लाहुल के पियूक्र में एक उत्सव बेटी के नाम

By: Apr 3rd, 2018 12:20 am

लाड़ली होने पर ‘गोची’ के जश्न में डूब जाता है गांव, जलाई जाती हैं मशालें

केलांग – हिमाचल में एक जिला ऐसा भी है, जहां बेटियों के पैदा होने पर दुख नहीं, बल्कि जश्न मनाया जाता है। प्राचीन परंपरा का निर्वहन कर रही लाहुल की इस संस्कृति को आज भी कबायलियों ने संजोए रखा है। लाहुल की गाहर वैली के पियूक्र गांव में आज भी इस परंपरा का प्रचलन है। यहां बेटी के पैदा होते ही मां-बाप जश्न की तैयारी में जुट जाते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में ‘गोची’ कहते हैं। यहां बता दें कि लाहुल की अन्य घाटियों में यह प्रचलन है कि बेटे के पैदा होने के कुछ दिन बाद ‘गोची’ (मुंडन संस्कार) किया जाता है। ऐसे में लाहुल की गाहर वैली के पियूक्र गांव में बेटियों के पैदा होने पर भी गोची उत्सव मनाया जाता है, लेकिन लड़कों की तरह लड़कियों का मुंडन नहीं किया जाता। जिनके घर लड़की पैदा हुई होती है, वे इस उत्सव में रिश्तेदारों व ग्रामीणों को बुला यहां भव्य समारोह का आयोजन करते हैं। इस दौरान ग्रामीण तीरंदाजी की प्रतियोगिता भी पियूक्र में करते हैं। एक ओर देश में जहां बेटियों के प्रति घृणित सोच का बोलबाला बढ़ता जा रहा है और बेटियों को संसार में आने से पहले ही कोख में मारा जा रहा है, वहीं हिमाचल में एक ऐसा क्षेत्र भी है, जहां बेटियों के पैदा होने पर पूजा-अर्चना ही नहीं, बल्कि उत्सव भी मनाया जाता है। पश्चिमी हिमालय की गोद में बसे शीत मरूस्थल जिला लाहुल-स्पीति की गाहर वैली में सदियों से बेटियों का जन्म अभिशाप नहीं समझा जाता, बल्कि पैदा होने पर उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान कबायली लोग बेटियों की पूजा-अर्चना कर उनकी लंबी उम्र की दुआएं भी करते हैं। केलांग पंचायत के उपप्रधान दोरजे उपासक का कहना है कि गाहर वैली के पियूक्र गांव में आज भी यह प्रथा प्रचलित है। बेटियों के लिए समर्पित इस उत्सव के शुरू होने से घाटी में रौनक रहती है। उपायुक्त अश्वनी चौधरी बताते हैं कि उन्होंने भी इस प्रथा के बारे में सुना है। लाहुल की गाहर वैली के पियूक्र गांव में बेटियों के जन्म पर मनाए जाने वाले इस उत्सव की अपनी ही पहचान है।

बेटियों की कामना

यहां बेटी के जन्म के एक वर्ष बाद उत्सव का आयोजन किया जाता है। गाहर वैली के लोग इस दौरान मशालें निकालकर एक निश्चित स्थान पर एकत्रित होते हैं और यहां शिव पुत्र कार्तिकेय की पूजा करते हैं। पूजा में बेटियों को ही अग्रिम पंक्तियों में रखा जाता है और भगवान कार्तिकेय से गांव में अधिक से अधिक बेटियां पैदा होने की कामना की जाती है। लोग अपनी पारंपारिक व प्राचीन संस्कृति का संरक्षण करते हुए प्राचीन वेशभूषा में सज-धज कर यहां पहुंचते हैं।


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