दिल्ली की दहलीज पर नक्सलवाद

By: Jun 11th, 2018 12:05 am

नक्सली प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश रच रहे हैं। उन्होंने राजीव गांधी हत्याकांड जैसी रणनीति पर विचार किया है। माओवादी नक्सली संगठनों की बुनियादी चिंता है कि मोदी 15 से अधिक राज्यों में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रहे हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा, तो सभी मोर्चों पर पार्टी के लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी। कामरेड किसन और कुछ अन्य सीनियर कामरेड ने मोदी राज को खत्म करने के लिए कारगर सुझाव दिए हैं। हालांकि राजीव गांधी सरीखा हत्याकांड आत्मघाती जैसा होगा। उसके नाकाम होने की संभावना भी ज्यादा है, पर पार्टी हमारे प्रस्ताव पर विचार जरूर करे। प्रधानमंत्री मोदी को जनसभा के दौरान और रोड शो में टारगेट करना असरदार रणनीति हो सकती है। पार्टी का अस्तित्व किसी भी त्याग से ऊपर है। बाकी अगले पत्र में….। यह रोना विल्सन के मुनिरका दिल्ली वाले फ्लैट से बरामद पत्र का सारांश है। विल्सन का दावा है कि वह जेएनयू में पीएचडी का शोधार्थी है। पुणे पुलिस ने जो 5 आरोपी गिरफ्तार किए हैं, उनमें विल्सन भी है। यह नक्सलवाद का शहरी रूप है, जिसे पुलिस ने भी ‘अरबन नक्सल’ और ‘टॉप अरबन माओवादी’ का नाम दिया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली इन्हें ‘हाफ नक्सली’ मानते हैं और वे सबसे खतरनाक माओवादी जमात है। उप्र के डीजीपी रहे विक्रम सिंह इन्हें ‘सफेदपोश’, ‘फैशनपरस्त’ और अंतरराष्ट्रीय गिरोहों की कृपा पर पलने वाले लोग मानते हैं। यदि साजिश की ई-मेल और जब्त पांच चिट्ठियों के खुलासे सच हैं, तो यह बेहद गंभीर और संवेदनशील मामला है। माओवादी अपने राजनीतिक वजूद के लिए प्रधानमंत्री मोदी को ही नहीं, हिंदुत्व को भी गंभीर चुनौती मानते हैं, लिहाजा मोदी और हिंदुत्व के विरोध में बाकायदा एक ब्रिगेड सक्रिय है। सरकार कुछ भी कहे, लेकिन नक्सलवादी विस्तार अब भी देश के करीब 120 जिलों में है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी मानते हैं कि नक्सली प्रभाव वाले क्षेत्रों की संख्या 135 जिलों से घटकर 90 रह गई है। यथार्थ यह है कि नक्सली जंगलों में एक समानांतर लड़ाई लड़ रहे हैं और शहरों में एक कथित बौद्धिक वर्ग उनका समर्थक, पैरोकार भी है और विभिन्न स्तरों पर प्रचार भी करता है। अदालतों में केस भी लड़ता है। शहरी नक्सलवाद का यह रूप नया नहीं है। हालांकि जिस नक्सलवाद की शुरुआत गांवों, किसानों, आदिवासियों के जरिए हुई थी, आज शहरों में प्रोफेसर, वकील, डाक्टर, पत्रकार, समाजसेवी भी उनका आंदोलन सींच रहे हैं। प्रख्यात लेखिका अरुंधती राय भी सरेआम इसी जमात में शामिल हैं। कई मौकों पर उन्होंने नक्सलियों और उनके समर्थकों के प्रवक्ता की भूमिका भी निभाई है। यह जमात इसलिए बेहद खतरनाक है, क्योंकि उनके हाथों में हथियार नहीं हैं और चेहरों पर मुखौटे चढ़े हैं, लिहाजा पहचानना असंभव-सा है। मौजूदा केस में रोना विल्सन मूलतः केरल का है, लेकिन बीते कई वर्षों से दिल्ली में ही बसा है। उसे दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे जीएन साईबाबा का करीबी माना जाता है। साईबाबा को मई, 2014 में गिरफ्तार किया गया था। मार्च, 2017 में गढ़चिरौली कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। पुलिस का दावा रहा है कि साईबाबा की गैर-मौजूदगी में विल्सन ने शहर के माओवादी संगठनों और जंगलों में सक्रिय नक्सलियों के बीच समन्वय का काम संभाला था। उसके अलावा जो गिरफ्तार किए गए हैं, उनमें सुरेंद्र गडलिंग वकील हैं, शोमा सेन नागपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं, महेश राउत एक्टिविस्ट और सुधीर ढावले पत्रकार हैं, लेकिन सभी के संपर्क माओवादियों से स्पष्ट हैं। देश की राजधानी दिल्ली समेत कई बड़े शहरों में नक्सल-समर्थक जमात पसरी हुई है। कइयों को जेल भी भेजा जा चुका है, लेकिन वे जमानत पर छूट कर बाहर आ जाते हैं। गौरतलब सूचना यह है कि दिल्ली के कनॉट प्लेस की बगल में हनुमान गली के एक फ्लैट में हमने खुद माओवादी गतिविधियां देखी हैं। वहां से एक अनियतकालीन पत्रिका का प्रकाशन भी किया जाता था और माओवाद समर्थक साहित्य इधर-उधर वितरित करने के लिए आता था। नक्सल-समर्थक लोकगायक एवं नर्तक गद्दर और माओ चिंतक वरवर राव को हमने वहीं देखा था। यह दावा नहीं है कि उस फ्लैट में भी साजिश की रणनीतियां तय की जाती थीं, लेकिन माओवादियों का लक्ष्य शहरी बौद्धिक वर्ग के जरिए 2050 दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का है। हालांकि वे मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था और सत्ता के विरोधी हैं। उनकी सत्ता का मॉडल भी संसदीय नहीं है। यह विचार खुफिया एजेंसियों के जरिए भारत सरकार को जरूर पता होगा, क्योंकि यूपीए सरकार के दौरान योजना आयोग ने एक दस्तावेज छापा था, जिसमें नक्सलियों की कुल आमदनी 1200 करोड़ रुपए आंकी गई थी। बहरहाल साजिश देश के प्रधानमंत्री को लेकर रची जा रही है, लिहाजा इसे ‘चुनावी हथकंडा’ और ‘प्लांट न्यूज’ मत कहें। यह राजनीति का मुद्दा नहीं है। जब तक एजेंसियां जांच करके निष्कर्ष अदालत तक नहीं पहुंचाती हैं, तब तक जुबान को लगाम दें। धमकी किसी और अतिविशिष्ट व्यक्ति को भी दी जा सकती है।

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