अब सरकारी मलबे की सफाई

By: May 12th, 2018 12:05 am

प्रशासनिक मलबे की तलाशी में सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश अगर अंतिम कार्रवाई तक पहुंचें, तो हिमाचल में विकसित हो रहे अवैध तंत्र पर अंकुश लगेगा। कसौली गोलीकांड के बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय की तल्खी के आगे सरकारी फाइल पूरी तरह भीगी बिल्ली बनी नजर आती है। प्रश्न वाजिब हैं कि अवैध शैली के निर्माण में अगर कसौली कसूरवार है, तो सरकार की आंखें क्या देख रही थीं और उस वक्त की सरकारी मशीनरी कर क्या रही थी। जाहिर है आज प्रमाणित हुए निर्माण की कोख में बैठे सरकारी तंत्र ने आंखें मूंद कर हस्ताक्षर किए या भ्रष्टाचार की दलदल में अपने स्वार्थ के महल खड़े किए। जो भी हो अब कानून के साथ अवैध कुश्ती कर रहे होटल मालिकों के साथ वे अधिकारी भी चुने जाएंगे, जिन्होंने कसौली को नरक बनाया। हिमाचली सदाशयता में इससे पहले ऐसे प्रश्न न उठे और न ही अवैध घोषित होती इमारतों में भ्रष्ट तंत्र को खोजा गया। यहां फाइलें अगर कानून और कानून व्यवस्था का मजाक उड़ाती रहीं, तो कमोबेश हर सरकार ने अवैध निर्माण के बीच सियासी दाने चुने। बेशक इस समय कसौली की गर्दन तक पहुंचे कानून के हाथ बहुत कुछ पूछ रहे हैं, लेकिन यह सवाल पिछले कुछ दशकों से हिमाचल की चमड़ी उधेड़ रहे हैं। इससे पूर्व भी जब-जब अदालतें सख्त हुई हैं, हिमाचल के अवैध निर्माण, अतिक्रमण और अवैध कब्जों पर कार्रवाई हुई। सरकारी तौर पर ऐसी व्यवस्था हिमाचल में बनी ही नहीं, जो अवैध निर्माण की ईंटों को तोड़ सके या अवैध कब्जों की खबर ले। यहां तो बाकायदा सरकारों ने घोषित तौर पर यह कोशिश की कि अवैध कब्जाधारियों को वैध मालिकाना हक मिल जाए। सबसे ज्यादा वन विभाग ने खोया है, लेकिन इसे सुधारने की कोशिश ही नहीं हुई। जो भी मामले प्रकाश में आ रहे हैं या जिन पर कार्रवाई हो रही है, वे सभी जागरूक नागरिकों के प्रयास से अदालती फैसले हैं। ऐसे में यह माना जा सकता है कि हिमाचल में कायदे-कानून केवल सजावटी या बनावटी रहे हैं और प्रभावशाली वर्ग इन्हें तोड़-मरोड़ कर अपना रुतबा साबित कर रहा है। सरकारी कार्यप्रणाली के छेद अब दूर-दूर तक दिखाई दे रहे हैं। एक अकेली कसौली तो अपनी पूरी जांच में कुछ चेहरे ही देख पाएगी, जबकि हर तरफ कानूनी मजमून बदले जा रहे हैं। यह हिमाचली व्यवहार का भी दोगलापन है। हम बिना कर अदायगी के बेहतर सरकार चाहते हैं। हर सुविधा सरकार से चाहते हैं और इस पर भी तुर्रा यह कि राजनीति जब सत्ताधारी हो, तो हमारे सारे गुनाहों पर भी पर्दा डाले। यही पर्दे कसौली, धर्मशाला-मकलोडगंज, मनाली व शिमला में अनावृत्त हो रहे हैं, तो हमें अपने खोए हुए वजूद में अपनी ही गलतियां ढूंढनी हैं। उन वनों को खोजना है, जहां पांव पसारे अपराध ने सेब के बूटे उगा दिए, तो पेड़ों को जहर देकर भवन उगा दिए। शिमला से अनधिकृत निर्माण की शाखाओं पर बैठा सरकारी तामझाम कसौली से भिन्न नहीं है और न ही मकलोडगंज के अवैध निर्माण के पीछे की काली छवि मासूम है। बेशक एनजीटी के कठोर फैसले कई बार हमारी रोजी-रोटी पर भारी पड़ते हैं या पूरे अभियान ने पर्यटन के कई चिन्ह मिटा दिए, फिर भी यह तो मानना पड़ेगा कि हिमाचल ने अपनी ही तस्वीर पर गोबर लीप दिया या कानून के दायरों को असमंजस में डाल दिया। ऐसे में वर्तमान जयराम सरकार अगर अतीत के पाप धोना चाहती है या कानूनों की मर्यादा को अमल में लाना चाहती है, तो अब वक्त आ गया है कि कड़े संदेश दिए जाएं। शुरुआत अगर आसपास से होगी, तो दूर तक चेतावनी जाएगी। बेशक इस युद्ध में हजारों अपने चेहरे होंगे, मगर पाप की नगरी खत्म करनी है तो साए तो अपने भी मिटेंगे। देखना यह होगा कि कसौली के मार्फत जो कड़ा संदेश माननीय सर्वोच्च अदालत ने दिया है, उसकी भावना में हिमाचल कितना पवित्र और स्वच्छ हो पाता है।

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