रजवाड़ाशाही के खिलाफ था पझौता आंदोलन

By: Jun 11th, 2018 12:05 am

नाहन – शहीदों की चिता पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का बाकीं यही निशां होगा अर्थात हिमाचल प्रदेश के इतिहास में 11 जून का दिन पझौता गोलीकांड दिवस के नाम से जाना जाता है। 11 जून, 1943 को महाराजा सिरमौर राजेंद्र प्रकाश की सेना द्वारा पझौता आंदोलन के निहत्थे लोगों पर राजगढ़ के सरोट टिले से 1700 राउंड गोलियां चलाई गई थी, जिसमें कमना राम नामक व्यक्ति गोली लगने से मौके पर ही शहीद हुए थे, जबकि तुलसी राम, जाति राम, कमाल चंद, हेत राम, सही राम, चेत सिंह घायल हो गए थे। इस घटना के 75 वर्ष पूर्ण होने पर पझौता स्वतंत्रता सैनानी कल्याण समिति द्वारा इस वर्ष पझौता गोलीकांड की हीरक जयंती हाब्बन में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है। इस अवसर पर राज्यपाल हिमाचल प्रदेश आचार्य देवव्रत बतौर मुख्यातिथि शिरकत करेंगे। वैद्य सूरत सिंह के नेतृत्व में इस क्षेत्र के जांबाज एवं वीर सपूतों द्वारा सन 1943 में अपने अधिकार के लिए महाराजा सिरमौर के विरुद्ध आंदोलन करके रियासती सरकार के दांत खट्टे कर दिए थे। इसी दौरान महात्मा गांधी द्वारा सन 1942 में देश में भारत छोड़ो आंदोलन आरंभ किया गया था जिस कारण इस आंदोलन को देश के स्वतंत्र होने के उपरांत भारत छोड़ो आंदोलन की एक कड़ी माना गया था। पझौता आंदोलन से जुड़े लोगों को प्रदेश सरकार द्वारा स्वतंत्रता सैनानियों का दर्जा दिया गया। जानकारी के अनुसार महाराजा सिरमौर राजेंद्र प्रकाश की दमनकारी एवं तानाशाही  नीतियों के कारण लोगों में रियासती सरकार के प्रति काफी आक्रोश था। महाराजा सिरमौर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार की सेना और रसद प्रदान करके मदद कर रहे थे और जिस कारण रियासती सरकार द्वारा लोगों पर जबरन घराट, रीत-विवाह आदि अनुचित कर लगाने के अतिरिक्त  सेना में जबरन भर्ती होने के लिए फरमान जारी किए गए। रियासती सरकार के तानाशाही रवैये से तंग आकर पझौता घाटी के लोग अक्तूबर, 1942 में टपरोली नामक गांव में एकत्रित हुए और पझौता किसान सभा का गठन किया गया था, जबकि आंदोलन की पूरी कमान एवं नियंत्रण सभा के सचिव वैद्य सूरत सिंह के हाथ में थी। पझौता किसान सभा द्वारा पारित प्रस्ताव को महाराजा सिरमौर को भेजा गया, जिसमें बेगार प्रथा को बंद करने, जबरन सैनिक भर्ती, अनावश्यक कर लगाने, दस मन से अधिक अनाज सरकारी गोदामों में जमा करना इत्यादि शामिल था। महाराजा सिरमौर राजेंद्र प्रकाश द्वारा उनकी मांगों पर कोई गौर नहीं किया गया। बताते हैं कि राजा के चाटुकारों द्वारा समझौता नहीं होने दिया जिस कारण  पझौता के लोगों द्वारा बगावत कर दी गई और उस छोटी सी चिंगारी ने बाद में एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया। आंदोलन के लिए गठित समिति का पहला कदम था राजा द्वारा यहां बनाए गए जेलदारों व नंबरदारों द्वारा अपने पद से त्याग पत्र देना। इसी दौरान जिला सिरमौर में न्यायाधीश के पद से डा. वाईएस परमार ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया। जैसे ही राजा सिरमौर को इस बात की भनक लगी उन्होंने नाहन से 50 सैनिकों के दल को इस आंदोलन को कुचलने व समिति के सदस्य को पकड़ने के लिए क्षेत्र में भेजा। इस दल का नेतृत्व डीएसपी जगत सिंह कर रहे थे। उन्होंने क्षेत्र का दौरा करके नाहन जाकर अपने पद से त्याग पत्र दे दिया। अंततः महाराजा सिरमौर ने आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस दल को पझौता घाटी को भेजा। छह मई, 1943 को यह दल राजगढ़ पहुंचा। कुछ आंदोलनकारियों को राजगढ़ के किले में कैद कर लिया। सात मई, 1943 को कोटी गांव के पास आंदोलनकारियों व पुलिस के बीच मुठभेड़ हो गई। इसमें आंदोलनकारियों ने पुलिस दल को बंदी बना लिया। आंदोलनकारियों ने मांग रखी कि राजगढ़ किले में बंद आंदोलनकारियों को छोड़ा जाए तभी वे पुलिस दल को छोड़ेंगे। इस दौरान सेना द्वारा  आंदोलनकारियों को 24 घंटे में आत्मसमर्पण करने को कहा गया, मगर आंदोलनकारियों ने साफ मना कर दिया। उसके बाद सेना ने क्षेत्र में लूटपाट आरंभ कर दी। इसी दौरान सेना द्वारा आंदोलन के प्रणोता सूरत सिंह के कटोगड़ा स्थित मकान को डाइनामेट से उड़ा दिया गया, जबकि  एक अन्य आंदोलनकारी कली राम के घर को आग लगा दी गई, जिससे आंदोलन ओर भड़क गया। 11 जून, 1943 को निहत्थे लोगों का एक दल आंदोलनकारियों से मिलने जा रहा था तो उस समय कुफरधार के पास यह दल पहुंचा तो सेना ने राजगढ़ के समीप सरोट के टिले से गोलियों की बौछार शुरू कर दी। रिकार्ड के अनुसार सेना द्वारा 1700 राउंड गोलियां चलाई जिसमें कमना राम की मौके पर ही मौत हो गई तथा कुछ लोग घायल हो गए थे। दो मास के पश्चात सैनिक शासन और गोलीकांड के बाद सेना और पुलिस ने वैद्य सूरत सिंह सहित 69 आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। अदालत में मुकद्दमा चलाया गया, जिसमें 14 लोगों को बरी कर दिया गया। तीन को दो-दो साल और 52 आंदोलनकारियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस बीच कनिया राम, बिशना राम, कली राम, मोही राम ने जेल में ही दम तोड़ दिया। कोर्ट ने सजा को दस और पांच वर्ष में परिवर्तित कर दिया, जिसमें वैद्य सूरत सिंह, मियां गुलाब सिंह, अमर सिंह, मदन सिंह, कली राम आदि को 10 वर्ष की सजा सुना दी गई। 15 अगस्त, 1947 को आजादी के बाद आंदोलन से जुड़े काफी लोगों को रिहा कर दिया गया, जबकि आंदोलन के प्रमुख वैद्य सूरत सिंह, बस्ती राम पहाडि़या और चेत सिंह वर्मा को मार्च, 1948 में रिहा किया गया। आज प्रदेश पझौता आंदोलन की हीरक जयंती मना रहा है।

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