भारत और अमरीका की स्वतंत्रता की भिन्न राहें   

By: Jul 25th, 2018 12:07 am

हम ढुलमुल भारतीयों ने विपरीत दिशा पकड़ी, और केंद्रीकृत सरकार की ब्रिटिश किस्म को अपना लिया। हमने कई अमरीकी सिद्धांतों — संघवाद, राष्ट्रपति पद, न्यायिक समीक्षा, अधिकार-अधिनियम, आदि — को ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में जोड़ने का प्रयास किया। परंतु क्योंकि ऐसा मिश्रण असंगत और मूल में ही विपरीत था, वे सभी सिद्धांत समय के साथ दूषित होते चले गए और उनका स्वरूप पूरी तरह बिगड़ गया। कई लोगों ने, जिनमें स्वयं इंग्लैंड के लोग भी शामिल थे, भारत को ब्रिटिश प्रणाली अपनाने के फैसले के खिलाफ चेताया…

4 जुलाई, अमरीका का स्वतंत्रता दिवस, इस देश द्वारा अपनी आजादी का घोषणापत्र (Declaration of Independence) अपनाने का स्मरण दिलाता है। यह ऐसा दस्तावेज है जिसे लोकतंत्र पर दुनिया भर में सर्वाधिक महान वक्तव्यों में से एक माना जाता है। इसने कई देशों में आजादी के आंदोलनों को प्रेरणा दी है, जिनमें ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के खिलाफ हमारा अपना संघर्ष भी शामिल है। वर्ष 1930 में अपनाया गया महात्मा गांधी का ‘पूर्ण स्वराज संकल्प’ अमरीकी घोषणापत्र के लगभग समान ही लिखा गया था, और यहां तक कि इमसें समान भाषा इस्तेमाल की गई। परंतु हम भारतीय हमारे संबंधित घोषणापत्रों में प्रतिष्ठापित सिद्धांतों के पालन में दृढ़ नहीं रहे। इससे हमारे देश को विभाजित राजनीति ही मिल पाई और अमरीकी-ब्रिटिश-भारतीय सिद्धांतों के अव्यवहार्य मिश्रण वाला एक अयोग्य संविधान।

एक नए भविष्य की घोषणा

‘‘हम इन सत्यों को स्वयंसिद्ध मानते हैं,’’ अमरीका ने घोषणापत्र में कहा,‘‘कि सभी मनुष्य समान पैदा हुए हैं, कि उन्हें निर्माता ने कुछ अविच्छिन अधिकारों से युक्त बनाया है, जिनमें जीवन, स्वतंत्रता और सुख की खोज शामिल हैं।’’

घोषणापत्र ने इंग्लैंड के राजा द्वारा ‘‘दमन और सत्ता हड़पने’’ की गतिविधियों का एक खाका पेश किया, जिसने अमरीका की तेरह कालोनियों को ब्रिटेन राज्य छोड़ने को विवश कर दिया।

इसमें कहा गया कि ‘‘भविष्य की सुरक्षा को नए रखवाले उपलब्ध करवाने,’’ और ‘‘सरकार की पूर्व प्रणालियों को बदलने’’ के लिए वे ब्रिटिश सरकार की ‘‘पूर्ण निरंकुशता’’ निकाल फेंक रहे हैं। और इसने स्पष्ट घोषणा की कि ‘‘कालोनियों व ग्रेट ब्रिटेन सरकार के मध्य सभी संबंध पूर्ण रूप से भंग किए जाते हैं।’’

घोषणापत्र तेरह कालोनियों की स्थानीय सरकारों—महाद्वीपीय महासभा (Continental Congress)—द्वारा एकमत से अंगीकृत कर लिया गया। ब्रिटिश साम्राज्य से अमरीका की शत्रुता एक वर्ष पूर्व आरंभ हुई थी जब किंग जॉर्ज-III ने शिकायतों की एक पूर्ण सूची को नजरअंदाज कर दिया था। कॉन्टिनेंटल कांग्रेस ने इसका उत्तर एक कॉन्टिनेंटल सेना और कॉन्टिनेंटल मुद्रा की स्थापना से दिया। इसका परिणाम इंग्लैंड की एक शाही घोषणा के रूप में सामने आया जिसने समस्त अमरीकी नागरिकों को ‘‘खुला और घोषित विद्रोह’’ में लिप्त करार दे दिया।

भारत में स्वतंत्रता का अलग दृष्टिकोण

भारतीय स्वतंत्रता का घोषणापत्र अमरीका की तरह एक संबंध-विच्छेद नहीं था। यह एक राजनीतिक पार्टी का घोषणापत्र था। गांधी ने ‘पूर्ण स्वराज’ रेजोल्यूशन में कहा, ‘‘हमारी स्वतंत्रता पाने का सबसे प्रभावी जरिया हिंसा नहीं… इसलिए हम स्वयं को ब्रिटिश सरकार के साथ सभी स्वैच्छिक संबंधों से हाथ खींचकर तैयार करेंगे। और कर न चुकाने सहित सविनय अवज्ञा की तैयारी करेंगे।’’

