पंथनिरपेक्षता के लिए बढ़ते खतरे

By: Jul 23rd, 2018 12:07 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में पंथनिरपेक्षता को गंभीरता के साथ नहीं लिया जा रहा है। देश में फिर से विभाजन की आवाजें भी सुनाई दे रही हैं। संसद को स्वयं पहल करते हुए चेतावनी देनी चाहिए कि किसी को भी अलगाववाद की छूट नहीं दी जाएगी क्योंकि हमारे देश में एक व्यक्ति को एक वोट का अधिकार दिया गया है, चाहे यहां भले ही हिंदुओं की जनसंख्या 80 फीसदी है। औवेसी जो कुछ कर रहे है, शायद वह आगामी चुनाव में मुस्लिम वोटरों के वोट पाने के लिए कर रहे हों। लेकिन वह घृणा के बीज बो रहे हैं, जिन्हें तुरंत फैलने से रोकना होगा…

मैं याद करता हूं कि आजादी के बाद राजनेता तथा कूटनीतिज्ञ सैयद शहाबुद्दीन ने मुस्लिम दृष्टिकोण को स्पष्ट किया। उन्होंने अलग होने की मांग नहीं की, किंतु सुझाव दिया कि देश के भीतर मुसलमानों के लिए स्वशासन होना चाहिए। किसी ने भी उन्हें गंभीरता से नहीं लिया, यहां तक कि मुसलमानों ने भी नहीं क्योंकि विभाजन ने दोनों समुदायों को दयनीय स्थिति में ला खड़ा किया था। अब असदुद्दीन औवेसी, जो आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष हैं, ने मांग की है कि सशस्त्र बलों में मुसलमानों के लिए आरक्षण होना चाहिए। औवेसी जब यह कहते हैं कि सेना में मुसलमानों की संख्या कम हुई है, तो वह ठीक ही कह रहे होते हैं। किंतु यह अपरिहार्य इसलिए था क्योंकि विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था तथा मुस्लिम सशस्त्र सेनाएं पाकिस्तान को चली गईं। सोच दोषपूर्ण है। मुझे याद है जब संविधान सभा में आरक्षण के मसले पर बातचीत हो रही थी, तो तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने मुसलमानों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण की प्रस्तावना की थी। इस पर संविधान सभा में मुस्लिम नेताओं ने यह कह कर विरोध किया कि इसके कारण ही तो पाकिस्तान का निर्माण हुआ है। उन्होंने आरक्षण लेने से इनकार कर दिया। औवेसी की शिकायत यह है कि प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय कार्यक्रम तथा केंद्र सरकार की नौकरियों में अल्पसंख्यकों के लिए शेयर बढ़ाने की घोषणा के बावजूद इस दिशा में कुछ नहीं किया गया है। औवेसी ने हाल में एक जनसभा में यह बातें रखीं और उनसे किसी ने ठीक ही सवाल किया कि वह सशस्त्र बलों को धर्म से जोड़कर देख रहे हैं।

इसके बावजूद औवेसी ने अपने वक्तव्य का बचाव किया और कहा कि मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं जो पूरी तरह अज्ञानी, हठी हैं और जो पढ़ते नहीं हैं, कि क्या यह मसला प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय कार्यक्रम से जुड़ा नहीं नहीं है? इस कार्यक्रम का प्वाइंट नंबर 10 मुस्लिम समुदाय के लिए राज्य व केंद्रीय सेवाओं में भर्ती के बारे में कहता है। औवेसी ने कहा कि नियमों के मुताबिक अगर केवल 10 लोगों की भी भर्ती होती है तो चयन समिति में दलित, अनुसूचित जनजाति व अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों का होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह बात कार्मिक विभाग के मेमोरेंडम में स्पष्ट रूप से कही गई है। औवेसी ने यह बात भी कही कि केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी यह बात गलत कर रहे हैं कि सरकारी नौकरियों में अल्पसंख्यकों का प्रतिशत बढ़ा है। मंत्री के इस दावे का उन्होंने खंडन किया तथा कहा कि सीआईएसएफ में मुस्लिम 3.7 फीसदी, सीआरपीएफ में 5.5 फीसदी तथा रेपिड एक्शन फोर्स में मात्र 6.9 फीसदी हैं। उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार को केंद्रीय सरकार की नौकरियों में भर्ती का डाटा जारी करने की चुनौती भी दी। औवेसी, जो कि हैदराबाद से सांसद हैं, ने सरकार से यह भी कहा कि वह बैंक, रेलवे तथा अन्य सार्वजनिक उपक्रमों में भर्ती का डाटा जारी करे तथा उसे बताना चाहिए कि कितने अल्पसंख्यक भर्ती किए गए हैं। औवेसी ने कहा, ‘भाजपा मुसलमानों से न्याय नहीं कर रही है। मेरे पास सरकार से सवाल पूछने का अधिकार है।’

