सरकार के कंधों का संघर्ष

By: Apr 25th, 2018 12:05 am

हिमाचली चिंताओं का पिटारा कोई नया नहीं, फिर भी यह हर सरकार के कंधों की ताकत का संघर्ष है और जिसे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी खाली करने की इबादत में केंद्र का रुख कर रहे हैं। जाहिर है अभ्यास के अपने आयाम चुन रही प्रदेश सरकार अगर केंद्रीय बजट की जमीन पर हिमाचली रंगोली बना पाती है, तो मुश्किलें आसानी से फना हो सकती हैं। केंद्र की शरण में 1644 करोड़ की परियोजनाओं का मिश्रण, वास्तव में हिमाचली अस्तित्व का अमृत भी है। प्रकृति, पर्यावरण और पर्वत की इस वकालत का अर्थ देश समझता है, लेकिन राजनीतिक पैमानों में हमारे अधिकार बंधक बन जाते हैं। प्रकृति के पर्वतीय संसाधन हमेशा केंद्रीय योजनाओं के निष्पादन से अपने प्रति खास तवज्जो चाहते हैं, लेकिन जल संसाधनों को न कच्चे माल की संज्ञा माना गया और न ही पर्यावरणीय सेवा में जंगलों की आमदनी का मुआवजा मिला। बहरहाल हम केंद्र के कान में अपनी दास्तान सुनाते-सुनाते अब ऐसे मुकाम पर खड़े हैं, जहां एकमुश्त वित्तीय राहत चाहिए, ताकि आर्थिकी का ढर्रा और ढांचा पूरी तरह बदल जाए। अतीत में औद्योगिक पैकेज के माध्यम से हिमाचल को जो मिला, उससे आर्थिकी की परिभाषा बदली, वरना अपनी सीमाओं के भीतर यह प्रदेश खुद को मुकम्मल नहीं कर सकता। यह दीगर है कि औद्योगिक पैकेज से पैदा हुआ बीबीएन क्षेत्र आज भी हिमाचल का आर्थिक साम्राज्य पैदा नहीं कर पाया और न ही ऐसी व्यवस्था बनी, जो इसे स्थायित्व दे पाती। बहरहाल हिमाचल की प्रवत्ति में आर्थिकी के जिस अंश का विस्तार होना चाहिए, उसे पर्यटन के हर मानदंड में सफल बनाना होगा। ऐसे में सरकार द्वारा तीन सौ करोड़ की परियोजनाओं को अगर केंद्र का स्पर्श और प्रश्रय मिले, तो हिमाचली इच्छा शक्ति को चिन्हित करने का रास्ता सुदृढ़ होगा। दूसरी ओर अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिमाचल के मुख्यमंत्री को आगे बढ़ने के तीन रास्ते चुनने की सलाह दे रहे हैं, तो भी हमें सर्वप्रथम पर्यटन को ही चुनना होगा, ताकि अधोसंरचना विकास के साथ-साथ कनेक्टिविटी के हर पहलू को प्राथमिक बनाया जाए। इसके अलावा कृषि-बागबानी तथा हिमाचली गांव से शहरी नियोजन का एक विस्तृत रोड मैप तैयार करना होगा, ताकि किसी तरह का क्षेत्रवाद न बचे। पर्यटन अब विकास की समन्वित मुद्रा से तसदीक होगा और इस लिहाज से नए नेशनल हाई-वे तथा फोरलेन परियोजनाओं के साथ नई मंजिलें जोड़नी होंगी। यानी बदलते परिदृश्य के साथ अभी से कुछ नए व्यापारिक, औद्योगिक, पर्यटन व प्रशासनिक या कर्मचारी शहरों का खाका बना लेना चाहिए। फोरलेन की वजह से कल जब दूरियां घटेंगी, तो कई नए टूरिस्ट सर्किट व शहरी क्लस्टर एक साथ हिमाचल का नक्शा बदल सकते हैं। इन्हीं सड़कों के किनारे मनोरंजन पार्क, ईको टूरिज्म, साइंस सिटी, आईटी व ज्ञान पार्क पूरे प्रदेश को संभावनाओं के नए अक्स से जोड़ पाएंगे। अतः भविष्य की योजनाओं को सड़क परियोजनाओं के धरातल से संबोधित करना होगा। हिमाचल में खेल, साहसिक खेलों, जल क्रीड़ाओं, धार्मिक स्थलों, एग्रो व फलोत्पादन को पर्यटन की महफिल में सजाने के लिए ग्रामीण पर्यटन की अवधारण में मनरेगा का चेहरा बदलना पड़ेगा। पूरे प्रदेश की सिंचाई व विद्युत उत्पादन इकाइयों के जरिए पर्यटन का कमोबेश ऐसा खाका होना चाहिए, जैसे बरोट से जोगिंद्रनगर के शानन में बिजली पैदा करते पानी ने आजादी से पहले ही पर्यटन का भी रंग जमाया है। बेशक रेल व हवाई अड्डों का विस्तार इस दिशा में पर्यटन का रंग चोखा करेगा, लेकिन इससे पूर्व यह तय कर लें कि पहले पटरी कहां बिछाई जाए। ऐसे में पर्यटन की दृष्टि से अगर विकास को प्राथमिक बनाना है, तो प्रदेश की समग्रता को समझना होगा। महज राजनीति के लिए स्की विलेज जैसी परियोजना को तू तू-मैं-मैं के अखाड़े में सजाने से बेहतर है कि पुनः ऐसी बड़ी योजनाएं बनाई जाएं। पौंग व अन्य जलाशयों की परिधि में पर्यटन का एक बड़ा कारवां इंतजार कर रहा है और अगर योजनाएं सियासी पाखंड से हटकर काम करें, तो दृश्य बदलेगा। प्रदेश के स्थानीय निकायों के केंद्र में पर्यटन के मनोरंजन का आधार पुख्ता करेंगे, तो सामान्य नागरिक के लिए भी सुविधाओं का प्रसार होगा। हिमाचल में वास्तविक पर्यटन को आगामी बीस साल की योजना व विजन के साथ मापा जाए, तो अनावश्यक व फिजूलखर्ची रुकेगी। अतीत की कुछ परियोजनाओं को आगे बढ़ाते हुए यह पहल होनी चाहिए कि अगले दो दशकों में हम कहां पहुंचना चाहते हैं।

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