12 आतंकियों को ‘जहन्नुम’

By: Apr 3rd, 2018 12:05 am

2010 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है। उस साल 270 आतंकी ढेर किए गए थे, जो अभी तक सर्वाधिक है। एक अप्रैल, 2018 सेना और सुरक्षा बलों, कश्मीर के आम अवाम के हौसलों का दिन रहा। यह हमारे जांबाज लड़ाकों की रणनीति का दिन भी रहा। एक ही दिन में, कश्मीर में, 12 आतंकियों को ढेर कर, जहन्नुम पहुंचाया गया। वाह…शाबाश…देशभक्ति के निरालों! कमाल कर दिया आपने। वे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी थे, लेकिन ज्यादातर स्थानीय थे। वे कश्मीर में आतंकी हमले की साजिश रच रहे थे। ऐसे आतंकियों को ‘भाई’ कहना या मुल्क का हिस्सा करार देना अथवा उनमें डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, आईएएस बनने की प्रतिभाएं तलाशना भी एक तरह का ‘राष्ट्रद्रोह’ है। ऐसे हमदर्दों के खिलाफ भी आपरेशन चलने चाहिए। जिन पत्थरबाजों ने सुरक्षा ढाल बनकर आतंकियों को बचाने की कोशिशें कीं और आपरेशन में रोड़े अटकाए, उन्हें भी आतंकी मानकर, उनकी एक और हिटलिस्ट तैयार की जानी चाहिए। वैसे सेना, सीआरपीएफ और पुलिस के इन तीन साझा आपरेशनों के दौरान करीब 40 पत्थरबाज घायल हुए और 4 की मौत भी हो गई। फिर भी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को ये पत्थरबाज और पाकिस्तान ‘महबूब’ लगते हैं। मुख्यमंत्री करीब 9700 पत्थरबाजों को ‘मुक्त’ कर चुकी हैं। यह रणनीति भी आतंकवाद को ही पोसती है। 1 अपै्रल का दिन तो सेना और सुरक्षा बलों के लिए तालियां बजाने और सैनिकों की पीठ थपथपाने का है, जब उन्होंने शोपियां और अनंतनाग में तीन अलग-अलग मुठभेड़ों में 12 आतंकियों को मार गिराया और एक आतंकी जिंदा भी पकड़ा गया। क्या वह भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियों के लिए ‘नया कसाब’ साबित होगा? गम की बात यह है कि इस अभियान में हमारे तीन जवान भी ‘शहीद’ हुए। उनकी कमी खलेगी, लेकिन देश-विरोधी दुश्मनों का खात्मा करने की प्रक्रिया से उनकी आत्मा भी प्रसन्न होगी! ‘आपरेशन आलआउट-2’ के तहत यह 2018 का सबसे बड़ा आपरेशन रहा। इस साल अभी तक 27 आतंकी मारे जा चुके हैं। उनमें 15 आतंकी तो मार्च महीने में ही ढेर किए गए। करीब 70 आतंकियों ने मौत के खौफ  से आत्म-समर्पण कर दिया। बीते साल 2017 में आतंकवाद की 335 घटनाओं में सेना और सुरक्षा बलों ने 218 आतंकियों को मारा था। लिहाजा यह रणनीतिक आपरेशन एक बड़ी कामयाबी साबित हो रहा है। सवाल है कि क्या कश्मीर कभी आतंक-आतंकी-मुक्त हो सकेगा? यह तब तक संभव नहीं है, जब तक कश्मीर में हुर्रियत कान्फ्रेंस के अलगाववादी नेता मौजूद रहेंगे या चुनाव जीत कर, सत्ता और सियासत के गलियारों में ऐसे चेहरे पहुंचते रहेंगे, जो देश-विरोधी तत्त्वों को बचाते रहे हैं। कश्मीर का यह आयाम सबसे खतरनाक है। मसलन-मुख्यमंत्री महबूबा हुर्रियत वालों की पैरोकार हैं, उन पर सभी पाबंदियां वापस ले चुकी हैं और पाकिस्तान के साथ बातचीत की बार-बार सशक्त पक्षधर हैं। परोक्ष रूप से वह आतंकियों और अलगाववादी नेताओं को बचा रही हैं। ‘आपरेशन आलआउट’ की सबसे बड़ी कामयाबी के पलटवार में अलगाववादी नेताओं ने कश्मीर घाटी में दो दिन के बंद का आह्वान किया है। नतीजतन कश्मीर यूनिवर्सिटी की परीक्षा रद्द करनी पड़ी है, स्कूल-कालेज बंद करने पड़े हैं। रेल और इंटरनेट सेवाओं को आंशिक तौर पर बंद करना पड़ा है। माहौल ऐसा बनाया जा रहा है मानो आतंकी नहीं, देशभक्त मारे गए हों! आपको याद दिला दें कि मारे गए आतंकियों में दो ऐसे भी थे, जिन्होंने 22 वर्षीय लेफ्टिनेंट उमर फैयाज सरीखे जांबाज सैनिक की शोपियां में ही बर्बर हत्या की थी। बर्बरता की तमाम हदें पार कर दी गई थीं। उमर के शरीर पर घावों के कई निशान देखे गए थे। युवा लेफ्टिनेंट अपनी ममेरी बहन की शादी में शोपियां गया था। ऐसे हत्यारे आतंकियों को कैसे छोड़ा जा सकता है? इस आपरेशन के जरिए ‘शहादत’ का बदला भी लिया गया है। इसी ऑपरेशन के दौरान एक आतंकी के परिवार को बुलाया गया तथा आतंकी से करीब 30 मिनट तक बातचीत जारी रही, ताकि वह आतंकवाद का रास्ता छोड़कर आत्म-समर्पण कर दे, लेकिन आतंकी ने परिजनों के आग्रह को मंजूर नहीं किया और गोलीबारी शुरू कर दी। पलटवार में पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। यह प्रयोग करने वाले एसएसपी को एक उदाहरण के तौर पर पेश किया जा रहा है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App