पर्वतीय शहरी प्रबंधन की शर्तें

By: Jul 19th, 2018 12:05 am

रविंद्र सिंह भड़वाल

लेखक, नूरपुर से हैं

शहरों में फैलने वाली अव्यवस्था का दूसरा सबसे बड़ा कारण यहां होने वाला अनधिकृत निर्माण है। तमाम नियमों को ताक पर रखकर किया जाने वाला यह अवैध निर्माण न केवल सरकारी संपदा को हड़प रहा है, बल्कि इन कब्जे वाले स्थलों पर अव्यवस्थित ढंग से होने वाले निर्माण से व्यवस्थित विकास की राह भी अवरुद्ध हो रही है…

शहरी प्रबंधन हर समाज में एक अपरिहार्य एवं जटिल पहलू रहा है। इस पेचीदा पहेली को सुलझाए बिना किसी भी समाज की आर्थिक एवं सामाजिक आकांक्षाएं पूरी हो पाना मुनासिब नहीं। शहरी संबोधन में मैदानी भागों की अपेक्षा पर्वतीय क्षेत्रों में शहरों को बसाने की शर्तें हमेशा से ही अलग रही हैं। पहाड़ी राज्य हिमाचल को भी इसको लेकर आने वाले वर्षों में कड़ी परीक्षा से होकर गुजरना पड़ेगा। बेशक हिमाचली शहरों में अब तक का आलम मैदान के बड़े शहरों सरीखा भयावह तो नहीं हुआ है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, सांस्कृतिक राजधानी बनारस से लेकर कानपुर, लुधियाना, फरीदाबाद जैसे बड़े शहरों के वाशिंदे हवा के जरिए फेफड़ों में जहर भर रहे हैं। इन्हीं शहरों में पीने के स्वच्छ पानी की गारंटी भी वाटर प्यूरिफायर्स के मार्फत संभव है। विकास के इस शोर-शराबे से कहीं दूर हिमाचल के शहरों में जनता को अब तक स्वच्छ आबोहवा इसलिए नसीब हो पा रही है, क्योंकि हिमाचल ने पर्यावरणीय संरक्षण और शहरी विकास के बीच के फर्क को अब तक मिटने नहीं दिया है। हालांकि पिछले कुछ समय में हालात तेजी से बदले हैं और यहां भी शहरी प्रबंधन की चुनौतियां स्पष्ट दिखने लगी हैं, जैसे कुछ ही समय पहले पैदा हुआ राजधानी का जलसंकट हो या शहरों की ओर तेजी से बढ़ता पलायन, प्रमुख शहरों के बीच पनपता अतिक्रमण हो या शहरी तंगहाली में उपजी ट्रैफिक जाम की समस्याएं।

शहरों को बसाने की दिशा में अगर आज हमारे समक्ष कोई सबसे बड़ी चुनौती नजर आती है, तो वह है शहरी विकास का पर्यावरण संरक्षण के साथ किस तरह से संतुलन स्थापित किया जाए। आज शहरीकरण की प्रक्रिया में यदि पर्यावरण के साथ तारतम्यता स्थापित  करने की अनदेखी की गई, तो भविष्य की पीढि़यों को इस गलती की सजा भुगतनी पड़ेगी। निस्संदेह शहर किसी भी अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधियों का केंद्र रहे हैं। अपने आर्थिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हर समाज ने शहरी विकास को पर्याप्त तरजीह दी है। आर्थिक गतिविधियों का केंद्र होने के साथ-साथ किसी भी शहर में बेहतर बुनियादी सुविधाओं का भी विकास होता है। लिहाजा रोजगार या शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर अवसर की तलाश में हमेशा से गांवों से शहरों की ओर पलायन होता रहा है। दूसरी तरफ तेज रफ्तार से बढ़ती आबादी शहरों की चुनौतियों को और बढ़ा रही है। एक व्यावहारिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक शहरों की आबादी बढ़कर दोगुना तक हो जाएगी। इस पूरे परिप्रेक्ष्य में सीमित संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए भविष्य की बढ़ी जरूरतों को कैसे पूरा किया जाता है, इसको लेकर शहरी प्रबंधन में नीति-नियंताओं की स्मार्टनेस परखी जाएगी। शहरों में फैलने वाली अव्यवस्था को लेकर दूसरा सबसे बड़ा कारण यहां होने वाला अनधिकृत निर्माण है। तमाम नियमों को ताक पर रखकर किया जाने वाला यह अवैध निर्माण न केवल सरकारी संपदा को हड़प रहा है, बल्कि इन कब्जे वाले स्थलों पर अव्यवस्थित ढंग से होने वाले निर्माण से व्यवस्थित विकास की राह भी तो अवरुद्ध हो रही है।

