संघ की प्रगति अनिष्टकारी है

By: Jun 18th, 2018 12:07 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि अमित शाह के बारे में मेरा विचार एक ऐसे व्यक्ति वाला था, जो आग लगाता है और फिर उसमें घी डालता है। लेकिन मेरी यह सोच उस समय पूरी तरह तिरोहित हो गई जब मैंने उनकी सद्भावना, विनम्रता, स्पष्ट विचार प्रक्रिया, अभिज्ञता व इससे भी ज्यादा उनका सुशील मिजाज देखा। इसके बावजूद कि मेरी विचारधारा उनके व भाजपा के विपरीत है, वह मुझे रिझाने के लिए उत्सुक दिखे। उन्होंने बताया कि वह महज छह साल के थे, जब उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाना शुरू कर दिया था…

मैं पंथ निरपेक्षता की विचारधारा के अनुयायियों को अन्यों की तरह ही उन्मादी पाता हूं। कुछ दिनों पहले जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मेरे घर पर आए, तो इसको लेकर खूब शोर शराबा हुआ। असंख्य लोगों ने टेलीफोन या ई-मेल करके इसकी आलोचना की। इन लोगों ने जो कुछ कहा, उसमें यह भी शामिल था कि आपको उन्हें अपने घर पर आने की इजाजत नहीं देनी चाहिए थी। मैं सारा रिकार्ड सीधे रखना चाहता हूं। शाह के दौरे से कुछ दिनों पहले ही मेरे घर पर कुछ कार्यकर्ता आए। हमने जयप्रकाश नारायण आंदोलन में एक साथ भाग लिया था। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आपको अपने घर पर शाह के दौरे को लेकर कोई आपत्ति है? मैंने उन्हें बताया कि कोई भी मेरे घर पर आ सकता है तथा मैं लोगों से विचारधारा के आधार पर पक्षपात नहीं करता हूं। मैं समझता हूं कि राजनीति में धर्म को न मिलाने की मेरी विचारधारा संभवतः सबसे अच्छी है तथा हमें अपने विश्वासों को अपनी बांहों पर नहीं पहन लेना चाहिए। जो लोग आपके विरोध में हैं, उन लोगों के साथ विचारों का आदान-प्रदान करने से भयभीत नहीं होना चाहिए। विचारधारा संबंधी अंतर को कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए। आखिर लोकतंत्र का मतलब ही विचार-विनिमय व चर्चा है। महात्मा गांधी ने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना से बातचीत की थी और यहां तक कि उनके घर पर भी गए थे तथा उन्हें विभाजन पर जोर नहीं देने के लिए समझाने की कोशिश की थी। जब यह घटना हुई थी तो उन्होंने देखा कि वह जिन्ना को समझाने में नाकाम रहे थे। उनके विचारों में कोई कड़वाहट नहीं थी। वास्तव में गांधी ने 21 दिन का अनशन किया, जिसे उन्होंने शुद्धिकरण का नाम दिया। इससे जो पाठ सीखा जा सकता है, वह यह है कि अपने मतभेदों को सुलझाने के लिए बातचीत की मेज पर बैठने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि अमित शाह के बारे में मेरा विचार एक ऐसे व्यक्ति वाला था, जो आग लगाता है और फिर उसमें घी डालता है। लेकिन मेरी यह सोच उस समय पूरी तरह तिरोहित हो गई जब मैंने उनकी सद्भावना, विनम्रता, स्पष्ट विचार प्रक्रिया, अभिज्ञता व इससे भी ज्यादा उनका सुशील मिजाज देखा। इसके बावजूद कि मेरी विचारधारा उनके व भाजपा के विपरीत है, वह मुझे रिझाने के लिए उत्सुक दिखे। उन्होंने बताया कि वह महज छह साल के थे, जब उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाना शुरू कर दिया था। उन्होंने जब यह बात मुझसे कही, तो उनकी आंखों में गर्व का भाव साफ देखा जा सकता था। वास्तव में वह नागपुर में ही पूरी तरह सान पर चढ़े। शाह के लिए यह एक विजयोपहार है। ऐसी स्थितियों में ही वह भाजपा के अध्यक्ष पद तक पहुंचे हैं। भारत चौराहे पर खड़ा है। हिंदुत्व के अनुयायी सत्ता हासिल करना चाहते हैं तथा एकता के सिद्धांत को निकाल बाहर करना चाहते हैं। अमित शाह से बात करते हुए मैंने आंशिक रूप से इस मसले पर भी उनसे चर्चा की। उन्होंने कहा कि जब भाजपा सत्ता में आती है, तो वह विस्तार के साथ अपने क्षेत्र का विकास करती है। मैंने अपना तर्क रखा कि इस प्रक्रिया में मस्जिद को भी ढहा दिया गया। उन्होंने उकसाने से