एसएसए को मिलेंगे 170 करोड़

By: Jun 11th, 2018 12:01 am

भारत सरकार देगी पिछले साल का बकाया, कंपनियों को सालों से फंसा बजट देने में राह आसान

शिमला – प्रदेश में सरकारी स्कूलों के विकास कार्यों व सुविधाओं को और चार चांद लगने की उम्मीद है। भारत सरकार ने एसएसए व आरएमएसए के तहत पिछले साल के शेष बजट को वापस देने की घोषणा कर दी है। भारत सरकार की ओर से मिली इस हरी झंडी के बाद शिक्षा के स्तर में सुधार की उम्मीद जताई जा रही है। बता दें कि भारत सरकार की ओर से इस बार जहां 825 करोड़ का बजट शिक्षा पर खर्च करने के लिए दिया है, तो वहीं पिछले वित्त वर्ष का 170 करोड़ देने की भी बात कही है। भारत सरकार की ओर से अगर यह राहत जल्द प्रदान की जाती है, तो इससे शिक्षा विभाग का जो बकाया कई निजी कंपनियों को देने को है, उससे छुटकारा मिल जाएगा। ऐसा पहली बार होगा, जब किसी राज्य को पिछले वित्त वर्ष का बचा बकाया केंद्र सरकार की ओर से नए वित्त वर्ष में शामिल किया जा रहा है। इसी तरह इस बार राज्य परियोजना निदेशालय के पास शिक्षा पर खर्च करने के लिए एक्स्ट्रा बजट की बढ़ोतरी हुई है। शिक्षा विभाग के विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राज्य परियोजना निदेशालय ने बाहरी राज्य की वोकेशनल कंपनी और स्कूलों में आईसीटी लैब लगाने वाली कंपनियों को सालों से करोड़ों का बजट नहीं दिया है। ऐसे में वोकेशनल कंपनियों और आईसीटी कंपनी मालिकों ने सर्वशिक्षा अभियान के तहत प्रोजेक्ट में आगे काम न करने के नोटिस भी दे दिए हैं। इस बारे में कई बार शिक्षा निदेशालय में आकर कंपनी मालिक निदेशक के साथ बैठक भी कर चुके हैं। आईसीटी और वोकेशनल कंपनी की ओर से अंतिम मौका एसएसए को करार आगे रखने के लिए दिया गया है। वहीं अब भारत सरकार की ओर से पिछले साल के शेष करोड़ों रुपए के बजट को वापस किया जाएगा, तो यह बड़ी राहत भरी खबर है। इससे स्कूलों में नए वोकेशनल कोर्स से लेकर अन्य आईसीटी लैब स्थापित की जाएंगी। साथ ही डिजिटल रूप से छात्रों को पढ़ाने के नए तौर-तरीकों को समझाने में भी बजट काफी सहायक सिद्ध होगा।

खानापूर्ति के तौर पर सुविधाएं

प्रदेश के सरकारी स्कूलों में सुविधाएं देने के आज तक बड़े-बड़े दावे तो किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत तो यह है कि स्कूलों में आज भी खानापूर्ति के तौर पर सुविधाएं दी जा रही हैं। हैरानी तो इस बात की है कि शहरी स्कूलों में तो फिर भी सभी सुविधाएं छात्रों को दी गई हैं, लेकिन अगर शहर से थोड़ी सी भी दूरी पर चले जाएं, तो वहां के स्कूलों को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे बजट होने के बाद भी सरकार और शिक्षा विभाग खर्च नहीं करना चाहती।

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