देश को गलत दिशा में ले जा रहे मोदी

By: Jul 2nd, 2018 12:10 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांधी जी का सम्मान करते हैं तथा ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा देते हैं। परंतु उनकी पार्टी का लक्ष्य इसके विपरीत है। मोदी उस वक्त कई लोगों को निराश करते हैं जब वह आरएसएस हाई कमान से विचार-विमर्श करने के लिए नागपुर जाते हैं। विशेषकर मुस्लिम समाज नाराज है क्योंकि उनकी इच्छा एक ऐसा समाज देखने की है जो धर्म के आधार पर बंटा हो। यह प्रवृत्ति बाबरी मस्जिद ढहने के बाद देखी जा रही है। यह भी सत्य है कि मोदी ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी को पार्टी के मामलों से एक दूरी पर रखा हुआ है…

मुझे इस बात में सम्मान की अनुभूति हुई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरी आलोचना को सकारात्मक ढंग से लेते हुए उस पर ध्यान दिया है। वास्तव में उन्होंने मेरी प्रशंसा की और कहा, ‘मैं वयोवृद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर जी का आदर करता हूं, आपातकाल के दौरान वह आजादी के लिए लड़े, वह हमारे कट्टर आलोचक हो सकते हैं, किंतु मैं इसके लिए उनका अभिवादन करता हूं।’ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी की आलोचना की जब बात आती है तो प्रधानमंत्री और मैं एक पक्ष में खड़े नजर आते हैं।  जहां हम अलग होते हैं, वह है समाज का आकार जो हम चाहते हैं। वह उस भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हैं जो आरएसएस की राजनीतिक शाखा है और जो देश में हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना चाहती है। मैं देश में बहुलतावादी समाज की स्थापना चाहता हूं। उनकी पार्टी लोगों को बांटती है तथा मैं उसमें विश्वास करता हूं जो महात्मा गांधी ने कहा था कि हम एक बहु-सांस्कृतिक राष्ट्र हैं जहां सभी धर्मों के लोग इकट्ठे रह सकते हैं, बिना किसी भय के। मुझे याद है जब गांधी जी कोई बैठक किया करते थे, तो वे बैठक से पहले कुरान के साथ-साथ गीता व बाइबिल का पाठन भी करवाते थे और अगर कोई इसका विरोध करता था तो वह बैठक स्थगित कर देते थे। महात्मा गांधी का बहुलतावाद का दर्शन राष्ट्र का लोकाचार था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांधी जी का सम्मान करते हैं तथा ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा देते हैं। परंतु उनकी पार्टी का लक्ष्य इसके विपरीत है। मोदी उस वक्त कई लोगों को निराश करते हैं जब वह आरएसएस हाई कमान से विचार-विमर्श करने के लिए नागपुर जाते हैं। विशेषकर मुस्लिम समाज नाराज है क्योंकि उनकी इच्छा एक ऐसा समाज देखने की है जो धर्म के आधार पर बंटा हो। यह प्रवृत्ति बाबरी मस्जिद ढहने के बाद देखी जा रही है। यह भी सत्य है कि मोदी ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी को पार्टी के मामलों से एक दूरी पर रखा हुआ है। मोदी की शासन की शैली भी इन नेताओं से भिन्न है। वह राष्ट्र को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं, यह स्पष्ट है। पूरे देश में एक खास तरह का हिंदुत्व फैल गया है। प्रधानमंत्री को अपने आप से पूछना चाहिए कि क्या यह परिदृश्य लोगों के लिए ठीक है? बहु-सांस्कृतिक समाज को बहुलतावादी बनाए रखना है क्योंकि यही वह है जो भारत की योजना में अनुकूल बैठता है। शैक्षणिक संस्थानों व सरकार के अन्य अदारों में जब महत्त्वपूर्ण पद आरएसएस के विश्वस्त लोगों को दिए जाते हैं, तो उदारवादियों, मुसलमानों व छोर पर रहने वाले अन्य लोगों का विश्वास टूटता है। मोदी को इन लोगों को विश्वास दिलाना चाहिए ताकि यह लगे कि उनके योगदान को भी समान महत्त्व दिया जा रहा है।