इनकार किया तथा प्रतिक्रिया दी कि क्षेत्र के उपायुक्त पर घटनाक्रम का विकास निर्भर करता है। शाह से मेरी मुलाकात के दौरान जिन दो मुख्य मसलों पर उन्होंने ध्यान केंद्रित किया, वे हैं जाति व विभाजन। उन्होंने कहा कि समाजवादियों ने जातीय राजनीति को खत्म किया तथा समाजवादी आंदोलन के संस्थापक राम मनोहर लोहिया ने हर समय जाति को रेखांकित किया। संभवतः यही कारण है कि मेरे अनुसार, वे आरंभिक वर्षों में राज्यों में, न कि केंद्र में, सत्ता हासिल करने में कामयाब रहे। शाह ने इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान में सभी दलों के नेता इस मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं। यह अजीब बात है कि जो लोग सभी के विकास की विचारधारा में विश्वास रखते हैं, वे सत्ता में आने पर निश्चित समूहों की भलाई के लिए विभाजित हो जाना चाहते हैं। राज्य स्तर पर यह बात समझने योग्य है। लेकिन जब वे केंद्र में भी सत्ता में आते हैं, तब भी वे विभाजनकारी राजनीति से ऊपर नहीं उठ पाते हैं। सत्तारूढ़ भाजपा इसका एक उदाहरण है। भाजपा अब 21 राज्यों में सत्ता में है तथा इन राज्यों में सत्ता हासिल करने के लिए उसने अलग-अलग तरीके व सिद्धांत अपनाए हैं। यहां तक कि कांग्रेस, जो कि सबसे पुरानी पार्टी है तथा पंथनिरपेक्षता में विश्वास रखती है, उसका संगठन भी अब उस तरह का नहीं है जिस तरह कभी हुआ करता था। इसकी समस्या यह है कि इसके पास अब कोई नेता नहीं है तथा यह संकीर्ण राजनीति तक सीमित हो गई है। राहुल गांधी के सामने वर्ष 2019 एक कठिन समय होगा जब उन्हें उन नरेंद्र मोदी का मुकाबला करना होगा, जो विंध्य प्रदेश तक अपनी पार्टी का विस्तार कर चुके हैं। कर्नाटक का उदाहरण हमारे सामने है। विभाजन पर बातचीत करते हुए अमित शाह ने कहा कि अगर हमने कुछ और इंतजार किया होता, तो भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन न हुआ होता। हालांकि अमित शाह इस मसले पर सही नहीं हैं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड क्लेमेंट एटली ने भारत में अपना शासन खत्म करने के लिए छह जून, 1948 की तिथि घोषित की थी। इस तिथि तक अंगे्रजों को चले जाना था, चाहे भारत एक देश अथवा दो देश के रूप में विभाजित हो जाए। यह वास्तविकता है कि एटली की ओर से तय की गई इस डेडलाइन से 10 माह पहले ही वर्ष 1947 के मध्य अगस्त में भारत का विभाजन हो गया। जब मैंने लार्ड माउंटबैटन से पूछा था कि जून 1948 से पहले ही भारत का विभाजन क्यों हो गया, तो उन्होंने कहा था कि वह देश को अब एक नहीं रख सकते थे। विभाजन की प्रक्रिया में लाखों लोगों के मरने पर उन्होंने दुख जताया था। इस तरह अमित शाह के विचार उन घटनाक्रमों के उलट हैं जो घटित हुए थे। जब मैंने लार्ड माउंटबैटन से कहा था कि विभाजन के दौरान लाखों लोगों की मौत के लिए वह जिम्मेदार हैं, तो  उन्होंने कहा था कि उन्होंने दक्षिण एशिया में अपने सैनिकों के लिए भेजे जा रहे खाद्य सामग्री के जहाज को कोलकाता की ओर मोड़ कर 20 लाख लोगों को भूखों मरने से बचाया था। शाह की टिप्पणी ने मुझे थोड़ा निराश किया। ऐसा लगता है कि उनकी पार्टी ने कोई सबक नहीं सीखा है। वह देश पर हिंदुत्व को थोपने का प्रयास कर रही है, जबकि उसे पता है कि उसके इस अभियान के खिलाफ 17 करोड़ मुसलमान हैं। अमित शाह व उनकी पार्टी को यह याद रखना होगा कि भारत का संविधान पंथनिरपेक्ष है तथा इस देश पर जो भी राज करेगा, उसे इसका सम्मान जरूर करना होगा। दुर्भाग्य से ऐसा होता दिख नहीं रहा है। आरएसएस हर जगह अपना विस्तार कर रहा है तथा इस प्रक्रिया में वह अन्यों की पहचान का शमन कर रहा है। भाजपा को इसकी जरूरत है, क्योंकि उसका अपना कोई कैडर नहीं है। कारण चाहे कुछ भी हों, आरएसएस का शासन घृणा पैदा करने वाला है।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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