दो बंदरों की  गाथा 

By: Apr 22nd, 2018 12:05 am

कहानी

पहले बंदर ने कहा, मुझे तो इन फलों में कुछ बुरा नहीं दिख रहा। मैं तो फल खाने के लिए पेड़ पर चढूंगा। ‘जैसी तुम्हारी इच्छा’ बुद्धिमान बंदर ने कहा, मैं खाने के लिए कुछ और ढूंढता हूं। पहला बंदर पेड़ पर चढ़कर फल खाने लगा और उसने जी भर के फल खाए, लेकिन वे फल उसका अंतिम भोजन बन गए क्योंकि फल जहरीले थे. …

दो बंदर एक दिन घूमते-घूमते एक गांव के समीप पहुंच गए और उन्होंने वहां सुंदर व मीठे प्रतीत होने वाले फलों से लदा हुआ एक पेड़ देखा। ‘इस पेड़ को देखो! एक बंदर ने दूसरे से चिल्लाकर कहा, यह फल कितने सुंदर दिख रहे हैं। ये अवश्य ही बहुत स्वादिष्ट होंगे! चलो हम दोनों पेड़ पर चढ़कर फल खाएं।

दूसरा बंदर बुद्धिमान था, उसने कुछ सोचकर कहा, नहीं, नहीं। एक पल के लिए सोचो। यह पेड़ गांव के इतने समीप लगा है और इसके फल इतने सुंदर और पके हुए हैं, लेकिन यदि यह अच्छे फल होते तो गांव वाले इन्हें ऐसे ही क्यों लगे रहने देते। लोगों ने इन्हें अवश्य ही तोड़ लिया होता, लेकिन ऐसा लगता है कि किसी ने भी इन फलों को हाथ भी नहीं लगाया है। इन्हें मत खाओ। मुझे विश्वास है कि ये फल खाने लायक नहीं हैं। कैसी बेकार की बातें कर रहे हो! पहले बंदर ने कहा, मुझे तो इन फलों में कुछ बुरा नहीं दिख रहा। मैं तो फल खाने के लिए पेड़ पर चढूंगा। ‘जैसी तुम्हारी इच्छा’ बुद्धिमान बंदर ने कहा, मैं खाने के लिए कुछ और ढूंढता हूं।

पहला बंदर पेड़ पर चढ़कर फल खाने लगा और उसने जी भर के फल खाए, लेकिन वे फल उसका अंतिम भोजन बन गए क्योंकि फल स्वादिष्ट तो थे परंतु जहरीले थे। दूसरा बंदर जब कहीं और से खा-पी कर आया, तो उसने पेड़ के नीचे अपने मित्र को मरा हुआ पाया। उसे यह देखकर बहुत दुःख हुआ, लेकिन वह तो पहले ही अपने मित्र को सावधान कर चुका था।

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