नेताओं तथा मीडिया में विकृत होता विश्वास

By: May 4th, 2018 12:10 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

सत्ता के खिलाफ लिखने या बोलने के खिलाफ किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया था, न ही किसी पर कोई पाबंदी लगाई गई थी। दूसरी ओर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र राष्ट्र विरोधी नारे लगाने में संलिप्त रहे। उन्होंने भारतीय संसद पर आपराधिक हमले में संलिप्त रहे अफजल गुरू को सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी दिए जाने का विरोध भी किया। उन्होंने ‘भारत तेरे टुकड़े होकर रहेंगे’ जैसे नारे भी बुलंद किए। भारत के लोगों को यह नारे आज भी राष्ट्रवाद विरोधी प्रतीक के रूप में अच्छी तरह याद हैं…

ऐसे समय में जबकि राजनीतिक दल व न्यायालय एक-दूसरे की घेरेबंदी में लगे हैं, यह निराशाजनक है कि आम जनता तक इतनी अधिक भ्रामक सूचना व गलत तथ्य पहुंच रहे हैं कि पूरा वातावरण धुंधला व अस्पष्ट दिखाई दे रहा है। जैसा कि डोनाल्ड ट्रंप के मामले में भी हुआ, वह भ्रामक जानकारियों से तनाव में रहे। उन्हें उन लोगों के लिए अवार्ड्स प्रतिस्थापित करने पड़े थे जो जाली मीडिया में संलिप्त थे। यह अवार्ड्स मीडिया द्वारा अनुचित रिपोर्टिंग प्रमाणित करने के लिए रखे गए। इन उपहासात्मक पुरस्कारों का एक संदेश था। हम भारत के मामले से शुरुआत करते हैं। मोदी के सत्ता में आने के बाद एक भ्रामक अभियान चला कि भारत में असहनशीलता बढ़ गई है। इस अभियान के तहत कई जाने-माने लोगों ने अभिव्यक्ति की आजादी पर कथित आघात के खिलाफ विरोध दर्ज करवाया। इन लोगों ने विविध क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए राष्ट्रपति से पदक प्राप्त किए थे। उन्होंने इन पुरस्कारों को लौटाने का निर्णय कर लिया। इन लोगों को संविधान के तहत उन्हें दी गई आजादी को सीमित करने की शिकायत थी।

सत्ता के खिलाफ लिखने या बोलने के खिलाफ किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया था, न ही किसी पर कोई पाबंदी लगाई गई थी। दूसरी ओर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र राष्ट्र विरोधी नारे लगाने में संलिप्त रहे। उन्होंने भारतीय संसद पर आपराधिक हमले में संलिप्त रहे अफजल गुरू को सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी दिए जाने का विरोध भी किया। उन्होंने ‘भारत तेरे टुकड़े होकर रहेंगे’ जैसे नारे भी बुलंद किए। भारत के लोगों को यह नारे आज भी राष्ट्रवाद विरोधी प्रतीक के रूप में अच्छी तरह याद हैं। उन्होंने भारत तेरे टुकड़े-टुकड़े होंगे तथा अफजल गुरू अमर रहे, जैसे नारे लगाए थे। यह आश्चर्यजनक है कि सरकार ने मातृभूमि से प्यार करने वाले लोगों पर ऐसे दुखदायी हमले करने वाले लोगों को बिना कार्रवाई के कैसे छोड़ दिया। क्या किसी को इस तरह की राष्ट्र विरोधी नारेबाजी व राष्ट्र के खिलाफ काम करने की आजादी होनी चाहिए? वास्तव में जिन लोगों ने यह सब कुछ टेलीविजन पर देखा, उनमें से अधिकतर उन्हें दी गई सहनशीलता व अभिव्यक्ति की आजादी पर आक्रोशित हो गए। इसके बावजूद स्वतंत्रता को सीमित करने की सरकार के खिलाफ शिकायत जारी रही। नकली विरोध के रूप में जो शुरू हुआ, वह अप्रत्यक्ष रूप से जारी रहा और प्रदर्शनों की नई शृंखला शुरू हो गई। हमारी अर्थ व्यवस्था में विमुद्रीकरण तथा जीएसटी दो मुख्य सुधार थे। दोनों के कारण जनता को कई कठिनाइयां पैदा हुईं, परंतु उन्होंने यह सब कुछ चुपचाप सहन किया क्योंकि उन्हें विश्वास था कि इन सुधारों के लंबे समय में सकारात्मक परिणाम आएंगे। लेकिन विपक्ष तथा प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने इसे विनाश की संज्ञा दी। जन आक्रोश नाम की एक प्रदर्शन रैली में उन्होंने सरकार की पेट्रोल के दाम बढ़ाने के लिए निंदा की, जबकि पूरे विश्व में इसके दाम घट रहे हैं।

