सरकार को कोर्ट के फैसले का है इंतजार, विपक्ष लाल

By: Mar 9th, 2018 12:06 am

भाखड़ा विस्थापितों को राहत पर सदन में तीखी नोक-झोंक

शिमला – गुरुवार को हिमाचल विधानसभा में भाखड़ा विस्थापितों द्वारा किए गए कब्जों के नियमितीकरण के मामले में प्रदेश सरकार ने 28 मार्च को प्रदेश उच्च न्यायालय का फैसला आने तक रुकने की बात कही, वहीं विपक्ष तुरंत कोई ठोस नीति बनाने की मांग करता रहा। नयनादेवी के विधायक रामलाल ठाकुर ने यह मसला उठाया तो मुख्यमंत्री द्वारा जवाब के लिए अधिकृत आईपीएच मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि सरकार भाखड़ा विस्थापितों के मसलों पर संवेदनशील हैं। उनके बलिदानों को भुलाया नहीं जा सकता। सरकार 28 मार्च तक प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार करेगी। सरकार के जवाब से नाराज कांग्रेस ने वाकआउट कर दिया।  इससे पहले इस मामले को लेकर नयनादेवी के विधायक रामलाल ठाकुर द्वारा लाए गए गैर सरकारी संकल्प पर पूरा सदन एकमत रहा, मगर नई नीति पर मौन ही रहा। यही नहीं, इस मसले पर सत्तापक्ष व विपक्ष के बीच तीखी नोक-झोंक भी देखने को मिली। विपक्ष नई नीति की मांग कर रहा था, जिसमें देशहित में सबसे बड़ी कुर्बानी देने वाले भाखड़ा विस्थापितों को राहत देने की वकालत थी, तो सत्तापक्ष इस दलील पर अड़ा था कि उच्च न्यायालय का कोई भी फैसला आने तक नई नीति कैसे बन सकती है। हालांकि यह संकल्प भाजपा के बहुमत के आगे सदन में गिर गया, मगर कांग्रेस विधायक रामलाल ठाकुर इससे इतने नाराज हुए कि वह सदन से बाहर जाने लगे और उनके पीछे कांग्रेस के अन्य विधायक भी वाकआउट कर गए। आईपीएच मंत्री ने कहा कि जब भाखड़ा बांध बना तो उस दौरान न सरकारों को और न ही विस्थापितों में जागरूकता थी। उस दौरान किए गए समझौता हस्ताक्षरों में कई तरह की विसंगतियां रह गईं। हजारों लोग बेघर हुए। बेशकीमती जमीनें पानी में डूब गईं। विस्थापितों को भू-अधिग्रहण तक की जानकारी नहीं थी, जबकि अब नए प्रोजेक्टों में विस्थापित होने वाले कहीं ज्यादा जागरूक हैं। भाखड़ा विस्थापितों को तब पता लगा, जब उनकी जमीनें डूब गईं। उन्होंने चर्चा में भाग लेने वाले सत्तापक्ष व विपक्ष के विधायकों द्वारा उठाए गए विस्थापितों के हकों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि यह भी सही है कि सबसे बड़ा बलिदान देने वाले विस्थापितों के घर-परिवार बढ़ गए हैं। प्लॉट छोटे पड़ने लगे हैं। मुआवजे व पुनर्वास स्कीम के तहत भी विस्थापित समिति ने नई नीति की मांग जयराम सरकार से की है, मगर संबंधित मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 में भी भाजपा सरकार ने एक्ट में संशोधन किया था कि विस्थापितों के अवैध कब्जों का नियमितीकरण हो। इसे भी उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई व इस पर रोक लग गई। पूर्व वीरभद्र सरकार ने 150 वर्ग मीटर तक के कब्जों के नियमितीकरण के लिए कैबिनेट में निर्णय लिया। अधिसूचना भी जारी की गई, मगर उससे भी लाभ नहीं मिला। अब सरकार प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार करेगी। तब तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता, जब तक उच्च न्यायालय का फैसला नहीं आ जाता।


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