जल संकट से जूझता हिमाचल

By: May 31st, 2018 12:05 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

आने वाले समय में पानी के लिए जंग अब अवश्यंभावी प्रतीत हो रही है, फिर भी स्वार्थी मानव अपनी प्रवृत्ति से बाज नहीं आ रहा है।  जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण के चलते जलधाराओं का रुख मोड़ने के कारण आज हमारी सदाबहार ब्यास जैसी नदियों की दुर्दशा सबके सामने है…

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते इस शताब्दी के मध्य तक स्वच्छ पेयजल दुर्लभ हो जाएगा तथा इससे भारत और चीन जैसे बड़ी आबादी वाली उभरती अर्थव्यवस्थाएं सर्वाधिक प्रभावित होंगी। फिलहाल विश्व की जनसंख्या 7 अरब से ज्यादा है, जो कि 2050 तक 9 अरब को पार कर जाएगी। आज से 32 साल बाद कृषि के लिए 50 फीसदी और स्वच्छ पेयजल की 70 फीसदी मांग में इजाफा होगा। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा की मनोरम धौलाधार पर्वतश्रेणी तले बसने वाले मेरे जैसे अनेक लोगों ने पिछले 50 वर्षों में काफी कुछ बदलते देखा है। औद्योगिक विकास की बात को छोड़ भी दें, तो पुराने मकानों की जगह कंकरीट के जंगल उभर आए हैं और जहां पहले कभी फसलें लहलहाती थीं तथा हरियाली, पानी के बीच ठंडी बयारें दिलों को सुकून पहुंचाती थीं, वहां केवल अब सीमेंट और सरिए के पक्के मकानों की बहुतायत हो गई है और फसलें चौपट हो गई हैं। कुहली अव्वल जमीनें बंजर स्वरूप धारण कर चुकी हैं। कभी जिस जमीन में इन दिनों धान की खेती के चलते भरपूर पानी चारों ओर दिखाई पड़ता था और बरसात के दिनों में कच्ची पगडंडियों में अपने पायजामे और पैंटें कंधों पर डालकर मेहमानों को चलते देखते थे, आज उसी पानी से रहित जमीन में बने मकानों में रिश्तेदारों और उनके बच्चों की आमद खत्म हो चुकी है।

किसान जहां पहले खुद कूहलों की देखभाल और खेतों के लिए पानी की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करते थे, अब वही कूहलें और बारहमासी छोटे नाले सूखे पड़े हैं अथवा लुप्त हो गए हैं। गांवों की बावडि़यां और कुएं खत्म हो चुके हैं अथवा गाद से भरकर स्मारक बनकर रह गए हैं। स्वाभाविक है कि यदि पिछले 20-30 वर्षों में ही हालात में इतनी तबदीली आ चुकी है, तो आने वाले सालों में हमारी अगली पीढि़यों को विरासत में क्या मिलेगा। आने वाले समय में पानी के लिए जंग अब अवश्यंभावी प्रतीत हो रही है, फिर भी स्वार्थी मानव अपनी प्रवृत्ति से बाज नहीं आ रहा है।  जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण के चलते जलधाराओं का रुख मोड़ने के कारण आज हमारी सदाबहार ब्यास जैसी नदियों की दुर्दशा सबके सामने है।

छोटी खड्डों की तो बात ही क्या करें! पहले जब पाइपों द्वारा पानी की आपूर्ति का कोई प्रावधान नहीं था, तो हमारी महिलाएं घरों के करीब बहने वाले छोटे नालों पर बर्तन मांजने एवं कपड़े धोने जैसे कार्यों को संपन्न किया करती थीं, लेकिन घर-घर पेयजल आपूर्ति और कृषि कार्यों तथा किचनगार्डेन एवं बागवानी के लिए भी घरेलू जलापूर्ति के साधनों के बढ़ते उपयोग से परिस्थितियां भयावह रूप धारण कर चुकी हैं। 2013 की राज्य जल नीति के अंतर्गत पिरामल वाटर प्राइवेट लिमिटेड अहमदाबाद के साथ हुए करार के तहत ‘सर्व जल’ ब्रांड के वाटर एटीएम पचास पैसे प्रति लीटर की दर से हिमाचल के शिमला, ऊना, धर्मशाला और मंडी में स्थापित किए गए थे। लेकिन आईपीएच विभाग की वेबसाइट के अनुसार मई 2015 के बाद इस योजना के विस्तारीकरण की तरफ  कोई ध्यान नहीं दिया गया है। जलापूर्ति से जुड़ी समस्याओं और शिकायतों के निवारण के लिए विभाग ने 18001808009 नामक एक टोलफ्री नंबर भी जारी किया है।

हिमाचल प्रदेश में रूरल वाटर सप्लाई स्कीम के तहत 9393 जलापूर्ति योजनाओं को लागू किया गया है। 1991-92 से 2015-16 तक प्रदेश के सूखाग्रस्त इलाकों में 33 हजार 471 हैंडपंप लगवाए जा चुके हैं। साल दर साल स्वच्छ पेयजल आपूर्ति योजनाओं में बढ़ोतरी के बावजूद आज शिमला सहित प्रदेश के कई हिस्सों में जलसंकट गहराया हुआ है, तो इससे निपटने के लिए सरकार को युद्धस्तर पर राहत के उपाय ढूंढने पड़ेंगे। इतना ही नहीं, जनता को भी सहयोग करना होगा। पेयजल को व्यर्थ बहने से रोकना होगा, पानी की टंकियों से होने वाले ओवरफ्लो पानी की रोकथाम करनी पड़ेगी। लगभग हर घर में वर्षाजल संग्रहण टैंकों का निर्माण करवाना होगा। बरसात के जल को संरक्षित करके, गर्मियों में हो रही पानी की कमी की समस्या से बचा जा सकता है।

पंचायतों के स्वीकृत, लेकिन पेंडिंग अथवा अधूरे छोड़े गए और जिनके निर्माण में अनियमितता बरती गई हो, ऐसे मामलों में संबंधित पंचायत प्रतिनिधियों एवं खंड विकास अधिकारियों के खिलाफ सख्त दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। तालाबों एवं पोखरों का निर्माण किया जाना चाहिए। वर्ल्ड बैंक ने तो पेयजल की बर्बादी रोकने के लिए स्वच्छ पानी को व्यर्थ बहाने वालों से टैक्स तक वसूलने की अनुशंसा भी की है और जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन एवं आबंटन की सलाह भी दी है। आज की तारीख में प्राकृतिक जल स्रोतों, खड्डों, नालों, पोखरों एवं कूहलों की रौनक कैसे बहाल हो, यह बड़ी चिंता का सबब बन चुका है। सरकार से अपील की जाती है कि अब महज पर्यावरण दिवस जैसे रस्मी कार्यक्रमों के आयोजन से आगे बढ़कर धरातल पर कुछ ठोस योजनाओं को लागू कर साकार करना होगा, अन्यथा स्थिति भयावह से भयानक होती जा रही है और हमारी आने वाली पीढि़यों का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है।

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