हालांकि तथ्य यह है कि पिछले 18 वर्षों में कच्चे तेल के दामों में 150 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। प्रसिद्ध व्यक्ति तथ्यों के साथ क्यों नहीं रहे? सकल घरेलू उत्पाद में 7.5 फीसदी तक वृद्धि तथा राजस्व घाटे में कमी को आर्थिक विनाश नहीं कहा जा सकता। नकली आर्थिक विनाश रोजगार के अवसरों से विहीन विकास से जोड़ा जा रहा है। हाल में सुरजीत भल्ला ने इस थ्योरी के गुब्बारे की हवा निकाल दी है। उन्होंने विश्वसनीय जानकारी का उद्वरण देते हुए दावा किया कि वर्ष 2014 से पहले प्रति वर्ष चार मिलियन जॉब पैदा हो रहे थे, जबकि अब वर्ष 2017 में 15 मिलियन जॉब पैदा हुए हैं। उनके अनुसार वर्ष 2014 से वर्ष 2018 के बीच भारत की सबसे बढि़या माइक्रो इकॉनामिक परफार्मेंस रही। वास्तव में मोदी को भीतर से ही चुनौती मिल रही है।

विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी इस उपलब्धि को प्रमाणीकृत किया है। आर्थिक सुधार सही दिशा में चल रहे हैं। मोदी को अपनी ही पार्टी के भीतर से जो चुनौती मिल रही है, उसका सियासी कारणों से निराकरण नहीं हो पाया है। मोदी पर नकली हमलों से मैं रूबरू हुआ हूं तथा विश्वास में कुछ कमी भी आई है क्योंकि टॉप पर बैठे नेता जो दुष्प्रचार कर रहे हैं, उससे निपटने के प्रभावी प्रयास नहीं हुए हैं। हाल में छोटी बच्चियों से हुए बलात्कार के मामलों को ही लें तो इन्हें सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश हुई तथा इसे बढ़ती धार्मिक घृणा के परिणाम के रूप में प्रचारित किया गया। बलात्कार एक निंदनीय अपराध है तथा इसके खिलाफ सामाजिक व नैतिक रूप से लड़ने की जरूरत है। मीडिया में मुस्लिम संप्रदाय से संबंध रखने वाली एक बच्ची, जो कठुआ से संबंधित है, से बलात्कार व उसकी हत्या की कहानी खूब प्रचारित हो रही है। इस मामले में कई अफवाहें फैल चुकी हैं तथा इस त्रासदी पर छाई धुंधली परत को हटाने की कोई कोशिश नहीं की गई।

मैंने इस संबंध में कुछ स्थानीय लोगों से बात की जिन्होंने रेप थ्योरी में विश्वास करने से इनकार किया, हालांकि इस बच्ची की हत्या जरूर हुई। स्थानीय लोगों ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की पैरवी की क्योंकि उनका राज्य सरकार पर विश्वास नहीं है। अविश्वास का कारण यह है कि सरकार जम्मू क्षेत्र में बक्करवालों को बसा रही है जिससे वहां का जनसांख्यिकी स्वरूप बिगड़ रहा है। यहां तक कि जिन मंत्रियों ने सरकार से इस्तीफ दे दिए, उनके पास भी धुंधली तस्वीर को साफ करने के लिए कोई निश्चित वक्तव्य नहीं था। इस पृष्ठभूमि में मोदी सरकार ने पहल करते हुए अब बलात्कार के ऐसे मामलों में मृत्यु दंड का प्रावधान किया है। यह स्वाभाविक व अति साहसिक प्रतिक्रिया है। ऐसे अस्पष्ट व धुंधले नैतिक व मनोवैज्ञानिक वातावरण, जिसका सामना करने में सरकार विफल हुई है, में ताजा हवा की सांस लेना मुश्किल है।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com

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