इंद्रियों पर ध्यान

By: May 12th, 2018 12:05 am

श्रीश्री रविशंकर

ज्यादा जरूरी क्या है वस्तुएं, इंद्रियां, मन या बुद्धि? इंद्रिय के साधन से इंद्रियां अधिक जरूरी हैं। टेलीविजन से तुम्हारी आंखें अधिक जरूरी हैं, संगीत या ध्वनि से तुम्हारे कान अधिक जरूरी हैं। स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों या आहार से जिह्वा अधिक जरूरी है। हमारी त्वचा, जो भी कुछ हम स्पर्श करते हैं, उससे अधिक जरूरी है, लेकिन मूर्ख सोचते हैं कि इंद्रिय सुख देने वाली वस्तुएं इंद्रियों से अधिक जरूरी हैं। उन्हें मालूम है कि अत्यधिक टीवी देखना आंखों के लिए अच्छा नहीं है, फिर भी वे परवाह नहीं करते और लंबे समय के लिए टेलीविजन देखते रहते हैं। उन्हें मालूम है उनकी शरीर प्रणाली को अत्यधिक खाना नहीं चाहिए, लेकिन वे शरीर से आहार को अधिक महत्त्व देते हैं। बुद्धिमान वह है, जो इंद्रियों की तुलना मन की ओर अधिक ध्यान देता है। यदि मन का ध्यान नहीं रखा, केवल इंद्रिय सुख के साधन व इंद्रियों पर ही ध्यान रहा, तो तुम अवसाद में उतर जाओगे। वस्तुओं के प्रति तुम्हारी लालसा तुम्हारे मन से अधिक आवश्यक है। तुम्हारी बुद्धि, बुद्धिमता मन से परे है। यदि तुम केवल मन के अनुसार चलोगे तो तुम डांवांडोल स्थिति में रहोगे। जो वस्तु मन की इस प्रकृति को मिटा सकती है, वह है अनुशासन। तुम्हारा मालिक तुम पर दबाव डालता है, तुम्हें इतने दिन काम करना है, सप्ताह के पांच दिन। यदि यह दबाव न हो, तो तुम कभी काम नहीं करोगे। बुद्धि मन से अधिक जरूरी है क्योंकि बुद्धि ज्ञान की मदद से निर्णय लेती है। कहती है यह अच्छा है, यह करना चाहिए, यह नहीं करना चाहिए। जो सबसे बुद्धिमान हैं बुद्धि का अनुसरण करेंगे मन का नहीं। बुद्धिमता यह है कि तुम भावनाओं की परवाह नहीं करते। क्योंकि वे हमेशा बदलती रहती हैं। तुमने भूतकाल में कुछ लोगों को दुखी किया है और वह दुख तुम अभी अनुभव कर रहे हो। इस अनुभव को झेलो, उससे भागो मत। जीवन प्रतिबद्धता से चलता है। तुम्हारा जीवन इस ग्रह पर किसी कल्याणकारी के लिए समर्पित है। ये तुम में निर्भयता, ताकत, शांति, स्थिरता, जोश, सब कुछ तुम्हारे भीतर से बाहर ले आता है। औरों की चिंता करो, भावनाओं की ज्यादा परवाह मत करो। किसी भी बात के लिए विलाप करके बैठे मत रहो। इस संसार की कोई भी वस्तु की कीमत तुम्हारे आंसुओं के बराबर नहीं है। अगर तुम्हें आंसू बहाने ही हैं, तो वे कृतज्ञता के, विस्मय के, प्रेम के मीठे आंसू होने चाहिए। निरर्थक बात के लिए रोना कोई बड़ी बात नहीं है। तुम्हारा जीवन उसके लिए नहीं बना है। हमें यह समझना चाहिए। अपने जीवन को ऐसे कामों में लगाएं जिससे आपको कुछ अच्छे और सही परिणाम देखने को मिलें। जीवन तो बहती नदिया की धारा के समान है। अपनी इंद्रियों को पुरुषार्थ में लगाओ। व्यर्थ की चीजों में मत उलझो। जीवन बहुत अनमोल है। अपने मन को ईश्वर के स्मरण में लगाओ। ईश्वर के सान्निध्य में तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा। संसार के झूठे आडंबरों में अपने मन को मत उलझने दो। अपनी इंद्रियों का सही प्रयोग करें।

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