पाकिस्तान में सेना की बढ़ती भूमिका

By: Jul 30th, 2018 12:10 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

वह एक ऐसी कमजोर विकेट पर खड़े हैं कि अगर वह इस तरह का आश्वासन दे भी देते हैं तो उन्हें तब तक गंभीरता से नहीं लिया जाएगा जब तक सेना प्रमुख उनके रुख का स्पष्ट समर्थन नहीं करते हैं। वर्तमान में इस तरह के कोई संकेत उभरते नहीं दिख रहे हैं। यह वह समय है जब इमरान को सत्ता में अपनी जड़ें मजबूत करनी होंगी। हालांकि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वह क्षेत्र में शांति चाहने वालों में से हैं। भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाकर इमरान ने अपने आप को राजनीतिक रूप से सही साबित करने की कोशिश की है तथा साथ ही उन्होंने कूटनीतिक कौशल का परिचय भी दिया है…

पाकिस्तान में सेना ने एक ऐसा रास्ता खोज निकाला है जिसके जरिए एक विशिष्ट व्यक्ति को बिना किसी वैध कारण के प्रधानमंत्री पद पर चुनना संभव हो गया है। इमरान खान इसी घटनाक्रम का परिणाम है। चुनाव से काफी पहले उनका नाम चारों ओर उछल रहा था। अब कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि सेना की जो योजना थी, उस योजना में इमरान के अलावा अन्य कोई उपयुक्त नहीं लग रहा था। नवाज शरीफ को पूर्व में चुना गया था, किंतु अब वह सेना की आंखों की किरकरी बने हुए थे। यहां तक कि परवेज मुशर्रफ के सैन्य शासन को भी आदर्श के अनुकूल नहीं माना गया। तब क्यों सेना पर्दे पर सामने आई तथा उसे चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने की जरूरत क्यों पड़ी? ऐसा लगता है कि शायद सेना की सोच यह रही कि उसे एक ऐसे व्यक्ति के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से शासन चलाना चाहिए जो उसके इशारों पर काम करने को तैयार हो। क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान लंबे समय से राजनीति में हैं, सेना पर वह गर्व करते हैं तथा इसके अलावा उन्होंने कोई ग्रेड वाला काम नहीं किया।

जनरल जिया उल हक तथा जनरल मुशर्रफ निश्चित रूप से सेना के आदमी रहे। उन्होंने मार्शल लॉ की तरह शासन किया तथा जनता से वे विमुख रहे। सभी तरह से सेना दृष्टिगोचर होती थी तथा जब नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे तो सेना प्रमुख कैबिनेट की बैठकों में भाग लेते थे तथा उसे अपनी जरूरतों के मुताबिक निर्देशित करते थे। अब जो परीक्षण किया जा रहा है, वह यह है कि प्रधानमंत्री पद पर एक ऐसा सिविलियन होना चाहिए जो सोच व एक्शन में सेना का आदमी हो। स्पष्ट है कि इसके जरिए सेना का शासन पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रहेगा। लोकतांत्रिक देशों ने खुलेआम कहा है कि पाकिस्तान सेना के शासनाधीन था। क्या इमरान खान के परिचायक गुण पश्चिम के लिए स्वीकार्य होंगे? इमरान खान के शासन के आगामी महीने इस बात को ज्यादा स्पष्ट कर पाएंगे। यह इमरान की इस योग्यता पर निर्भर करेगा कि क्या वह सेना तथा लोगों को एक साथ संतुष्ट कर पाएंगे। जहां तक भारत का संबंध है, इसकी भूमिका पर्यवेक्षक की रहेगी। जिस तरह का सर्जिकल आपरेशन उसने पहले किया, उस तरह के और आपरेशन वह कर सकता है। अगर बात इससे आगे बढ़ती है, तो एक नियमित युद्ध छिड़ सकता है। अपनी जीत के बाद जैसे ही इमरान की पार्टी तहरीक-ए-इनसाफ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी, उन्होंने यह बात कही कि वह भारत से दोस्ताना संबंध स्थापित करना चाहेंगे। उन्होंने कहा, ‘शांति बहाली की दिशा में भारत अगर एक कदम उठाता है, तो हम दो कदम उठाने के लिए तैयार हैं।’ इसके बावजूद इमरान ने कहा कि दोनों देशों के संबंधों के बीच कश्मीर मुख्य मसला बना हुआ है। वह इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि कश्मीरी अब अपना इस्लामिक प्रभुत्वसंपन्न गणतंत्र चाहते हैं। अन्य शब्दों में अब कश्मीरी पाकिस्तान की ओर मदद के लिए नहीं देखते हैं। यहां तक कि यासीन मलिक व शब्बीर शाह जैसे लोग भी अप्रासंगिक हो गए हैं। बहुत समय पहले की बात नहीं है जब मैं कश्मीर गया और वहां छात्रों से बातचीत की।

