हुआ, तो इनसान न तो अपना स्वास्थ्य ठीक रख पाएगा, न ही अपनी कुशलता और संतुलन ठीक रख पाएगा। इनसान के विकास के लिए ये खूबियां बहुत जरूरी हैं।

मूलाधार साधना से जुड़ा है कायाकल्प का मार्ग

योग का एक पूरा सिद्धांत मूलाधार से विकसित हुआ, जो इस शरीर के अलग-अलग इस्तेमाल से लेकर इनसान के अपनी परम संभावना तक पहुंचने से जुड़ा है। मूलाधार से एक पहलू सामने आया, जिसे हम कायाकल्प के नाम से जानते हैं। काया का मतलब है शरीर और कल्प का मतलब है इसे स्थापित करना, इसमें स्थायित्व लाना। इसका एक अर्थ है शरीर को लंबे समय तक बनाए रखना। कल्प समय की एक इकाई भी है, जो काफी लंबी होती है, आप इसे सदी के रूप में समझ सकते हैं। तो आप इस शरीर को सदियों तक टिकाए रखना चाहते हैं। ऐसे कई लोग हुए हैं, जो कई सौ साल जिंदा रहे, क्योंकि उन्होंने कायाकल्प का अभ्यास किया था। इस प्रक्रिया में आप अपने शरीर के बुनियादी तत्त्व मिट्टी को अपने वश में कर लेते हैं। भूतशुद्धि में एक आयाम मिट्टी भी है, जिसके जरिए इस तत्त्व को, बल्कि जीवन-रस को अपने सिस्टम में लाने की काबिलियत पैदा की जाती है। आप पारे को ठोस रूप में बदलते हैं। इसमें द्रव (लिक्विड) को एक ठोस के रूप में स्थापित किया जाता है। चूंकि पारे को धरती का रस माना गया है, ऐसे में अगर आप एक ऐसे द्रव (लिक्विड) को, जो प्राकृतिक तौर पर ठोस अवस्था में नहीं रहता, उसे ठोस में बदलने में कामयाब हो जाते हैं, तो यही कायाकल्प है।

खुद को एक चट्टान की तरह बना सकते हैं

मानव शरीर के कई पहलू समय के साथ खराब होने लगते हैं, पर आप उन्हें इस तरह से स्थिर कर देते हैं कि ये बदलाव पूरी तरह रुक नहीं जाता, पर इस हद तक धीमा हो जाता है कि ऐसा लगता है कि आपकी उम्र ढल ही नहीं रही। फिर आप एक ऐसी काया बन जाते हैं, जो युगों तक टिकी रहती है। अपने यहां ऐसे बहुत से लोग हुए हैं, लेकिन इसके लिए शरीर को पत्थर की तरह बनाने के लिए बहुत अधिक काम करने की जरूरत होती है।

पीनियल ग्लैंड से निकलने वाले अमृत के अलग-अलग गुण

यह क्षमता कई अलग-अलग तरीकों से आती है। कायाकल्प का एक खास आयाम है। मानव शरीर में एक पीनियल ग्लैंड होता है। योग साधना में इसे नीचे की ओर लाने की कोशिश की जाती है, जिसे दक्षिण की ओर बढ़ना कहते हैं। इसका एक प्रतीक शिव का दक्षिण की ओर बढ़ना भी है, क्योंकि उनकी तीसरी आंख दक्षिण की ओर बढ़ी थी। जो माथे में ऊपर की ओर थी, वह दोनों आंखों के बीच नीचे की ओर आ गई। जैसे ही ये नीचे आई, उन्हें ऐसी-ऐसी चीजें दिखाई दीं, जिसे कभी किसी ने नहीं देखा था। अगर किसी खास तरीके से ऐसा हो जाए तो पीनियल ग्लैंड से एक स्राव (डिस्चार्ज) होता है, जिसे योग में अमृत कहा गया है। इस अमृत को या तो आप अपने सिस्टम में लेकर उसे मजबूत करके अपने शरीर की उम्र बढ़ा सकते हैं या फिर इस अमृत से सिस्टम में परमानंद पैदा कर सकते हैं। किसी नशीले पदार्थ की तरह यह आपमें जबरदस्त विस्फोट भी भर सकता है। आप चाहें तो इस अमृत का इस्तेमाल अपने बोध को बढ़ाने के लिए भी कर सकते हैं।

-सद्गुरु जग्गी वासुदेव


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