प्रधानमंत्री बनने का दावा

By: May 10th, 2018 12:05 am

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पहली बार प्रधानमंत्री बनने का दावा किया है। वह आश्वस्त हैं कि 2019 में प्रधानमंत्री मोदी चुनाव नहीं जीत पाएंगे, यह उनके चेहरे पर भी साफ झलकने लगा है। लेकिन राहुल खुद के प्रधानमंत्री बनने को लेकर भी भरोसेमंद नहीं हैं। पत्रकारों के सवालों पर उन्होंने जवाब दिया कि यदि कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया और चुनावों में बड़ी जीत हासिल की, तो मैं क्यों नहीं प्रधानमंत्री बनूंगा! राहुल गांधी के कथन में ‘यदि’ और ‘क्यों नहीं’ सरीखे शब्द हैं। जाहिर भी है, क्योंकि कांग्रेस फिलहाल तीन राज्यों में ही सत्तारूढ़ है। कर्नाटक का जनादेश 15 मई को घोषित होगा। यदि कांग्रेस कर्नाटक में अपनी सत्ता बरकरार रखती और इस साल के अंत में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भी सत्ता का उलटफेर कर वापसी करती है, तब राहुल ऐसा दावा करते, तो उसे गंभीरता से ग्रहण किया जाता। उपरोक्त राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में उनकी महत्ती भूमिका रही है, लिहाजा उन राज्यों के चुनाव बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। राहुल गांधी ने इन राज्यों में भी कांग्रेस की सरकारें बनाने का दावा किया है। अभी तो कांग्रेस दीन-हीन है। कांग्रेस उपाध्यक्ष और फिर अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी अधिकांश राज्यों में चुनाव हार चुके हैं। इसके बावजूद प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश है, तो उसे दिवास्वप्न या मृगतृष्णा सरीखी स्थितियां ही कह सकते हैं और फिर विपक्षी दलों का गठबंधन भी अभी तक आकार नहीं ले पाया है। यदि शरद पवार, ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू, चंद्रशेखर राव, मुलायम सिंह यादव और मायावती के दलों के प्रवक्ताओं की राय पूछें कि क्या वे राहुल गांधी को अपना नेता और अंततः प्रधानमंत्री मानने को तैयार हैं, तो एक भी सकारात्मक जवाब नहीं मिलता। सवाल यह भी है कि आखिर 48 सांसदों वाली कांग्रेस का इतना विकास और उत्थान कैसे होगा कि वह 272 सांसदों के बहुमत तक पहुंच सके? कर्नाटक की जमीन पर ऐसा शंखनाद करने के राजनीतिक मायने हो सकते हैं। राहुल गांधी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और काडर में जोश फूंकना चाहते होंगे। फिलहाल कर्नाटक जीतना कांग्रेस के लिए बेहद जरूरी है। कर्नाटक के अलावा, दक्षिण के अन्य बड़े राज्यों-आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल में कांग्रेस सत्ता से बाहर है। 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद जितने भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, कांग्रेस एकमात्र पंजाब को छोड़कर सभी में पराजित हुई है। बिहार में लालू के सहारे सत्ता में भागीदारी मिली थी, लेकिन नीतीश कुमार अलग होकर भाजपा से मिल गए। नतीजतन जनता दल-यू और भाजपा की सरकार बन गई। लिहाजा कर्नाटक की जीत के जरिए राहुल गांधी कांग्रेस में नए प्राण फूंकना चाहते हैं। समस्या यह भी है कि देश की जनता और उनके संभावित गठबंधन के राजनीतिक दल भी राहुल गांधी को ‘अपरिपक्व’ मानते हैं। राहुल के कुछ चर्चित कथन हैं-किसानों के लिए मैं आलू की फैक्टरी नहीं खोल सकता, राजनीति आपकी कमीज और पेंट में होती है, गरीबी महज एक मनोदशा है, मुझे संसद में 5 मिनट बोलने दें तो भूकंप आ जाएगा, ऐसे कई बयान हो सकते हैं। इनमें क्या राष्ट्रीय दृष्टि है? सवाल है कि राहुल गांधी को संसद में बोलने से किसने रोका है? यह उनका संवैधानिक विशेषाधिकार है। राहुल गांधी कोई ऐसा राष्ट्रीय कार्यक्रम भी नहीं दे पाए हैं, जिस पर देश जनादेश दे सके। प्रधानमंत्री मोदी कई स्तरों पर नाकाम रहे हैं, लेकिन देश की युवा पीढ़ी तक का नजरिया यही है कि पहली बार सक्रिय प्रधानमंत्री मिला है और वह लगातार काम कर रहा है। उन्होंने गरीब, दलित, वंचित, दबे-कुचलों के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। दरअसल सचाई यह है कि प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अभी जनमत बनना शुरू ही नहीं हुआ है, तो 2019 में नए प्रधानमंत्री की कल्पना भी कैसे की जा सकती है। दरअसल राहुल गांधी को फिलहाल राजनीतिज्ञ बनना और उसे साबित करना है। प्रधानमंत्री बनना और उसके लिए राजनीति करना बहुत दूर की कौड़ी है। राहुल की स्वीकृति कमोबेश उन दलों के बीच तो बननी ही चाहिए, जिनके समर्थन के बिना कांग्रेस केंद्र में सत्तारूढ़ होने का सपना ही देख नहीं सकती। बहरहाल राहुल गांधी की मनोदशा पर इससे ज्यादा टिप्पणी नहीं की जा सकती।

अपने सपनों के जीवनसंगी को ढूँढिये भारत  मैट्रिमोनी पर – निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App