रेजिन टैपिंग ने निकाले जंगलों से गिद्ध

By: May 28th, 2018 12:05 am

 हमीरपुर —पर्यावरण को सुरक्षित रखने वाले गिद्धों से हमीरपुर, बिलासपुर और ऊना के जंगल खाली हो गए हैं। तीन जिलों में इनका मात्र एक घोंसला हमीरपुर में मिला है। रेजिन टैंपिंग की वजह से गिद्धों ने हमीरपुर-ऊना व बिलासपुर के जंगल छोड़ दिए। हमीरपुर में महज एक ही घोंसला मिला है, जबकि ऊना व बिलासपुर में एक भी गिद्ध का रैन बसेरा नहीं। इसका बड़ा कारण रेजिन टैपिंग माना गया है। चीड़ के पेड़ों से निकाला जा रहा बिरोजा इसका सबसे बड़ा कारण है। बिरोजा निकालते समय पेड़ की छाल का काटना पड़ता है। काटते समय आने वाली आवाज के कारण गिद्धों ने तीनों जिलों के जंगल छोड़ दिए। यह वाइल्ड लाइफ विभाग के लिए चिंतनीय विषय बना हुआ है। हालांकि अब वनों में वाचर तैनात किए गए हैं। इन्हें सख्त निर्देश दिए गए हैं कि पेड़ों की रेजिन टैपिंग न होने दी जाए। गिद्धों की संख्या को बढ़ाने के लिए विभाग ने अब जंगलों में रेजिन टैपिंग को रोकने के लिए अभियान शुरू किया है। जिन जंगलों में गिद्धों के होने की अधिक संभावनाएं हैं, उनमें अधिक सतर्कता बरती जाएगी। गिद्धों के संरक्षण के लिए वाइल्ड लाइफ ने यह निर्णय लिया है। विभाग की मानें तो गिद्ध अपना रैन बसेरा जंगलों में ही बनाते हैं। इसके लिए यह चीड़ की पत्तियों का इस्तेमाल करते हैं। यह पक्षी बहुत की संवेदनशील होता है। गिद्ध वहां घर बनाना पसंद नहीं करता जहां किसी का हस्तक्षेप है। खासकर शांत जगहों पर ही यह अपना घोंसला बनाता है। कई वर्ष पहले हमीरपुर में इनकी तादाद काफी अधिक थी। वनों में शुरू हुई रेजिन टैपिंग के बाद इनकी संख्या लगातार कम होती चली गई। जंगलों में रेजिन टैपिंग के दौरान होने वाली आवाज के कारण गिद्धों ने जंगल छोड़ दिए। हमीरपुर-ऊना व बिलासपुर में एक ही गिद्ध का घोंसला है। यह घोंसला हमीरपुर के एक जंगल में मिला है। गिद्धों की संख्या कोे बढ़ाने के लिए वन्य जीव विभाग ने वनों में रेजिन टैंपिग बंद करवाने का निर्णय लिया है। रेजिन उन्हीं वनों में करवाई जाएगी जहां गिद्धों के रहने की संभावनाएं नहीं हैं। विभाग को उम्मीद है कि एक घोंसले से ही हमीरपुर में गिद्धों की संख्या बढ़ जाएगी। प्रजनन के बाद इनकी संख्या में बढ़ोतरी की उम्मीद जताई जा रही है। इसके लिए विभाग अब सतर्कता दिखा रहा है। प्रदेश के कई जिलों से विलुप्त हो रही यह प्रजाति चिंता का विषय बनी हुई है। पर्यावरण को सुरक्षित रखने में गिद्धों का सबसे अहम रोल माना गया है। किसी भी मृत पशु को यह अपना भोजन बना लेते हैं। ऐसे में पर्यावरण दूषित होने से बच जाता है।

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