श्री विश्वकर्मा पुराण

By: Mar 10th, 2018 12:05 am

हे देवेश! मैं आपके लिए सब तीर्थों में से लाया हुआ समशीतोष्ण ऐसा स्नान के लिए अत्यंत सुख को देने वाला यह जल अर्पित करता हूं। आप इसे ग्रहण करो, यह मंत्र बोलकर प्रभु की प्रतिमा को स्नान कराना चाहिए…

आवाहयामि देवेश विश्वकर्मन जगद्गुरो।

गृहिता पूजनं नाथ ममं सौख्यं च देहिशम।।

हे देवताओं के ईश्वर! मैं आपका आवाहन करता हूं, आप यहां पधारो तथा मेरे ऊपर कृपा करके मेरा अपर्ण किया हुआ यह पूजन आप स्वीकार करो तथा मुझे सुख तथा कल्याण दो। इस प्रकार बोलकर आवाहन कर हाथ में रखे हुए चंदन, फूल बगैरह को उनके ऊपर चढ़ाना इसके बाद आसन अर्पण करने की भावना से नीचे का मंत्र बोलना।

रम्यं दृढं नवं चंदनाभ्य विनिर्मितं।

आसनं देवदेवेश गृहाणत्वं प्रसीदृमे।।

हे देवादिदेव! चंदन के काष्ठ में से बनाया हुआ अति सुंदर दिव्य आसन है, ये आप ग्रहण करो तथा मेरे ऊपर प्रसन्न हों। इस प्रकार बोल कर प्रभु को आसन अर्पण कर हाथ में रखे अक्षत ऊपर पधराने का पाद्य मंत्र बोलना चहिए।

उष्णशीत समोपेतं जलं पद्यार्थ समर्पितम।

विश्वकर्मन् गृहाणत्वं मम सौख्यं सदवह।।

हे विश्वकर्मा! मैंने बराबर के भाग से ठंडा तथा गर्म जल मिलाकर आपके पैर धोने के लिए आपको अर्पण किया है, तो आप इस जल को ग्रहण करो तथा हमारे सुख में वृद्धि करो। इस मंत्र से प्रभु के पैर धोने के लिए जल अर्पण करना चाहिए और इसके बाद नीचे के मंत्र से प्रभु को अर्घ्य देना चाहिए।

अर्घ्ष गृहाण देवेश सफलं सुजलं शुभम।

तेनेत्वं भवःसुप्रीतो वरद फलदः सदा।।

हे प्रभु! फल तथा जल के साथ ऐसा उत्तम अर्घ्य ग्रहण करो  उससे आप हमारे ऊपर प्रसन्न होकर उत्तम फल देने वाले तथा हमेशा वरदान देने वाले बनो।

आचमन का मंत्र

सुगंधि द्रव्य संयुक्त तीर्थांतीतं शुभं जलम।

आचंयतां महादेवे प्रसन्नी भव सर्वदा।।

महादेव! सब तीर्थों में से लाया हुआ तथा सुगंधी वाले पदार्थों से युक्त ऐसा ये जल आप आचमन करने हेतु ग्रहण करो तथा हमेशा प्रसन्न रहो, इस प्रकार बोलकर प्रभु को आचमन के लिए जल अर्पण करना चाहिए।

स्नान का मंत्र

कोटि तीर्थ समानीतं शीतोष्णं सुखदं मया।

स्नानार्थ तब देवेश जलत्वं प्रति गृह्यताम।।

हे देवेश! मैं आपके लिए सब तीर्थों में से लाया हुआ समशीतोष्ण ऐसा स्नान के लिए अत्यंत सुख को देने वाला यह जल अर्पित करता हूं, इसे ग्रहण करो। यह मंत्र बोलकर प्रभु की प्रतिमा को स्नान कराना चाहिए।

कृष्णधेनु समद्दभूत दधि दुग्धपुत घृत।

शर्करा मधु संयुक्त स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम।।

हे देव! कपिला गाय से उत्पन्न हुआ दूध, दही तथा घी से युक्त और शहद तथा शक्कर मिला हुआ, यह पंचामृत मैं आपके स्नान के लिए अर्पण करता हूं, आप स्वीकार करो।

गंधोदक का मंत्र

सर्व सौगंध संयुक्त सर्वसौख्य कर परम।

गंधोदक गृहाणदं मया प्रीत्या समर्पितम।।

हे देव! सभी सुगंधी वाले पदार्थ से युक्त ऐसा ये सुगंधी वाला जल मैं आपके स्नान के लिए प्रेम से अर्पण करता हूं, आप उसको स्वीकार करो।

विसंतु मयं शुभ्रं काशेयं पीतवर्णकम्।

वस्त्रं गृहाण देवेश मया भक्त्या कमर्पितं।।

हे देवेश! विसतंतू में से निर्माण हुआ पीले रंग का स्वच्छ ऐसा रेशमी वस्त्र में आपको भक्तिपूर्वक अर्पण करता हूं, तो आप उसको ग्रहण करो।


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