मुझे यह लगता है कि अल्पसंख्यक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उनकी आबादी राष्ट्र की कुल आबादी की एक-चौथाई है। स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में मुस्लिम लीग ने समुदाय के दिमाग में इस तरह जहर भरा कि ऐसी स्थिति हो गई कि रेलवे स्टेशनों पर पानी पीने तक के लिए दो अलग-अलग घड़े रखे गए, एक हिंदुओं के लिए और दूसरा मुसलमानों के लिए। हिंदू इसलिए प्रसन्न थे कि खान अब्दुल गफ्फार खान के प्रभाव वाला उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत उनके साथ था।    परंतु अन्यथा उन्होंने मुसलमानों को ज्यादा छूट नहीं दी। कांग्रेस, जिसके पास मौलाना अबुल कलाम जैसे उच्च कोटि के नेता थे, ने अपना प्रारब्ध हिंदुओं के हवाले छोड़ दिया। इसके बावजूद मुस्लिम लीग धर्म के आधार पर राष्ट्र के विभाजन के अपने मार्ग से पीछे नहीं हटी। दुर्भाग्य से इसके कारण वे छात्र प्रभावित हुए जो अलग-अलग रसोइयों से खाना खाते थे और अब उन्होंने अपना खुद का सर्कल बनाने को प्राथमिकता दी। मुझे अभी भी याद है कि जब मैं लाहौर में विधि कालेज में अंतिम वर्ष का छात्र था तथा वहां रह रहा था तो कायदे आजम मुहम्मद अली जिन्ना ने छात्रों को संबोधित किया था। यह सत्य है कि उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू व मुसलमान दो अलग राष्ट्र हैं, परंतु साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इन्हें साथ रहना चाहिए तथा देश का विकास करना चाहिए। उस दौरान हुए सवाल-जवाब सत्र में मैंने कुछ प्रश्न उठाए थे जिसके जवाब में उन्होंने विश्वास दिलाया था कि भारत और पाकिस्तान अच्छे दोस्त होंगे।

आज स्थिति यह है कि दोनों देशों के बीच बहुत कम संपर्क रह गया है। अगर किसी पाकिस्तानी ने भारत आना हो अथवा किसी भारतीय ने पाकिस्तान जाना हो तो दोनों के लिए वीजा प्राप्त करना एक दुष्कर कार्य है। मेरा सबसे ज्यादा डर सही साबित हुआ है। दोनों ओर के कई लोग यह सोचते हैं कि कश्मीर एक अवरोध है। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक बार कहा था कि कश्मीर केवल भारत-विरोधी भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। अगर यह मामला न होता तो पाकिस्तान ने भारत से घृणा के लिए कोई और मामला खोद लिया होता। अब मैं वापस वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आता हूं। जब उन्होंने प्रधानमंत्री पद संभाला ही था, तो उन्होंने अपने स्तर पर पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए काफी कोशिश की थी। उन्होंने यहां तक किया कि रूस व अफगानिस्तान से वापस भारत आते समय वह लाहौर चले गए और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को शुभ कामनाएं दीं। पिछले एक दशक में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पाकिस्तान की पहली यात्रा थी। दोनों नेताओं के बीच हुई वार्ता में कश्मीर मसले पर भी चर्चा हुई थी। अपने शासन के अंतिम साल में ऐसा नहीं लगता है कि नरेंद्र मोदी पाकिस्तान से वार्ता की पहल करेंगे। इस चरण में कोई वार्ता लाभकारी हो भी सकती है और नहीं भी। प्रधानमंत्री का अब सारा फोकस दक्षिणी राज्यों में अपनी चुनावी संभावनाएं बढ़ाने में लगा हुआ है क्योंकि वह महसूस करते हैं कि उत्तरी राज्यों में उनकी पार्टी की स्थिति काफी ठीक है। खतरे वाली बात यह है कि मोदी ने सभी शक्तियां अपने हाथों में केंद्रित कर ली हैं तथा एक व्यक्ति का शासन पूरे देश में चल रहा है।

जब लोगों ने यह महसूस किया था कि इंदिरा गांधी ज्यादा से ज्यादा शक्तियां अपने हाथों में केंद्रित कर रही हैं, तो उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा था। उस समय दुर्भाग्य यह था कि उनके मुकाबले में कोई बड़ा नेता मौजूद नहीं था जो उन्हें चुनौती पेश कर सकता। इंदिरा गांधी ने भी किसी अन्य को उभरने नहीं दिया। आज भाजपा में भी लगभग यही स्थिति बनी हुई है। मोदी का सामना करने के लिए कोई नेता तैयार नहीं है। यह उनकी शक्ति भी है तथा उनकी कमजोरी भी है।  चुनाव से पहले प्रधानमंत्री खामियों को दूर कर पाएंगे अथवा नहीं, यह अनुमान का ही विषय है। वह आरएसएस व उसके कैडर पर अपनी सफलता के लिए निर्भर रहेंगे। मोदी चुनाव जीतने के लिए कई रणनीतियां बना सकते हैं तथा यह स्पष्ट है कि पार्टी में उनकी पैठ बनी रहेगी। ऐसा भी लग रहा है कि विपक्षी दल मोदी के खिलाफ एकजुट होकर कोई साझा मंच बना लें। इस मोर्चे का सबसे बड़ा काम मोदी को फिर से सत्ता में आने से रोकने का होगा। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने भी यही बात कही है। वर्तमान हालात में मोदी को अपनी पार्टी की सख्त जरूरत रहेगी, परंतु यह कैसे संभव हो सकता है जबकि मोदी ही भाजपा बन गए हैं।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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