कर्नाटक से 2019 के संकेत

By: May 17th, 2018 12:05 am

कर्नाटक के जनादेश का 2019 के लोकसभा चुनाव की संभावनाओं पर क्या असर पड़ेगा? यह सवाल बीते कल हमने छोड़ दिया था। दरअसल कर्नाटक की स्थानीय राजनीति और दांव-पेंच का विश्लेषण जरूरी था। महज सत्ता में आने के लिए कांग्रेस ने जद-एस को समर्थन दिया है। यह चुनाव-पूर्व का गठबंधन नहीं है। यदि यह गठबंधन भी चुनाव मैदान में होता, तो बेशक जनादेश भी भिन्न होता! यह तय नहीं है कि गठबंधन से भाजपा की पराजय ही होती। जिस तरह कांग्रेस के लिंगायती विधायकों ने जद (एस) नेता कुमारस्वामी के खिलाफ बगावती तेवर दिखाए हैं कि वे उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं हैं, उसी तरह धु्रवीकरण भाजपा के पक्ष में हो सकता था। लिहाजा 2019 के चुनाव का आधार कर्नाटक ने तय कर दिया है, ऐसा एकदम नहीं माना जा सकता, लेकिन 2019 के मद्देनजर विपक्ष का महागठबंधन तभी तैयार हो सकता है, जब कांग्रेस अपना अहंकार छोड़ेगी। अलबत्ता कांग्रेस और जद-एस ने मिलकर 2019 का चुनाव लड़ने की घोषणा जरूर की है। यह कितनी परिपक्व होती है, उसे आंकने को एक साल का कालखंड बहुत होता है। फिलहाल तो कर्नाटक में गैर-भाजपा सरकार बनाने का मंसूबा है। उसे हासिल करने के बाद गठबंधन के रास्ते में कितने रोड़े आएंगे, यह देखना होगा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी फिलहाल खुद को प्रधानमंत्री बनाने का मुगालता पाले हुए हैं और उनके प्रवक्ताओं का दो टूक कहना है कि कांग्रेस की विचारधारा के मुताबिक ही गठबंधन हो सकता है। मौकापरस्त गठबंधन के लिए कांग्रेस बिलकुल भी तैयार नहीं है। यह कांग्रेस की शर्त भी है और उसका अहंकार भी प्रदर्शित करता है। चुनावी हकीकत यह है कि देश की करीब 2.5 फीसदी आबादी पर ही कांग्रेस का कब्जा रह गया है। कुछ क्षेत्रीय दल ऐसे हैं, जिनका विस्तार कांग्रेस से भी बेहतर और व्यापक है। वे कांग्रेस की शर्तों पर गठबंधन क्यों करेंगे? तो फिर गठबंधन आकार कैसे लेगा? कर्नाटक में कांग्रेस पराजित हुई है, लिहाजा ‘कांग्रेसमुक्त भारत’ की तरफ  एक और कदम बढ़ा है। यदि इसी जनादेश के आधार पर 2019 के आम चुनाव का मूल्यांकन किया जाए, तो कर्नाटक से भाजपा 16 सीटें जीत सकती है और कांग्रेस के हिस्से में 10 सीटें आ सकती हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में भाजपा एक ही सीट खो सकती है, जबकि कांग्रेस का हासिल भी एक सीट ही होगा। भाजपा के लिए यह संभावित नुकसान चिंता का सबब नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसे एक ही सीट की कमी पड़ने का आकलन है। 2019 के चुनाव तक शेष एक साल के कालखंड में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी स्थितियों को संवार भी सकती है। कर्नाटक के जनादेश से भाजपा दक्षिण के अन्य राज्यों में भी अपनी उपस्थिति व्यापक कर सकती है, लिहाजा चुनावी प्रदर्शन भी बेहतर हो सकता है। दक्षिण में 2019 में बढ़त इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि उत्तर के कुछ राज्यों में भाजपा अपनी सत्ता गंवा सकती है। नतीजतन लोकसभा सीटें भी घट सकती हैं। उनकी भरपाई दक्षिण और पूर्वोत्तर राज्यों से की जा सकती है। कर्नाटक से आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु तो जुड़े ही हैं। इन राज्यों से सटे इलाकों वाले कर्नाटक में भाजपा ने अच्छी सीटें जीती हैं। उनका प्रभाव पड़ना चाहिए। भाजपा के लिए केरल भी महत्त्वपूर्ण राज्य है। केरल में भाजपा का वोट औसत 11 फीसदी तक पहुंच गया है, जबकि शेष दक्षिणी राज्यों में 4-5 फीसदी ही है। 2014 में तमिलनाडु और तेलंगाना में भाजपा ने एक-एक सीट जीती थी, जबकि आंध्र में 2 सीटें झोली में आई थीं। यदि दक्षिण में भाजपा स्थानीय दलों के साथ मजबूत गठबंधन बनाने में सफल होती है, तो सीटें बढ़ भी सकती हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी अब यह कह दिया है कि भाजपा को सिर्फ हिंदी पट्टी और उत्तरी भारत की ही पार्टी न माना जाए। वह और एनडीए देश की करीब 70 फीसदी आबादी पर शासन कर रहे हैं। अब भाजपा के अपने 15 मुख्यमंत्री हैं और यदि कर्नाटक में भी सरकार बन पाई, तो यह संख्या बढ़कर 16 हो जाएगी। बहरहाल 2019 के संदर्भ में यह स्थिति गौरतलब है कि कुछ निराशाओं और उदासीनता के बावजूद लोगों का विश्वास प्रधानमंत्री मोदी में है। उनका जादू बरकरार है। उनकी तुलना में राहुल गांधी कहीं भी नहीं ठहरते। कर्नाटक के चुनाव में राहुल गांधी न तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर पाए और न ही उन्हें बांध कर रख पाए। दावों की तमाम उछल-कूद के बावजूद कांग्रेस 78 विधायकों तक ही पहुंच पाई, जो 2013 की संख्या की तुलना में 44 सीट कम है। चुनाव के दौरान लोगों के संवाद टीवी चैनलों पर सुने। वे प्रधानमंत्री मोदी को इसलिए समर्थन देना चाहते हैं, ताकि केंद्र और कर्नाटक में एक ही पार्टी की सरकारें हों और उसका लाभ कर्नाटक को मिल सके। बीते दिनों एक सर्वेक्षण सामने आया, जिसमें 57 फीसदी से ज्यादा लोगों ने मोदी के नेतृत्व में यकीन बयां किया। उस सर्वेक्षण के बाद ही कर्नाटक का जनादेश सामने आया है, लिहाजा तथ्यों और आंकड़ों में सचाई दिखती है। बहरहाल यह तो शुरुआत है। अभी 2019 तक के सफरनामे में बहुत कुछ घटनाएं होंगी, लेकिन एक विश्लेषक के तौर पर कहा जा सकता है कि कर्नाटक ‘2019 का भी द्वार’ साबित होगा।

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