भिंडरांवाला अभी भी जिंदा है

By: Jun 11th, 2018 12:05 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

निस्संदेह प्रधानमंत्री (तत्कालीन) इंदिरा गांधी अकालियों को खत्म करना चाहती थीं तथा भिंडरांवाला को चुनौती देते समय उन्हें इसका एक अवसर भी मिला। वास्तव में इसमें उससे कहीं अधिक था जो आंखों ने देखा। एक कहानी के अनुसार योजना कुछ माह बाद ही होने वाले 1894 के लोकसभा चुनाव के लिए मतदाताओं को रिझाने की थी तथा इसकी पुष्टि बाद में उनके निजी सचिव आरके धवन ने भी की थी। इंदिरा गांधी के पुत्र राजीव गांधी, भतीजे अरुण नेहरू तथा राजीव के सलाहकार अरुण सिंह इस फैसले के पीछे थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को यह आदेश देने के लिए बाध्य किया कि सेना स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को बाहर निकाल फेंके…

भारतीय इतिहास त्रासदियों से भरा पड़ा है। इसे जब दोबारा सुनाया जाता है, तो सुझाव दिया जाता है कि घटनाओं से बचा जा सकता था। आपरेशन ब्लू स्टार उनमें से एक है। आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरांवाला ने अपने आप को सिखों के सबसे बडे़ गौरवशाली पद अकाल तख्त पर स्थापित कर लिया तथा वहां राज्य के भीतर एक राज्य का निर्माण कर लिया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसकी बंदूकें शांत करने के लिए सेना का इस्तेमाल किया तथा हरमंदिर साहिब में टैंक भेजे। कोई कुछ भी कह सकता है, परंतु यह सच्चाई है कि भिंडरांवाला अब भी सिखों के दिलों में आदर व सम्मान का पात्र है। मुझे इस बात का एहसास तब हुआ था जब मैंने उसे एक बार अनजाने में ही आतंकवादी कह दिया था। सिख इतिहासविद खुशवंत सिंह इस टिप्पणी से बचने में सफल हुए कि भिंडरांवाला एक आतंकवादी था, लेकिन मैं इससे बच नहीं पाया। हालांकि मैंने यह स्पष्ट किया कि यह बिना किसी तैयारी के की गई टिप्पणी थी तथा यह भिंडरांवाला पर कोई प्रतिछाया आरोपित करने के मकसद से नहीं थी। इसके बावजूद सिख समुदाय में गुस्सा था कि मेरी माफी, माफी के रूप में नहीं ली गई। सिखों का अपमान करने के लिए मेरी आलोचना हुई थी। निस्संदेह प्रधानमंत्री (तत्कालीन) इंदिरा गांधी अकालियों को खत्म करना चाहती थीं तथा भिंडरांवाला को चुनौती देते समय उन्हें इसका एक अवसर भी मिला। वास्तव में इसमें उससे कहीं अधिक था जो आंखों ने देखा। एक कहानी के अनुसार योजना कुछ माह बाद ही होने वाले 1894 के लोकसभा चुनाव के लिए मतदाताओं को रिझाने की थी तथा इसकी पुष्टि बाद में उनके निजी सचिव आरके धवन ने भी की थी। इंदिरा गांधी के पुत्र राजीव गांधी, भतीजे अरुण नेहरू तथा राजीव के सलाहकार अरुण सिंह इस फैसले के पीछे थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को यह आदेश देने के लिए बाध्य किया कि सेना अमृतसर में स्वर्ण मंदिर पर हल्ला बोल दे तथा आतंकवादी नेता और उसके अनुयायियों को वहां से खदेड़ दे। आरके धवन को यह कहते हुए उद्धृत किया गया ः तीन लोगों नामतः राजीव, अरुण नेहरू तथा अरुण सिंह का विश्वास था कि एक सफल सैन्य आपरेशन के जरिए कांगे्रस को चुनाव जीतने में आसानी रहेगी। आपरेशन ब्लू स्टार इंदिरा गांधी की अंतिम लड़ाई नहीं थी। राजीव की बड़ी गलतियों में यह पहली तथा शायद सबसे विनाशकारी गलती थी। एक मैगजीन ने यह भी लिखा कि इंदिरा गांधी ने इस आपरेशन को आनाकानी के साथ मंजूरी दी थी, आपरेशन के तुरंत बाद उन्होंने इस पर उस समय पछतावा भी व्यक्त किया था, जब उन्होंने धार्मिक स्थल को हुए नुकसान की फोटो अपने निजी सचिव आरके धवन के साथ देखी थीं। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह धार्मिक स्थल का दौरा कर संशोधन करना चाहते थे, लेकिन उन्हें ऐसा करने से रोक दिया गया। उन्होंने अपने स्तर पर एक नागरिक विमान का इंतजाम किया तथा अपनी ओर से माफी मांगने के लिए स्वर्ण मंदिर का दौरा किया।

