1500 ने लिखी रोजगार की नई कहानी

By: Mar 25th, 2018 12:02 am

देहरादून— उत्तराखंड के बागेश्वर जिला का दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र दिगोली में करीब 200 महिलाएं तल्लीन होकर सूत कातने के साथ कपड़े भी बुन रही हैं। पास ही कुछ महिलाएं प्राकृतिक रंग तैयार करने में जुटी हैं। ऐसा ही दृश्य चीन की सीमा से लगे पिथौरागढ़ जिले के सात अवनी केंद्रों पर भी रोजाना साकार होता है। करीब 1500 ग्रामीण महिलाएं इन दो जिलों के दर्जनभर केंद्रों से जुड़ी हैं। रोजमर्रा के काम निपटाने के बाद वे यहां आकर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूती देती हैं। इस योगदान के लिए अवनी संगठन को बीते आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों नारी शक्ति सम्मान से नवाजा गया। उत्साह से लबरेज संगठन की संस्थापक सदस्य रश्मि भारती इस सम्मान को अपने संगठन के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानती हैं। कहती हैं, इससे महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिलेगी। बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिले में अवनि संगठन ने 1500 ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मुहैया कराया है। ऊनी और रेशमी कपड़े तैयार कर इन महिलाओं ने पिछले पांच साल में करीब ढाई करोड़ रुपए की आय अर्जित की। इस योगदान के लिए अवनि संगठन को राष्ट्रपति के हाथों नारी शक्ति सम्मान से नवाजा जा चुका है। ऊन से बने शॉल और स्टोल के साथ रेशमी कपड़े भी बनाए जाते हैं। इसके लिए धारचूला के सीमावर्ती गांवों और हर्षिल घाटी के भेड़पालकों से ऊन खरीदी जाती है। अवनी संस्था से जुड़े कुल लाभार्थियों में 76 प्रतिशत महिलाएं हैं। बीते पांच वर्षों में ग्रामीण समुदाय की ओर से 2.40 करोड़ की आय अर्जित की गई।

पहली बार इंडिगो की खेती

इंडिगो मुख्य रूप से नील की ही प्रजाति है। इसका इस्तेमाल कपड़े रंगने में होता है। संगठन ने बागेश्वर और पिथौरागढ़ की पथरीली जमीन पर इंडिगो की खेती शुरू की। रश्मि बताती हैं कि इसकी खेती में कम पानी लगता है। साथ ही बंदर भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते।

ऊन व रेशम से कमाई

रश्मि बताती हैं कि पहाड़ से लगाव 25 साल पहले मुझे दिल्ली से बेरीनाग (पिथौरागढ़) खींच लाया। यहां की समस्याएं देखीं तो लोगों के लिए कुछ करने की इच्छा जागी। फिर मैंने दिल्ली में मित्र रजनीश जैन से यह विचार साझा किया और 1999 में दोनों ने मिलकर बेरीनाग में अवनी संगठन की नींव रखी। पहले 34 महिलाएं जुड़ीं और आज 1500 महिलाएं संगठन के माध्यम से रोजगार पा रही हैं। वह बताती हैं कि सभी केंद्रों में ऊन और रेशम की कताई-बुनाई के साथ प्राकृतिक तरीके से रंग बनाने का भी काम होता है। इन केंद्रों के जरिए गांव की महिलाओं को प्रशिक्षण देकर काम दिया जाता है। बागेश्वर में दिगोल, बासती, धर्मगढ़ व थांगा और पिथौरागढ़ में चनकाना, सुकना व त्रिपुरादेवी आदि स्थानों पर अवनि के प्रशिक्षण केंद्र स्थापित हैं।


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