कब होगा कलियुग का अंत ?

By: Jun 30th, 2018 12:05 am

समय-समय पर दुनिया खत्म होने की भविष्यवाणियां भी आती रहती हैं, लेकिन अभी दुनिया खत्म होने में काफी वक्त है। भारत की कुछ गुफाएं और मंदिर ऐसे हैं जहां यह रहस्य छुपा हुआ है। पाताल भुवनेश्वर दरअसल एक प्राचीन और रहस्यमयी गुफा है जो अपने आप में एक रहस्यमयी दुनिया को समेटे हुए है। गुफा में पहुंचने पर एक अलग ही अनुभूति होती है…

उत्तराखंड की पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमांत कस्बे गंगोलीहाट की पाताल भुवनेश्वर गुफा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। सृष्टि की रचना से लेकर कलियुग का अंत कब और कैसे होगा, इसका पूरा वर्णन भी यहां पर है। यहां पत्थरों से बना एक-एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए है।

मुख्य द्वार से संकरी फिसलन भरी 80 सीढि़यां उतरने के बाद एक ऐसी दुनिया नुमाया होती है जहां युगों-युगों का इतिहास एक साथ प्रकट हो जाता है। गुफा में बने पत्थरों के ढांचे देश के आध्यात्मिक वैभव की पराकाष्ठा के विषय में सोचने को मजबूर कर देते हैं। यह  एकमात्र ऐसा स्थान है जहां पर चारों धामों के दर्शन एक साथ होते हैं। शिवजी की जटाओं से बहती गंगा की धारा यहां नजर आती है तो अमृतकुंड के दर्शन भी यहां पर होते हैं। ऐरावत हाथी भी आपको यहां दिखाई देगा और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वर्ग का मार्ग भी यहां से शुरू होता है।

समय-समय पर दुनिया खत्म होने की भविष्यवाणियां भी आती रहती हैं, लेकिन अभी दुनिया खत्म होने में काफी वक्त है। भारत की कुछ गुफाएं और मंदिर ऐसे हैं जहां यह रहस्य छुपा हुआ है। पाताल भुवनेश्वर दरअसल एक प्राचीन और रहस्यमयी गुफा है जो अपने आप में एक रहस्यमयी दुनिया को समेटे हुए है। गुफा में पहुंचने पर एक अलग ही अनुभूति होती है।

जैसे कि आप किसी काल्पनिक लोक में पहुंच गए हों। गुफा में उतरते ही सबसे पहले गुफा के बायीं तरफ शेषनाग की एक विशाल आकृति दिखाई देती है जिसके ऊपर विशालकाय अर्धगोलाकार चट्टान है। इसके बारे में कहा जाता है कि शेषनाग ने इसी स्थान पर पृथ्वी को अपने फन पर धारण किया है। स्कंद पुराण में इस गुफा के विषय में कहा गया है कि इसमें भगवान शिव का निवास है। सभी देवी-देवता इस गुफा में आकर भगवान शिव की पूजा करते हैं। गुफा के संकरे रास्ते से जमीन के अंदर आठ से दस फीट अंदर जाने पर गुफा की दीवारों पर शेषनाग सहित विभिन्न देवी-देवताओं की आकृति नजर आती है।

मान्यता है कि पांडवों ने इस गुफा के पास तपस्या की थी। बाद में आदि शंकराचार्य ने इस गुफा की खोज की। इस गुफा में चार खंभे हैं जो चार युगों अर्थात सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शाते हैं। इनमें पहले तीन आकारों में कोई परिवर्तन नहीं होता। जबकि कलियुग का खंभा लंबाई में अधिक है और इसके ऊपर छत से एक पिंड नीचे लटक रहा है। यहां के पुजारी का कहना है कि 7 करोड़ वर्षों में यह पिंड 1 इंच बढ़ता है।

मान्यता है कि जिस दिन यह पिंड कलियुग के खंभे से मिल जाएगा, उस दिन कलियुग समाप्त होगा और महाप्रलय आ जाएगा। पौराणिक महत्त्व के पुरातात्त्विक साक्ष्यों की मानें तो इस गुफा को त्रेता युग में राजा ऋतुपर्ण ने सबसे पहले देखा। द्वापर युग में पांडवों ने यहां चौपड़ खेला और कलियुग में जगद्गुरु शकराचार्य का 822 ईस्वी के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया।

-क्रमशः

 


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