हिमाचली पुरुषार्थ : एक अच्छे ऑल राउंडर के रूप में जाने जाते हैं अनिल

By: May 2nd, 2018 12:07 am

पहली बार इन्होंने बतौर रसायन शास्त्र लेक्चररकाम शुरू किया। वहीं पदोन्नत होकर विज्ञान विभागाध्यक्ष रहे। यहां इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काफी नाम कमाया। एक जून 1998 को इन्होंने आर्मी स्कूल में प्रधानाचार्य पद के लिए साक्षात्कार दिया। 38 अभ्यर्थियों में इनका चयन हुआ…

एक शख्सियत, एक अध्यापक, चित्रकार, व्यंगाकार, रचनाकार व वक्ता जिनकी इतनी पहचाने हो उनको कैसे नहीं जान सकते। हम बात कर रहे हैं आर्मी पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य अनिल अम्बष्ट जून को 20 वर्ष का कार्यकाल बतौर प्रधानाचार्य पूरा करने जा रहे हैं। हिमाचल में 35 साल से अपनी सेवा दे रहे हैं। मूलतः धनवाद, अब झारखंड के निवासी हैं। प्रारंभिक शिक्षा नेतरहाट आवासीय विद्यालय , रांची, में हुई जो  कि बिहार व झारखंड में सर्वोत्तम विद्यालय माना जाता है। वहां इनका चयन 60,000 छात्रों में पहले 60 में हुआ। 1969 से 1976 तक कक्षा 12 तक इनकी पढ़ाई यहीं हुई। शुरू से पढ़ाई में अच्छे रहे हैं और इन्हें राष्ट्रीय विद्यालय में एक अच्छे ऑल राउंडर के रूप में माना जाता है।  1982 में दिल्ली में अध्ययनरत थे, सफलता के लिए संघर्ष भी जारी था। पहली बार इन्होंने बतौर रसायन शास्त्र लेक्चरर काम शुरू किया। वहीं पदोन्नत होकर विज्ञान विभागाध्यक्ष रहे। यहां इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काफी नाम कमाया।  एक जून 1998 को इन्होंने आर्मी स्कूल में प्रधानाचार्य पद के लिए साक्षात्कार दिया। 38 अभ्यार्थियों में इनका चयन हुआ। उस समय विद्यालय में 540 बच्चे व 38 शिक्षक व कर्मचारी थे। पिछले 20 वर्षों में यह विद्यालय  इनकी निगरानी में दिनदुगनी, रात चौगुनी स्तर की कि है। आज यह विद्यालय अपने नए व शानदार खूबसूरत भवन में पदार्पण कर चुका है। अभी यहां 2300 बच्चे व 118 शिक्षक व कर्मचारी हैं। विद्यालय अपनी पढ़ाई लिखाई, खेल कूद व अनुशासन तथा बहुआयामी प्रगति के लिए, न कि कांगड़ा बल्कि पूरे राज्य का नाम रोशन कर रहा है। विद्यालय में हर आधुनिक उपकरण लगाए गए हैं- हर कमरे में प्रोफेसर प्रांगण में सीसीटीवी, वाई फाई, प्राथमिक उपचार गृह, केंद्रिय उद्घोषणा यंत्र व हर खेल कूद की सुविधा है। बच्चों के सर्वोंगीन विकास पर पूरा ध्यान दिया जाता है विद्यालय  में आपदा प्रबंधन, कचरा प्रबंधन व जलप्रबंधन व जल प्रबंधन की सुविधा है और विद्यालय का सुंदर रख रखाब सबका मन मोह लता है।इस विद्यालय की उपलब्धियों बहुत हैं। संक्षेप में  पिछले साल ही  विद्यालय की एक छात्रा को बी.बी एम में राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रिय मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने पुरस्कृत किया। एन.सी.सी कैम्प में बेस्ट गर्ल कैंडेट व 12 गोल्ड मेडल मिले। खेलकूद में … जोनल प्रतियोगिता चंडीगढ़ में वेस्टटीम का सम्मान मिला। अभी हालही में एच.ए.एस का परिणाम आया इसके टापर पारस अगवाल ने जमा दो की पढ़ाई यहीं से की थी। अनिल अम्बष्ट एक कुशल चित्रकार एवं व्यंग्यकार, रचनाका व वक्ता भी हैं। इन्हें इन क्षेत्रों में राष्ट्रीय पुरस्कार व सम्मान मिला है। आकाशवाणी धर्मशाला से इनकी कविताओं को लोगों ने सुना व सराहा है।  इसके अलावा इन्हें जीवोसी मेरिट प्रमाण पत्र, सर्वश्रेष्ठ शिक्षक अवार्ड, शिक्षा रत्न पुरस्कार दिल्ली व भारत एक्सलेंस अवार्ड  दिल्ली में संचालक के हाथों मिला। राजकीय शिक्षण संस्थान धर्मशाला व बीएड के कालेज शाहपुर में रिसोर्स परसन के रूप में आमंत्रित किया गया है। कई जगहों पर इन्हें मुख्य अतिथि के रूप में भी सम्मानित किया गया है। बतौर प्रधानाचार्य इनका मत है जिंदगी एक संघर्ष है और यहां ईमानदारी, संयम एवं अनुशासन की बहुत आवश्यकता है। सफलता के लिए शार्टकट नहीं।

जब रू-ब-रू हुए…

सपने वे देखें, जो सोने न दें

हिमाचल से पैंतीस साल के रिश्ते को कैसे बयां करेंगे?

