संस्कार की जड़ें बचपन से जुड़ी हैं..

By: Apr 22nd, 2018 12:05 am

बच्चे जो भी व्यवहार करते हैं उसकी जड़ें बचपन से जुड़ी होती हैं। बच्चों का दिमाग वह कोरी स्लेट होता है जिस पर हम जो चाहें लिख सकते हैं। यह प्रक्रिया जन्म से लेकर चार-छह वर्षों तक चलती रहती है। इस उम्र में माता-पिता को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। अगर आपको उन्हें संस्कारी बनाना हो तो आपको अपने फर्र्ज से नहीं चूकना चाहिए। बच्चों को संस्कार उपदेश देकर नहीं सिखाए जा सकते। बच्चे वही सीखते हैं, जो माता-पिता को करते देखते हैं। उन्हें स्वयं के व्यवहार में वे बातें अपनानी होंगी जो बच्चों के हित में हों। जैसे आपके गुण होंगे, बच्चे वैसा ही सीखेंगे।

हर बच्चा यूनीक होता है

हर किसी का पेरेंटिंग स्टाइल अलग होता है। इसे एक निश्चित फॉर्मूले में बांध कर नहीं रखा जा सकता। सभी बच्चे भी एक समान नहीं होते हैं। उनकी सारी आदतें एक-दूसरे से अलग होती हैं। कोई ज्यादा शरारती होता है, तो कोई थोड़ा कम। ऐसे में उन्हें अपने माहौल में ढालने के लिए थोड़ी मेहनत तो आपको करनी ही पड़ेगी। सबसे ज्यादा परेशानी उन महिलाओं के साथ है, जो वर्किंग हैं। प्रोफेशनल लाइफ  के साथ उन्हें अपने बच्चों के लिए भी समय निकालना जरूरी होता है। आप क्वालिटी टाइम देकर उसे सही मार्गदर्शन दे सकती हैं।

व्यावहारिक बातें भी हैं जरूरी

बच्चे में अच्छे संस्कार विकसित करना चाहती हैं, तो व्यावहारिक बातें समझाना भी बेहद जरूरी है। उसे बचपन से ही सिखाएं कि बड़ों से कैसे बात की जाए। बड़ों का अभिवादन करना, थैंक्यू और सॉरी कहना जरूर सिखाएं।  कुछ चीजें तो वह आपसे देखकर ही सीख सकता है। इसलिए आप भी अपने व्यवहार में थोड़ा बदलाव लाएं और उनकी रोल मॉडल बनें।

बातचीत से जीतें विश्वास

बच्चों के नजदीक रहने और उनके मन की बात को जानने का सबसे सरल तरीका है उनसे बातचीत करना। आप बच्चों से बात करके उनका विश्वास जीत सकती हैं। बातचीत के जरिए ही आप बच्चे से सब कुछ शेयर कर सकती हैं। इस तरह वे अपने मन की बात आपसे कहने से नहीं डरेंगे। वे अपनी हर बात आपसे शेयर करेंगे। बच्चों पर जरूरत से ज्यादा नियंत्रण भी न रखें। उन्हें भी थोड़ा स्पेस दें और उन्हें कभी-कभी अपने मन की करने दें। कई बार पेरेंट्स बच्चों के साथ जरूरत से ज्यादा सख्ती बरतते हैं। ऐसे में बच्चे डर के चलते झूठ का सहारा लेने लगते हैं। इसलिए ऐसा माहौल कभी न बनाएं।

पढ़ाई को हौव्वा न बनाएं

पेरेंट्स बच्चों पर पढ़ाई को लेकर बहुत दबाव बनाते हैं, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। हर दिन थोड़ा-थोड़ा अच्छी तरह से पढ़ाएं और समय पर खुद रिवीजन करवाएं, तो बच्चों पर दबाव नहीं बनेगा। जिस विषय में कमजोर है वहां आप उसके साथ एक्स्ट्रा मेहनत करें।

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