कांग्रेस ही एक पार्टी है जो मुस्लिम नजरिए का समर्थन कर रही है।  हाल में जब राहुल गांधी ने आजमगढ़ में यह बात कही कि तीन तलाक की परिपाटी जारी रहनी चाहिए तो नरेंद्र मोदी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है। मोदी ने कहा, ‘ राहुल गांधी कह रहे हैं कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है। उनके ऐसा कहने से मुझे कोई हैरानी नहीं हुई है। अपने कार्यकाल में मनमोहन सिंह ने भी कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है।’ वर्ष 2006 में राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘हमें इस बात के भरसक प्रयास करने होंगे कि जो विकास हो रहा है, उसका प्रतिफल अल्पसंख्यकों तक जरूर पहुंचे। देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है।’ उधर मोदी ने यह भी कहा कि वह इस बात से हैरान हैं कि कांग्रेस केवल मुस्लिम पुरुषों के कल्याण व विकास में रुचि रखती है, मुस्लिम महिलाओं के कल्याण के लिए उनके पास कोई एजेंडा नहीं है। मोदी ने कहा, ‘मैं राहुल गांधी से पूछना चाहता हूं कि क्या कांग्रेस केवल मुस्लिम पुरुषों का ही कल्याण चाहती है। वह तीन तलाक और निकाह हलाला के मसले पर मुस्लिम महिलाओं का समर्थन नहीं कर रही है।’ मामला चाहे कुछ भी हो, मुसलमान सरकार के मामले में अपने को जुड़ा महसूस नहीं करते हैं। औवेसी ने ठीक ही कहा कि अगर भारत के विकास में मुसलमानों की भागीदारी तय कर दी जाए तो इस मिसाल का विश्व के अन्य देश भी अनुकरण करेंगे। मैं पिछले कुछ समय से देख रहा हूं कि मुसलमान नेता सह-अस्तित्व की बात कर रहे हैं क्योंकि हिंदू व मुसलमान दो अलग समुदाय हैं। मेरा मानना है कि उन्हें यह बात समझनी होगी कि हमारा केवल एक राष्ट्र भारत है तथा धर्म उसके बाद आता है। कुछ दिन पहले ही मैंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में एक संबोधन दिया था जिसके दौरान मैं यह देखकर हैरान रह गया कि वहां पर छात्र उम्मत अर्थात अपने समुदाय के परिप्रेक्ष्य में बात कर रहे थे। तत्कालीन कुलपति ने दावा किया कि छात्र इस व्याख्या से कोई वास्ता नहीं रखते हैं कि एक सच्चा भारतीय व एक सच्चा मुसलमान होने में कोई विरोध नहीं है। मेरा मानना है कि हम सभी भारतीय पहले हैं, हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई उसके बाद हैं। यहां तक कि राष्ट्र का स्वभाव तय करने के लिए हमारे संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्षता शब्द का प्रयोग किया गया है। यह इंदिरा गांधी थीं जिन्होंने प्रस्तावना में इस शब्द को आपातकाल के दौरान शामिल किया था। उनके बाद आई जनता पार्टी सरकार ने इस शब्द को छोड़कर संविधान में शामिल की गई अन्य बातों को हटा दिया था।

संविधान की प्रस्तावना में उसने भी कोई छेड़छाड़ नहीं की थी। यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में पंथनिरपेक्षता को गंभीरता के साथ नहीं लिया जा रहा है। देश में फिर से विभाजन की आवाजें भी सुनाई दे रही हैं। संसद को स्वयं पहल करते हुए चेतावनी देनी चाहिए कि किसी को भी अलगाववाद की छूट नहीं दी जाएगी क्योंकि हमारे देश में एक व्यक्ति को एक वोट का अधिकार दिया गया है, चाहे यहां भले ही हिंदुओं की जनसंख्या 80 फीसदी है। औवेसी जो कुछ कर रहे है, शायद वह आगामी चुनाव में मुस्लिम वोटरों के वोट पाने के लिए कर रहे हों। लेकिन वह घृणा के बीज बो रहे हैं, जिन्हें तुरंत फैलने से रोकना होगा। उधर वर्तमान मोदी सरकार में भी हिंदुत्व को प्रोत्साहन दिया जा रहा है तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ काफी सक्रिय लग रहा है। जिन लोगों को पंथनिरपेक्षता का पक्ष लेना चाहिए, वे चुपचाप लग रहे हैं। औवेसी की आवाज काफी ऊंची सुनाई दे रही है, जबकि पंथनिरपेक्षता पर रहस्यमयी चुप्पी दिख रही है।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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