हालांकि प्रदेश के प्रमुख शहरों में सिर उठाते इस अवैध एवं अनैतिक निर्माण के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय सख्त रुख अख्तियार करता रहा है। शासकीय विफलता की स्थिति में खुद न्यायालय ने संज्ञान लिया और शिमला, धर्मशाला, कुल्लू, मनाली, मंडी, मकलोडगंज और मंडी जैसे प्रदेश के प्रमुख पर्यटक स्थलों पर गैर कानूनी ढंग से खड़े हुए प्रतिष्ठानों को गिराने या उनमें बिजली और जलापूर्ति बंद करने सरीखी सख्त कार्रवाई की गई। हालांकि इस तरह की सुधारात्मक कार्रवाई को लेकर कब तक न्यायालय की ओर देखा जाता रहेगा। प्रदेश सरकार का यह दायित्व बनता है कि शहरों में इस तरह के अनधिकृत निर्माण को रोकने के लिए अपने विभिन्न विभागों के जरिए ईमानदारी से प्रयास करे। शहरीकरण की इन तमाम चुनौतियों को समझते हुए, बेहतर भविष्य की खातिर हमारे नीति-नियंताओं को आज से ही शहरी प्रबंधन की दिशा में गंभीर होकर प्रयास करने होंगे। इसको लेकर पहला इम्तिहान यही देना होगा कि सीमित संसाधनों को ध्यान में रखकर ये लंबे समय के लिए कितनी सटीक रणनीति बना पाते हैं। हमारे शहरी योजनाकार यदि प्रदेश में जरूरत मुताबिक शहरी क्षमता का विस्तार या समावेशी विकास के नए रास्ते नहीं ढूंढ पाए, तो हाल ही में पैदा हुए शिमला संकट की तरह व्यवस्थाएं कदम-कदम पर दम तोड़ती रहेंगी। हालांकि प्रदेश की राजधानी में उपजा संकट तंत्र की विफलता का एक नमूना भर था।

अगर शासन-प्रशासन शहरीकरण की जरूरतों के साथ कदमताल नहीं कर पाए, तो भविष्य में इससे भी भयावह अनुभवों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। शहरों के दक्ष नियोजन की जरूरत को समझते हुए सरकार ने कुछ ही समय पहले प्रदेश के 54 बड़े शहरों और कस्बों को टीसीपी के दायरे में लाकर शहरी प्रबंधन का एक सराहनीय प्रयास किया है। वहीं केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी योजना में शामिल होकर प्रदेश के दो बडे़ शहर शिमला और धर्मशाला अपने बेहतर भविष्य की गवाही दे रहे हैं। हालांकि शासन-प्रशासन के इन प्रयासों के दम पर किसी बड़े परिणाम की अपेक्षा नहीं की जा सकती, जब तक आम जनमानस इस कार्य में अपनी भूमिका का निर्धारण नहीं करता। कोई भी शहर अपने वाशिंदों के कारण शहर कहलाता है। अतः शहरों की साफ-सफाई और अन्य गतिविधियों के सुचारू क्रियान्वयन में उस शहर के वाशिंदों द्वारा नियमों की पालना को अपनी आदतों में अभी से शुमार कर लेना चाहिए।


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