बड़ी परेशानी यह थी कि उन्हें आल इंडिया रेडियो पर इस आपरेशन का बचाव करने के लिए कहा गया। परिणामस्वरूप उन्होंने मुझे बताया कि वह इसके लिए न करना चाहते थे, किंतु उन्हें एहसास हुआ कि इससे देश में संकट खड़ा हो जाएगा। राष्ट्रपति अगर एक ओर तथा सरकार दूसरी ओर खड़े हो जाते तो निश्चय ही संकट आ जाता। इसलिए अंततः उन्होंने आल इंडिया रेडियो पर इस आपरेशन का बचाव किया। वह वस्तुतः राष्ट्र को संबोधित करते हुए रो भी पड़े। इंदिरा गांधी भी उस समय डर गई थीं जब उन्होंने अरुण सिंह द्वारा लाई गई स्वर्ण मंदिर की फुटेज को देखा। अरुण नेहरु ने मुझे बताया कि उनकी बुआ इंदिरा गांधी अंतिम क्षणों तक सैन्य आपरेशन चलाने के लिए तैयार नहीं थी। लेकिन तब आर्मी चीफ तथा उक्त तीन लोगों ने इंदिरा गांधी के दिमाग को बदल दिया। इन्हीं लोगों ने इस आपरेशन का मार्गदर्शन भी किया था। यह मुख्यतः इसलिए हुआ क्योंकि राजीव गांधी ने खुद प्रत्यक्ष रूप से पंजाब के मामलों को देखना शुरू कर दिया था, इससे पहले ये मामले उनके छोटे भाई संजय गांधी देख रहे थे। यह अलग मामला है कि इंदिरा गांधी को इस सैन्य आपरेशन की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, जब उन्हीं के सुरक्षा गार्ड ने उन्हें गोलियों से भून डाला।

अपनी माता की हत्या के बाद जो लोकसभा चुनाव हुए, उनमें बेटे राजीव गांधी को शानदार जीत हासिल हुई। इस चुनाव में उन्हें 544 सीटों में से 421 सीटें मिलीं। यह अब तक के इतिहास की सबसे बड़ी जीत थी तथा राजीव गांधी सत्ता में आ गए। बाद में एक ओर अकाली व सरकार तथा दूसरी ओर हिंदू व सिखों के मध्य बढ़ गई दूरी को पाटने के लिए जिस टीम को लगाया गया, उसमें मेरे अलावा जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा, एयर मार्शल अर्जुन सिंह व इंद्र कुमार गुजराल भी शामिल थे। बाद में इंद्र कुमार गुजराल तो एक बार प्रधानमंत्री भी बने। हमारा निष्कर्ष यह था कि आपरेशन ब्लू स्टार आवश्यक नहीं था तथा भिंडरांवाला से अलग तरीके से भी निपटा जा सकता था। हमने यह बात उस पंजाबी समूह, जिसने हमें इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए नियुक्त किया था, को रिपोर्ट में कही थी। उस समय पीवी नरसिम्हा राव गृह मंत्री थे तथा हमारी टीम जब उनसे सरकार की कार्रवाई से अवगत कराने के लिए मिली तो उनका जवाब गोलमोल था। अन्य सभी लोगों, जिनमें वे गवाह भी थे जिनसे हमने बात की थी, ने एक केस बनाया जबकि यह स्पष्ट था कि सरकार ने ओवर एक्शन लिया था। दिल्ली तथा अन्य क्षेत्रों में जो सिख विरोधी दंगे हुए, उनसे तुरंत निपटा जा सकता था, लेकिन राजीव गांधी ने जानबूझ कर न तो पुलिस और न ही सेना को हस्तक्षेप करने के लिए कहा। इसके विपरीत उन्होंने यह विवादित टिप्पणी कर डाली कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। आपरेशन के 34 वर्षों बाद अब खुलासा हुआ है कि इस संबंध में ब्रिटिश सेना ने भारत को सलाह दी थी कि वह सिखों के इस बड़े व गौरवशाली संस्थान पर अस्थायी कब्जा कर ले। इससे दिल्ली व लंदन में तूफान उठ खड़ा हुआ है। ब्रिटिश सरकार ने इस खुलासे की जांच के आदेश दे दिए हैं तथा भाजपा ने इस संबंध में स्पष्टीकरण की मांग की है। बताया जाता है कि ब्रिटेन के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे कुछ गैर वर्गीकृत दस्तावेजों को जनता के सामने लाने की अनुमति मिलने के बाद यह खुलासा हुआ है। इनमें एक पत्र ऐसा है जिसमें विदेश सचिव ने गृह सचिव के निजी सचिव को लिखा है कि विदेश मंत्रालय चाहता है कि देश में रह रहे सिखों में से कुछ संदिग्ध लोगों पर नजर रखी जानी चाहिए ताकि वे देश में किसी तरह की संभावित गड़बड़ी न कर सके। पत्र में यह भी कहा गया है कि अगर ब्रिटेन की ओर से दी गई सलाह को सार्वजनिक किया गया, तो ब्रिटेन में रह रहे भारतीय समुदाय में तनाव पैदा हो सकता है। हालांकि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि 1984 के इस सैन्य आपरेशन में क्या ब्रिटिश योजना को ही पूरी तरह अपनाया गया था। जब 1990 में मेरी नियुक्ति ब्रिटेन में भारत के हाई कमिश्नर के रूप में हुई, तो मैंने देखा कि उच्चायोग में प्रवेश को लेकर सिखों के साथ पूर्वाग्रह के साथ काम किया जा रहा था। मेरा पहला एक्शन यह था कि मैंने सभी के लिए उच्चायोग के दरवाजे खोल दिए। उच्चायोग में प्रविष्ट होते समय केवल सिखों की जांच की प्रथा को मैंने बंद कर दिया था।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com

अपना सही जीवनसंगी चुनिए| केवल भारत मैट्रिमोनी पर-  निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App