पारछू शांत, पर बरसात में रहें अलर्ट

By: Jun 4th, 2018 12:20 am

सेटेलाइट की तस्वीरों में खुलासा, आने वाले समय में जलस्तर बढ़ने की पूरी आशंका

शिमला  –चीन के तिब्बत स्थित पारछू झील अभी पूरी तरह शांत नहीं है। झील के जल स्तर में बढ़ोतरी की संभावना जताई गई है। संभावित खतरे को लेकर लगातार झील पर निगरानी रखने और इसकी निरंतर समीक्षा करने को कहा गया है। सेटेलाइट से जारी ताजा तस्वीरों में यह खुलासा हुआ है। विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद ने पारछू झील की ताजा रिपोर्ट में सतर्कता रखने को कहा है। आईआरएस-आरएस2ए-एलथ्री सेटेलाइट डाटा ने पारछू की ताजा स्थिति पर अपनी ऑब्जरवेशन में कहा है कि पारछू झील फिलहाल शांत है। इससे मौजूदा स्थिति में किसी तरह का खतरा नहीं है। बावजूद इसके बरसात के मौसम में झील का जल स्तर बढ़ने की पूरी संभावना है। इसके अलावा बर्फ के पिघलने से स्थिति और गंभीर हो सकती है।  इस कारण पारछू पर लगातार निगरानी रखना बेहद जरूरी है और नियमित समीक्षा की आवश्यकता है। रिपोर्ट के अनुसार पारछू झील की तस्वीरें 29 मार्च, 2018 को ली गई हैं। इस आधार पर सेटेलाइट डाटा का अध्ययन करने के बाद विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद ने अपनी रिपोर्ट जारी की है। उल्लेखनीय है कि जून, 2004 में भू-स्खलन के कारण चीन के तिब्बत में पारछू झील का जन्म हुआ है। तिब्बत की पारछू नदी पर बनी इस झील में वर्ष 2014 के दौरान दरारें पड़ गई थीं। इसके चलते झील की बाढ़ ने हिमाचल प्रदेश को दिन में तारे दिखाए थे। उस दौरान किन्नौर तथा शिमला जिला में भारी तबाही से 400 करोड़ से ज्यादा का नुकसान आंका गया था।  बाढ़ के कारण सतलुज के किनारे बसे सैकड़ों परिवारों को विस्थापन का दर्द दिया था। करीब दो दर्जन गांवों के ऊपर पारछू का खतरा अब भी बरकरार है। हालांकि वर्ष 2005 की तबाही के बाद केंद्रीय जल आयोग हरकत में आया था और पारछू पर लगातार नजरें गढ़ाई हैं। हिमाचल प्रदेश के जलवायु परिवर्तन केंद्र में भी पारछू के खतरे को लेकर अध्ययन शुरू कर दिया। इस पर विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद लगातार समीक्षा कर रहा है। जाहिर है कि पिछले लंबे समय से पारछू झील शांत है। बावजूद इसके सेटेलाइट से जारी तस्वीरों के आधार पर हिमखंडों के पिघलने और भू-स्खलन की समीक्षा की जा रही है।

13 से 15 मीटर तक पहुंच सकता है जल स्तर

वैज्ञानिकों का कहना है कि बरसात के मौसम में मूसलाधार बारिश और ग्लेशियरों के पिघलने से झील का जल स्तर 13 से 15 मीटर तक पहुंच सकता है। इस स्थिति में पारछू बड़े स्तर पर तबाही मचा सकती है। इसके अलावा झील में दरारें पड़ने और बादल फटने की संभावित घटना से खतरे का मंजर और भयानक हो सकता है।

सतलुज बेसिन को ज्यादा खतरा

पारछू झील का सबसे बड़ा खतरा हिमाचल प्रदेश पर है।  सतलुज बेसिन इसकी जद में सबसे ज्यादा जख्म खा सकती है। किन्नौर से लेकर रामपुर तक हजारों मेगावाट विद्युत परियोजनाओं का निर्माण भी पारछू के रहमोकर्म पर टिका है।

जनता ने झेला है बाढ़ का दंश

पारछू झील में वर्ष 2014 में दरारें आ जाने से झील की बाढ़ ने प्रदेशवासियों को खौफ में डाल दिया था। उस दौरान 400 करोड़ से ज्यादा का नुकसान और सतलुज के किनारे बसे कई परिवारों को विस्थापन झेलना पड़ा था। करीब दो दर्जन गांवों के ऊपर पारछू का खतरा अब भी बरकरार है

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