गुरुमंत्र : समय के साथ चलने वाले ही बढ़ते हैं आगे

By: Jul 4th, 2018 12:07 am

आज जब हम एक नए भारत का निर्माण करने में जुटे हैं, तब युवाओं के साथ-साथ ढलती पीढ़ी की भी ऊर्जावान सक्रियता अपेक्षित है। मशहूर ग्रीक फिलॉस्फर हेरोडोट्स का कहना है कि प्रतिकूलता हमारी मजबूतियों को सामने लाती है। जब आप अपनी सबसे बड़ी चुनौती के सामने सकारात्मक होते हैं और संरचनात्मक तरीके से रिस्पांस देते हैं, तो एक खास किस्म की दृढ़ता, मजबूती, साहस और चरित्र जो आप में ही निहित होता है। भले ही आपको उसका एहसास नहीं हो, वह आपको निखारने लगता है।

  हम चलते हैं, गिरते हैं, उठते हैं। जिंदगी आगे बढ़ती है और जिंदगी के कैनवास की रेखाएं अलग-अलग आकार लेने लगती हैं। बस एक फर्क होता है कि कुछ लोग जिंदगी में आई मुश्किलों से टूट जाते हैं, उनसे हार जाते हैं और कुछ इसे चुनौती मानते हुए दिक्कतों की आंखों में आखें डालते हैं, मुस्कराते हैं तथा मैदान में और मजबूती से डट जाते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी दृढ़ इच्छाशक्ति के जरिए वे जीतते हैं, उदाहरण बनते हैं, हम सभी के लिए। आज ऐसे ही लोगों की जरूरत है। हमारे ही इर्द-गिर्द न जाने कितने ही ऐसे लोग होंगे, जिन पर आपने मुसीबतों का पहाड़ टूटते देखा होगा, मदद के दरवाजे बंद होते देखे होंगे, लेकिन क्या मजाल उनके जीवन में कोई खरोंच पड़ जाए। दरअसल भारत को ऐसे ही लोगों ने गढ़ा है, ऐसे ही लोग जिंदगी को ज्यादा मायनेदार बना सकते हैं।   यह भी बिलकुल सच है कि वक्त के साथ न बदलने वाले, कहीं पीछे छूट जाते हैं। सौभाग्य न केवल वीरों का साथ देता है, बल्कि उनका भी साथ देता है जो किसी भी नए बदलाव के लिए तैयार होते हैं। हम मनचाहे स्थान पर पहुंचने के लिए जो कीमत अदा करते हैं, हमारा जीवन उसी के अनुसार बनता है। वे व्यक्ति अथवा वृक्ष ही जीवित रह पाते हैं, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्वयं को ढालने की क्षमता रखते हैं। बेहतरी के लिए बदलाव चाहते हैं, तो आपको वर्तमान से असंतुष्ट होना ही होगा। जीवन में बदलाव का एक ही तरीका है आप लगातार इसे नया रूप देते रहें। कुछ भी हमेशा एक सा नहीं रहता, जिस तरह दो व्यक्ति एक ही चीज को एक तरह से नहीं परखते। यहां तक कि विविध परिस्थितियों में एक ही व्यक्ति की राय भी बदल जाती है। हमें न केवल समय के साथ बदलना पड़ता है, बल्कि नए आविष्कार भी करने होते हैं। जब हालात बिगड़ जाएं, तो उन्हें जुगत से संवारना पड़ता है। हम जो भी कर रहे हों या हमें करना पड़े, उसी में प्रसन्नता की तलाश ही एक अच्छी पहल है। हमें अप्रसन्न नहीं रहना चाहिए, क्योंकि हालात बदलते रहते हैं। रोने, पछताने या सिर धुनने से दुख, मायूसी व निराशा के सिवा कुछ हाथ नहीं लगता। आपकी प्रत्येक गतिविधि का लक्ष्य नया निर्माण ही होना चाहिए। यह कोई ऐसी चीज नहीं जिसे आप दुनिया या दूसरे लोगों से मांग सकें, बल्कि आपको इसे पाने के लिए मेहनत करनी होगी। यह अपने साथ बहुत जिम्मेदारियां लेकर आती है उन उत्तरदायित्वों के निर्वाह और एहसास को समाज का कोई मापदंड या कोई करीबी भी आपके लिए नहीं गढ़ सकता। उन सिद्धांतों को गढ़ने के लिए अपने भीतर झांकने की जरूरत होती है। फ्रॉम सेल्फ  टू ग्रेटर सेल्फ खुद से खुद की यात्रा अकसर सृजनात्मक कार्य करने वालों के जिम्मे ही आती है। जो न जाने कितनी अनकही- अनदेखी बातों, भावों को हमारे सामने ले आते हैं। जो हो गया, उसे हम स्वीकार नहीं कर पाते और जो नहीं मिला, उसे छोड़ नहीं पाते। अधूरी ख्वाहिशों का दुख हमें उस सुख से भी दूर कर देता है, जो हमारा हो सकता था। शारीरिक परेशानियों से हार नहीं मानने वाली हेलन केलर ने कहा है, खुशी का एक दरवाजा बंद होता है, तो दूसरा खुल जाता है। हम बंद दरवाजे को ही देखते रह जाते हैं। उसे नहीं देख पाते, जिसे हमारे लिए खोला गया था। हमें हेलन केलर की भांति ढलती उम्र को भी रचनात्मक एवं सृजनात्मक बनाना चाहिए।


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