मैं यह सुन कर हैरान रह गया कि अब कश्मीरी पाकिस्तान समर्थक नहीं हैं। उनके लिए दिल्ली व इस्लामाबाद दोनों ऐसी ताकतें हैं जो कश्मीरियों पर अपना शासन थोपने की कोशिशें करती हैं। ऐसी स्थिति में जबकि इमरान यह सोचते हैं कि कश्मीर मसले में केवल भारत व पाकिस्तान दो ही पक्ष हैं, वह कश्मीरियों की सोच को किस तरह बदल पाएंगे। पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री के लिए कश्मीरी युवक इसमें कोई पक्ष नहीं हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि इस मसले के हल के लिए बातचीत की मेज पर तीनों पक्षों को आना होगा। उधर भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संकेत दिए हैं कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को प्रोत्साहन देना बंद नहीं करता है, तब तक भारत उससे कोई बात नहीं करेगा। अगर इमरान खान वार्ता को शुरू करने के लिए कुछ सकारात्मक करते भी हैं तो क्या वह भारत को इस तरह का आश्वासन देने में समर्थ होंगे।

वह एक ऐसी कमजोर विकेट पर खड़े हैं कि अगर वह इस तरह का आश्वासन दे भी देते हैं तो उन्हें तब तक गंभीरता से नहीं लिया जाएगा जब तक सेना प्रमुख उनके रुख का स्पष्ट समर्थन नहीं करते हैं। वर्तमान में इस तरह के कोई संकेत उभरते नहीं दिख रहे हैं। यह वह समय है जब इमरान को सत्ता में अपनी जड़ें मजबूत करनी होंगी। हालांकि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वह क्षेत्र में शांति चाहने वालों में से हैं। भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाकर इमरान ने अपने आप को राजनीतिक रूप से सही साबित करने की कोशिश की है तथा साथ ही उन्होंने कूटनीतिक कौशल का परिचय भी दिया है। फिर भी उनकी सफलता तभी मानी जाएगी जब भारत से समीकरण बनाने के लिए सेना उन्हें किस हद तक कार्य करने की स्वतंत्रता देती है। कश्मीर मामले में अब तक सेना ही सब कुछ करती रही है, यह उसका ही विषय रहा है। सेना को इस विषय से हटाना राज्य प्रशासन में बड़ा बदलाव माना जाएगा क्योंकि अभी वह गहन स्तर पर, यहां तक कि ग्राम स्तर पर भी शासन कर रही है। दक्षिण एशिया के एक वयोवृद्ध अन्वेषक ने हाल में कहा था कि विश्व का सबसे खतरनाक देश पाकिस्तान और खतरनाक होने जा रहा है। चुनाव के संभावित परिणामों को लेकर उनकी यह टिप्पणी थी। उनके अनुसार इमरान खान सेना के कट्टर समर्थक हैं तथा वह आईएसआई के संरक्षण में चल रहे इस्लामी आंदोलन से भी गहरे जुड़े हुए हैं। यह भविष्यसूचक बात है। यही कारण है कि अमरीका के राज्य विभाग ने पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन को एक चुनौती के रूप में लिया है तथा उसने इस पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि इमरान अमरीका के कड़े आलोचक रहे हैं जिनका यह मानना है कि वह पाकिस्तान को पायदान से ज्यादा कुछ नहीं समझता है। इस अन्वेषक ने, जो सीआईए से जुड़ा है, यह भी कहा कि इमरान व सेना के बीच गठजोड़ ज्यादा देर तक चलने वाला नहीं है। उनका यह मानना है कि इमरान एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के आदमी हैं, उनके साथ काम करते हुए सेना को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

पंथनिरपेक्ष भारत के हिस्से में यह बात भी आ सकती है कि इमरान खान सरकार कश्मीर में आतंकवादियों को ज्यादा मदद दे। इसका कारण यह हो सकता है कि इमरान सोचते हैं कि कश्मीर, पाकिस्तान का एक हिस्सा है। दूसरे उन्हें सेना के कमांडरों को यह भी जताना है कि वह सेना की योजना को अंजाम तक पहुंचाने में काबिल हैं। भारत को यह स्थिति भी झेलनी पड़ सकती है कि कश्मीर में न युद्ध हो, न ही शांति कायम हो पाए। उस स्थिति में इस्लाम के प्रति इमरान का झुकाव एक नया आयाम ले सकता है। यह एक भ्रांतिपूर्ण स्थिति होगी। इस स्थिति में कोई भी छोटी चूक भयानक परिणामों की सबब बन सकती है। यह जाहिर सी बात है कि इमरान खान इस वक्त सेना के आदमी हैं, वह इस छवि को चाहकर भी दूर नहीं कर सकते हैं। फिर भी भविष्य में उन्हें कुछ ऐसा करना होगा जिससे लगे कि वह लोगों के साथ हैं। जनता का दिल उन्हें जीतना ही होगा।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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