आर्यों का हिमाचल में प्रवेश सप्त सिंधु से पहले

By: Jul 4th, 2018 12:05 am

इतिहासकार आर्यों का जन्म  भारत को ही मानते हैं। आर्यों का जन्म चाहे मध्य-पूर्वी एशिया में हुआ हो, चाहे भारतवर्ष के सप्त सिंधु क्षेत्र में या तिब्बत में, हिमाचल में उनका आगमन कुछ समय बाद हुआ, लेकिन आर्यों की एक शाखा खश यहां पहले ही आ चुकी थी। इससे यह प्रतीत होता है कि आर्य सप्त सिंधु की अपेक्षा हिमाचल में पहले ही प्रवेश कर चुके थे…

आर्य: आर्यों के मूल स्थान के बारे में इतिहासकारों की अलग-अलग राय है। कुछ इतिहासकार आर्यों का देश मध्य पूर्वी एशिया को मानते हैं, जबकि कुछ इतिहासकार आर्यों का जन्म  भारत को ही मानते हैं। आर्यों का जन्म चाहे मध्य-पूर्वी एशिया में हुआ हो, चाहे भारतवर्ष के सप्त सिंधु क्षेत्र में या तिब्बत में, हिमाचल में उनका आगमन कुछ समय बाद हुआ, लेकिन आर्यों की एक शाखा खश यहां पहले ही आ चुकी थी। इससे यह प्रतीत होता है कि आर्य सप्त सिंधु की अपेक्षा हिमाचल में पहले ही प्रवेश कर चुके थे, परंतु इतिहासकार वैदिक आर्यों को ही आर्यों के रूप में मान्यता देते हैं।

वैदिक साहित्य में हिमाचल के संदर्भ में अधिक सूचनाएं नहीं मिलती हैं। यह साहित्य यहां की राजनीतिक दशा के विषय में प्रायः मौन ही है। हिमाचल प्रदेश में आर्यों का प्रवेश सशस्त्र संघर्ष और शांतिपूर्ण विकल्प दोनों का परिणाम है। शुरू-शुरू में शस्त्रों का टकराव रहा। शंबर-सुदास-दिवोदास संघर्ष इसका उदाहरण है। आधुनिक कांगड़ा (त्रिगर्त) आर्यों में स्थानीय नेताओं से युद्ध करके विजित किया और अपने रहने के लिए स्थान बनाया। गिरी, सतलुज और रावी उपत्यका पर आर्यों के प्रसार का काम ऋषि-मुनियों ने किया।  धीरे-धीरे स्थानीय लोग आर्य संस्कृति में समाते रहे। आर्य प्रसार के लिए ऋषियों में परशुराम का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है। परशुराम से पूर्व किसी ने आर्य संस्कृति के प्रसार का अभियान चलाया होगा ऐसा प्रतीत नहीं होता है।कांगड़ा को छोड़कर आर्यों ने शंबर-सुदास-दिवोदास युद्ध के उपरांत, बहिर्शिवालिक को अपने अधिकार में लेकर राज्य स्थापित किए। कांगड़ा को शायद आर्यों ने अपने आधिपत्य में रखा और शासक स्थानीय व्यक्ति को ही रहने दिया। कांगड़ा में आर्य संस्कृति के प्रसार का कार्य ऋषियों और ब्राह्मणों ने किया। आर्य-प्रसार के सर्वप्रमुख नायक परशुराम ने हिमाचल के पूर्वार्ध में आर्य प्रवेश का सफल नेतृत्व किया। इन्होंने ब्राह्मणों की अनेक टुकडि़यों को सतलुज और गिरी घाटियां में बसाकर उपनिवेश स्थापित किए। इन उपनिवेशों का मुख्य कार्य अपने चारों ओर आर्य सभ्यता तथा संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार का केंद्र बनाना था। रेणुका, काव, ममेल, निरथ, दत्तनगर और निरमंड में आज भी ये उपनिवेश विद्यमान हैं, जो हिंदुत्व के शास्त्रीय स्वरूप का गढ़ मानी जाती हैं। सिरमौर में आर्य संस्कृति के प्रसार का केंद्र बिंदु रेणुका था। परशुराम के पिता जमदग्नि का आश्रम रेणुका में ही था। जमदग्नि ऋषि के अतिरिक्त अगस्त्य और गौतम ऋषियों  ने भी रेणुका के आसपास आश्रम बनाकर आर्य संस्कृति का प्रसार किया। उपरोक्त बातों से सिद्ध होता है कि आर्यों ने बड़ी संख्या में इस पहाड़ी प्रदेश में प्रवेश ही नहीं किया ।


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