सरकारी उत्साह से उम्मीदों तक

By: Apr 28th, 2018 12:05 am

अपने मंत्रिमंडलीय फैसलों की तहजीब में हिमाचल सरकार बेशक मंजिलें लांघने की जुस्तजू रखती है, लेकिन प्रस्तुति से स्तुति तक पहुंचने की मंजिलें अलग भी होती हैं। गुरुवार की मंत्रिमंडलीय बैठक का गुरुत्त्व नए रोजगार का वजन बढ़ाता है, तो युवा आशाओं के समुद्र से कुछ लहरें अवश्य ही हलचल पैदा करेंगी। हम फैसलों की आवश्यकता व उपयोगिता में चिन्हित सरकार के लक्ष्यों की तारीफ कर सकते हैं और यह भी मान सकते हैं कि जनापेक्षाओं पर खरा उतरने का एक और पैगाम दिया जा रहा है, लेकिन ऐसे अनेक सफेद पन्ने बाकी हैं, जहां सरकार को तुरंत हस्ताक्षर करने चाहिएं। राज्य का परिदृश्य हर दिन अपने साथ एक सूरज और एक रात्रि लेकर आता है, लेकिन हर परिस्थिति में सरकार की रोशनी चाहिए-उजाले चाहिए। बेशक सरकार के मंत्री हर दिन और हर मंच को रोशन करते हैं-उम्मीदें भरते हैं, लेकिन घोषणाओं व मंत्रिमंडलीय फैसलों के अमल में लाने की दूरी दिखाई देती है। हर मंच गूंजता है, चाहे गांव का छोटा सा मेला-छिंज हो या विकास के असीम उद्देश्य में विपक्ष के खिलाफ गर्जन हो, लेकिन जनता और सरकार की प्रमाणिकता में अंतर अब स्पष्ट हो चला है। उदाहरण के लिए पर्यटन सीजन को दीवारों में चिने जाने की खबरें राज्य के कमोबेश हर हिस्से से आ रही हैं, लेकिन सरकार क्या करना चाहती है किसी को मालूम नहीं। कसौली, मनाली, धर्मशाला या मकलोडगंज के होटलों के दरवाजे बंद हो रहे हैं या नशे की खेप में युवा प्रतिभा डूब रही है, तो कार्रवाई का मतलब कब पता चलेगा। सांसद शांता कुमार भी अगर कोटखाई जांच से असंतुष्ट हैं, तो हमारे आसपास के माहौल की अशांति और क्या होगी। शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज को निदेशालय की कुर्सियों से ही कर्मचारी बदलने में विरोध का सामना करना पड़ा, तो स्थानांतरण संबंधी नीति पर मंत्रिमंडल की खामोशी टूटनी चाहिए। हमें याद है कि पूर्व सरकार की कार्यप्रणाली पर भाजपाई आपत्तियां आसमान पर थीं और जिस प्रमाणिकता से चार्जशीट ईजाद हुई, उस पर कार्रवाई की उम्मीद तो अब की जा सकती है। हाल ही में हुई कुछ आत्महत्याओं या सड़क दुर्घटनाओं में युवाओं की शिनाख्त यह सोचने पर विवश कर रही है कि हम जा किधर रहे हैं। क्या हमारी उपलब्धियों के ठीक नीचे जो चिराग बुझ रहे हैं, उस पर विवेचन जरूरी नहीं। क्या होटलबंदी से गुजरते पर्यटक सीजन पर चिंता करना भी अवैध होगा। हमारे संबोधनों में कितनी राज्य स्तरीय व्यापकता है, यह मंत्रियों की प्राथमिकता में नजर नहीं आ रही है। यह दीगर है कि अपने विधानसभाई क्षेत्रों में अपने-अपने महकमे का अलख जगाकर मंत्रियों का फर्ज बढ़ गया है। अगर हम हरियाणा की तर्ज पर खेलों को बढ़ावा देना चाहते हैं, तो मंत्रिमंडल को इसके मुताबिक महत्त्वपूर्ण ऐलान करना होगा। इसी तरह युवा, स्वरोजगार, हर्बल, कृषि, शिक्षा, पर्यटन व नगर नियोजन की नीतियों व निर्देशों पर फैसलों का कड़क आगाज भी तो चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि वर्तमान सरकार ने भी कई अधिकारी बदल दिए, लेकिन ढर्रा बदलने के लिए मंत्रिमंडल को ठोस फैसले भी तो लेने होंगे। जनता आज भी परिवहन निगम डिपुओं के बाहर बेकार वाहनों को कंडम होते देख कर पूछती है कि उसकी राह पर कब बस सेवा शुरू होगी। कब सड़कों पर कब्जा जमाए वाहन किसी पार्किंग स्थल पर रुकेंगे, ताकि आम आदमी को राहत मिले। बेशक सरकार के पास अनेक योजनाएं, कर्मठ शैली व कर गुजरने की शक्ति है, लेकिन मंत्रिमंडल के निर्णय केवल सौहार्द बांटने के लिए ही तो नहीं। हम इमारतों, भर्तियों और नए दफ्तरों की घोषणाओं के अलावा सरकार को दिशा बदलते कोड में देखना चाहते हैं। सरकार का यह सफर केवल पूर्व सरकारों से तुलना का नहीं, बल्कि मंजिलें बदलने का भी तो होना चाहिए। कुछ फैसले तासीर बदलने तक की इबारत होते हैं और उसके लिए मंच नहीं मंशा चाहिए और यही मंतव्य हर मंत्रिमंडलीय बैठक में चुना जाए, तो किश्तियां बदलेंगी। देखना तो यह है कि प्रशासनिक फेरबदल से सरकार की मशीनरी कैसे दौड़ रही है और किस तरह केंद्र से राज्य तक की योजनाओं को गति मिल रही है। स्वच्छता अभियान को ही लें, तो क्या हिमाचल को बदलने की कोशिश हो रही है। क्यों नहीं हर अधिकारी से यह पूछा जाए कि उसके कार्यालय परिसर में गंदगी क्यों है। क्या सभी जिलाधीशों के कार्यालय चकाचक हैं। विडंबना भी यही है कि मंच पर सफाई अभियान के राजदूत दिखाई देते आला आफिसर अपने दफ्तर की मर्यादा में सफाई का कालीन नहीं बिछा पाते।

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