कैग के निशाने पर सार्वजनिक उपक्रम

By: Apr 6th, 2018 12:07 am

हिमाचल के 10 निगम-बोर्डों ने सरकार को नहीं दिया लाभांश, सिर्फ दो ही चल रहे फायदे में

शिमला— नियंत्रक एवं महालेखाकार (कैग) ने वर्ष 2016-17 की अपनी रिपोर्ट में प्रदेश सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को निशाने पर लिया है। कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि कुल 21 क्रियाशील सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में से 12 के ऑडिट में सामने आया है कि मात्र दो निगमों ने ही लाभांश कमाकर सरकार को दिया। शेष 10 ने सरकार को लाभ के रूप में फुटी-कौड़ी तक नहीं दी। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों में निवेश का अधिक जोर ऊर्जा क्षेत्र पर रहा, जिसमें 12657.73 करोड़ रुपए का कुल निवेश किया गया।  12 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने 24.29 करोड़ का कुल लाभ अर्जित किया, जिसमें से मात्र दो सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, जिनमें नागरिक आपूर्ति निगम व औद्योगिक विकास निगम शामिल हैं, ने 2015-16 के दौरान 1.89 करोड़ का लाभांश घोषित किया। लाभ अर्जित करने वाले शेष 10 सार्वजनिक उपक्रमों ने सरकार को लाभांश का हिस्सा नहीं दिया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश पावर कारपोरेशन की काशंग जल विद्युत परियोजना को कठघरे में खड़ा किया है। वहीं राज्य बिजली बोर्ड लिमिटेड पर भी कटाक्ष किए हैं। नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने प्रदेश में काशंग पन बिजली परियोजना के निर्माण में देरी पर सवाल खड़े किए हैं। कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि परियोजना के निर्माण कार्य में देरी की वजह से न सिर्फ इसकी प्रति यूनिट बिजली उत्पादन की लागत लगभग दोगुनी हो गई, बल्कि इसका नुकसान प्रोजेक्ट स्थापित कर रही हिमाचल पावर कारपोरेशन को भी हुआ है। परियोजना के पहले चरण की स्थापना में ही करीब सात साल का समय लगा तथा यह दो साल विलंब से पूरा हुआ। कांशग प्रोजेक्ट की स्थापना के मकसद से सरकार ने साल 2003 में ब्यास सतलुज जल विद्युत निगम की स्थापना की गई, मगर सरकार ने अगस्त 2007 में इस निगम का हिमाचल पावर कारपोरेशन में विलय कर दिया। काशंग प्रोजेक्ट का निर्माण तीन चरणों में होना प्रस्तावित है। पहले चरण में 195 मेगावाट, दूसरे में 65 तथा तीसरे चरण में प्रोजेक्ट से 130 मेगावाट बिजली का उत्पादन होना है, मगर सरकार ने इसे दो चरणों में ही तकनीकी आर्थिक मंजूरी प्रदान की। पहले चरण के लिए 478.02 करोड़ तथा दूसरे चरण में 488.19 करोड़ की तकनीकी आर्थिक मंजूरी सरकार ने दी। इस राशि पर 676 करोड़ ऋण तथा 289 करोड़ से अधिक का राज्य का हिस्सा था। प्रोजेक्ट के दोनों चरणों का निर्माण कार्य 2014 तथा 2015 के बीच पूरा होना था। पहले चरण का निर्माण 2009 में शुरू किया गया। इसे 2014 में पूरा होना था, मगर यह 2016 में पूरी हुई। काशंग प्रोजेक्ट के दोनों चरणों के पूरा होने में हो रहे विलंब से खजाने पर 651 करोड़ से अधिक का अतिरिक्त बोझ पड़ा। कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि काशंग के पहले चरण का निर्माण 478 करोड़ के बजाय 789 करोड़ से भी अधिक रकम खर्च कर पूरा हुआ। नतीजतन प्रति यूनिट बिजली की लागत वर्तमान के 2.20 रुपए के बजाय 4.78 रुपए तक पहुंच गई।

अपनी गलतियों से नुकसान में बिजली बोर्ड

कैग ने कहा है कि विभिन्न फील्ड इकाइयों से प्राप्त मासिक लेखों का कंपनी के मुख्य बैंक खाते के साथ अनिवार्य मैनुअल मिलान का संचालन करने में विलंब हुआ, जिसके चलते बिजली बोर्ड को 5.36 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है। बिजली बोर्ड ने कर्मचारियों के भविष्य निधि खातों में जमा संशोधित वेतन तथा भत्तों के लाभ वापस लेते हुए ब्याज के रूप में भुगतान किए गए 37.05 लाख के वित्तीय लाभ की वसूली नहीं की थी। विद्युत लोड को पकड़ने का कोई तंत्र नहीं होने के चलते 36.78 लाख रुपए का नुकसान भी बोर्ड को उठाना पड़ा है।

एचपीएमसी को 18.15 करोड़ का घाटा

कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सेब जूस मिश्रण, सेब के खराब होने, ईंधन की अधिक खपत तथा वितरण को कमीशन के भुगतान के कारण बाजार हस्तक्षेप स्कीम के क्रियान्वयन पर 2.61 करोड़ रुपए की हानि एचपीएमसी को उठानी पड़ी है। साथ ही बागबानों को भी समय पर राशि का भुगतान इस कारण से नहीं हो सका। वहीं तय करार के मुताबिक एक कंपनी से एचपीएमसी ने ब्याज की वसूली नहीं की, जिस कारण से उसे 15.54 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।


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