स्कूल परीक्षा में बोर्ड

By: Apr 26th, 2018 12:05 am

हिमाचल स्कूल शिक्षा बोर्ड की जमा दो की परीक्षा हालांकि प्रदेश के सपनों के महल को बुलंदी दे रही है, फिर भी कहीं सरकारी बनाम निजी स्कूलों में मुकाबला हो रहा है। पाठ्यक्रम की सीमाएं और सरकारी क्षेत्र की उपयोगिता के दीपक अंधेरे से लड़ते देखे जा सकते हैं। शोहरत के पैगाम में शिक्षा एक नस्ल की तरह सरकारी व निजी स्कूलों में बंट रही है, तो आर्ट्स पढ़ने के लिए अब सरकारी छत ही बची है। इसे विडंबना कहें या समाज का एक बंटवारा मानें कि सतह पर खड़े आर्ट्स पाठ्यक्रम ने उस तबके को चुना, जो निजी के काबिल नहीं या निजी स्कूलों ने अपने लिए केवल विज्ञान विषय ही चुन लिया। कॉमर्स की मैरिट भी सरकारी स्कूलों  के ईंट व मसाले से रू-ब-रू है, तो क्या हिमाचल का एक अग्रणी समाज बन चुका है, जो अपने बच्चों को ऐसे विषय पढ़ाने से गुरेज कर रहा है। यहां यह भी गौर करना होगा कि स्कूल शिक्षा बोर्ड परीक्षा की मैरिट सूची ही हिमाचली काबिलीयत है या सपनों की उड़ान सीबीएसई या आईसीएसई पाठ्यक्रमों से जुड़े निजी स्कूलों के मार्फत पूरी हो रही है। जाहिर तौर पर हिमाचली काबिलीयत के प्रदर्शन को लेकर अगर निजी और सरकारी स्कूलों के बीच मुकाबला है, तो कहीं स्कूल शिक्षा बोर्ड को भी अन्य दो शिक्षा बोर्डों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। ऐसे में अपने-अपने भविष्य की रेखाओं में जो तलाशी छात्र कर रहे हैं, उसी के अनुरूप विभिन्न बोर्डों की अमानत में शिक्षा अपना स्तर साबित कर रही है। तरह-तरह की मैरिट सूचियों के बावजूद कमोबेश बच्चों के सपने एक सरीखे हैं। जिंदगी के नन्हे कदम जब आकाश की तरफ देखते हैं, तो भविष्य की उम्मीदें पंख ओढ़ लेती हैं। यही वजह भी है कि हर साल एक नया क्षितिज उभरता है और वहां हिमाचली समाज का भी परीक्षा परिणाम दिखाई देता है, तो क्या यह मान लिया जाए कि शिक्षा के आदर्श केवल एक सफलता है। अभिभावकों का मार्गदर्शन, बच्चों की मेहनत या किसी अकादमी के मार्फत परीक्षा का कड़ा अभ्यास ही अब एक फार्मूला बन चुका है। तनाव के सख्त पहरे में परीक्षा प्रणाली की प्रासंगिकता भी यही है कि जब परिणाम आए, तो केवल ऊपरी सतह की हरियाली देखी जाए, वरना शिक्षा के औचित्य में छात्र हैं कहां? एक वे हैं जिन्हें केवल उपाधियों के गणित में शिक्षा पूरी करनी है, तो दूसरे वे हैं, जो प्रतिस्पर्धा के फलक पर अपने संघर्ष की सीढि़यां चुनते हैं। इसलिए जब परीक्षा परिणामों में हिमाचल मुस्कराता है, तो मैरिट की लहरों में प्रतिभा राष्ट्रीय समुद्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करती है। इस हिसाब से स्कूल शिक्षा बोर्ड को हर साल यह मूल्यांकन करना होगा कि उसके तहत पढ़े छात्रों की मंजिलें कहीं गौण तो नहीं और अगर ऐसा नहीं है, तो निजी स्कूलों को अपनी सफलता का राजदूत बनाए। खास तौर पर विज्ञान से हटकर  जो विषय हैं, वहां पाठ्यक्रम की रोचकता, उपलब्धता व प्रामाणिकता बढ़ानी होगी। हमारा मानना है कि स्कूल शिक्षा बोर्ड को परीक्षा परिणामों की परिपाटी को भविष्य की चुनौतियों के साथ जोड़ना होगा, ताकि विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं में भी हिमाचली छात्र अपनी क्षमता को सिद्ध कर सकें। इसके लिए हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड को आठवीं व दसवीं के छात्रों के लिए चयन परीक्षाएं आयोजित करते हुए पांच हजार श्रेष्ठ बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिए आदर्श विद्यालयों में प्रवेश दिलाना चाहिए। स्कूल शिक्षा बोर्ड अपने तौर पर अकादमियों का गठन कर सकता है, ताकि चयनित छात्र अपनी रुचि व प्रतिभा के अनुसार विविध विषयों की अहमियत में अपना रास्ता चुन सकें। स्कूल शिक्षा बोर्ड व विभाग एक समन्वित प्रयास के तहत शहरी स्कूलों को आवासीय स्कूल एवं अकादमियों में तबदील कर सकते हैं, ताकि जमा दो की परीक्षा तक पहुंचे सफर के साथ तमाम राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षाओं के लिए भी सारी तैयारी व्यवस्थित ढंग से की जा सके। ऐसे स्कूलोंं में छात्र न केवल विज्ञान व इतर विषयों में आगे बढ़ने की निपुणता हासिल कर पाएंगे, बल्कि सैन्य सेवाओं व खेलों में भविष्य की वरीयता को साबित कर पाएंगे। प्रदेश सरकार के प्रस्तावित आदर्श विद्यालय अगर भविष्य संवारने के शिविर बनते हैं, तो इनके साथ स्कूल शिक्षा बोर्ड के नए पैमाने जोड़ने चाहिएं।

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