हिमाचल से हमारा रिश्ता बहुत मधुर व यादगार है, यह मेरी कर्म भूमि है, रोजी, रोटी व मान, सम्मान सब कुछ यहीं मिला।

अब तक की यात्रा का सर्वश्रेष्ठ पहलू क्या रहा और जहां शिक्षण आपके लिए वरदान साबित हुआ?

अब तक की यात्रा का सर्वश्रेष्ठ पहलू आर्मी पब्लिक स्कूल का प्रधानाचार्य बनना रहा। यहां मेरी शिक्षा, संस्कृति व संस्कार की परीक्षा हर पहलू पर हुई और मैंने हर  मोड़ पर विद्यालय को आगे लाने की कोशिश की है।

कब संतुष्ट होते हैं या नैतिक आधार पर शिक्षा के स्तंभ कहां.कहां दिखाई दिए?

जब एक विद्यार्थी अपनी जिंदगी में कुछ बन जाता है तो बहुत संतुष्टि मिलती हैञ नीयत व नीति अच्छी हो तो यिमि भी अच्छी होगी।

बच्चों के सर्वांगीण विकास में शिक्षा के वर्तमान ढर्रे ने जो छीन लिया है?

बच्चों के सर्वांगीण विकास में एक सोच बदलने की जरूरत है कि मैं डाक्टर, इंजीनियर, बैंकर या किसी भी पद पर जाने से पहले एक अच्छा इनसान बनूंगा।

क्या आप भी मानते हैं कि पाठ्यक्त्रमों के अनावश्यक विस्तार कम होना चाहिए?

हां, अनावश्यक विस्तार को कुछ हद तक कम करना ही चाहिए।

शिक्षा में सुधार की हर कोई चर्चा करता है। आपको ऐसी तीन कौन सी कमियां दिखाई देती हैं, जहां परिवर्तन की जरूरत है?

शिक्षा प्रायोगिक, प्रासंगिक व व्यक्तित्व विकासोमुखी होनी चाहिए, हर कमियां दूर हो जाएंगी।

क्या शिक्षक से बड़ी भूमिका अभिभावकों की हो गई है या अध्यापक वर्ग ने खुद को  समेट लिया है?

कुछ हद तक दोनों की भूमिका है। शिक्षक व अभिभावक दोनों में अच्छे ताल मेल की अवश्यकता है।

धर्मशाला में इतने वर्ष गुजारने के बाद आप खुद में हिमाचल को कैसे देखते हैं। अध्यापन से हटकर जो पाया?

धर्मशाला में इतने वर्षों में  अध्ययन को छोड़कर एक कार्य की कल्पना व कलाकार की कल्पना उभर कर आई जो आपको आत्ममीय आनंद देता है।

भविष्य की पीढ़ी को और सशक्त करने के लिए देश, समाज और सरकार को क्या करना चाहिए?

भविष्य की पीढ़ी को सशक्त करने के लिए सरकार को शिक्षा के बजट को सबसे ऊपर  रखना चाहिए-हर मुमकिन ईमानदार पहल हो कि हमारा समाज बहुत बहुत शिक्षित हो। अच्छी शिक्षा से समाज की अच्छी सोच होगी और तब हमारा देश प्रगति कर सकता है। अन्यथा हर तरफ त्राहि-त्राहि ही सुनाई देगी।

अभिव्यक्ति के किस माध्यम में आपकी कल्पना सहज हो जाती है या जहां पहुंचकर लौटने की इच्छा नहीं रहती?

कला और कल्पना। यहां पहुंच लौटने को दिल नहीं करता।

जीवन के किस धरातल पर आप खुद को सफल मानते हैं। जहां से आपका परिचय मुकम्मल हुआ?

एक शिक्षार्थी के रूप में, एक अच्छे इनसान के रूप में ।

क्या छात्र समुदाय के सपने पढ़ने में आप कामयाब रहे या वर्षों अध्यापन के समुद्र में हीरे चुनने की कोई तरकीब मिल गई?

छात्र समुदाय को याद दिलाता हूं- अब्दुल कलाम की ये पंक्तियां- सपने वो देखें जो तुम्हें सोने न दें। मेरे लिए तो हर बच्चा एक हीरा- पारखी की  नजर चाहिए।

एक ख्वाहिश जो अब भी दबा कर बैठे हैं या कोई खामोश लक्ष्य जो सिर्फ  निगाहों में है?

इसी ख्वाहिश को आगे पढ़ता रहूं-

फर्क होता है खुदा व फकीर में, फर्क होता है किस्मत व लकीर में, अगर कुछ यादें और न मिले तो समझ लेना कि कुछ और  अच्छा-अच्छा लिखा है।

रिटायरमेंट के बाद?

हा-हा-हा । तो सुनिए चंद रिश्ते जो मेरी उम्र की पूंजी हैं, उन्हीं में शामिल है, हिमाचल व ‘दिव्य हिमाचल’ का नाम

–    राजेश ग्रोवर, योल

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