इस घोषणापत्र में ‘‘कांग्रेस द्वारा समय-समय पर जारी किए जाने वाले निर्देशों के पालन’’ का संकल्प लिया गया। गांधी ने हालांकि भारतीय जनता के स्वतंत्रताओं के ‘‘अविच्छिन अधिकार’’ और एक ‘‘दमनकारी’’ सरकार को बदलने या समाप्त करने के अधिकार पर जोर दिया। उन्होंने शिकायतों का एक पुलिंदा भी पेश किया, कि अंग्रेजों ने ‘‘भारत को आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक रूप से तबाह कर दिया।’’ ‘‘इसलिए हम विश्वास करते हैं कि भारत को ब्रिटेन से संबंध तोड़ लेने चाहिए और पूर्ण स्वराज हासिल करना चाहिए।’’

गांधी के पास एक नरम आह्वान करने के सिवा कोई चारा न था। अमरीका के समान भारतीयों का स्थानीय सरकारों और सैन्य स्रोतों पर नियंत्रण नहीं था। उनके अहिंसात्मक दृष्टिकोण को उच्च नैतिक आधार मिला, और यह भारत की स्वतंत्रता पाने में सहायक रहा। अमरीका में, दूसरी ओर, परिणाम था एक खूनी जंग जो एक दशक से भी अधिक समय तक जारी रही।

भारतीयों का अहिंसात्मक दृष्टिकोण देश के लिए और लाभदायक रहता अगर हमने वह शांति का दौर स्वतंत्रता की तैयारी में बिताया होता। इसके बजाय, हमारे विविध समुदाय — प्रमुखतया हिंदू और मुस्लिम —  कई वर्षों तक एक नए राष्ट्र के संविधान पर सहमत नहीं हुए। अंततः स्वतंत्रता प्रदान करने की शर्त के रूप में ब्रिटेन ने देश का बंटवारा कर दिया।

अमरीका के संवैधानिक प्रयोग

अमरीका में स्वतंत्रता घोषणापत्र के दस वर्ष के भीतर ही दो संविधान अपनाए गए। वह भी तब जब वे विश्व के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य से युद्ध लड़ रहे थे। पहला संविधान, दि आर्टिकल्स ऑफ कॉन्फेडेरेशन, एक कमजोर संघीय सरकार के तहत कालोनियों का एक दुर्बल संघ था। परंतु इसकी अयोग्यता देश को दिवालिएपन के कगार पर ले आई और सेनाओं को बेतरतीब कर डाला। इसलिए 1787 में अमरीकी कालोनियों ने एक पूरी तरह भिन्न प्रकार के संविधान का अविष्कार किया।

इस संविधान का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता के घोषणापत्र में निहित एक शपथ को पूरा करना था। यह शपथ थी, देश की शासन प्रणाली को ब्रिटिश संसदीय किस्म से पलटना। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने कई नए संवैधानिक सिद्धांत तैयार किए। इनमें पहला था अधिकार-अधिनियम (Bill of Rights), जिसने सरकारों पर लोगों के मूलभूत अधिकारों में दखल देने पर रोक लगा दी। अमरीका ने संघवाद (Federalism) का अविष्कार किया ताकि स्वायत्त राज्य सरकारों का विकेंद्रीकृत ढांचा उपलब्ध हो सके। इसने एक संपूर्ण स्वतंत्र सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) भी बनाया और इसे न्यायिक समीक्षा की शक्तियां दीं। इसने एक प्रत्यक्ष निर्वाचित मुख्य कार्यकारी—राष्ट्रपति (President)— का पद भी ईजाद किया। अमरीका के संविधान ने इस तरह सरकार की एक ऐसी प्रणाली की स्थापना की जो केंद्र में मजबूत और फिर भी विकेंद्रीकृत, दोनों थी।

भारत में एक विचित्र मिश्रण

हम ढुलमुल भारतीयों ने विपरीत दिशा पकड़ी, और केंद्रीकृत सरकार की ब्रिटिश किस्म को अपना लिया। हमने कई अमरीकी सिद्धांतों — संघवाद, राष्ट्रपति पद, न्यायिक समीक्षा, अधिकार-अधिनियम, आदि — को ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में जोड़ने का प्रयास किया।

परंतु क्योंकि ऐसा मिश्रण असंगत और मूल में ही विपरीत था, वे सभी सिद्धांत समय के साथ दूषित होते चले गए और उनका स्वरूप पूरी तरह बिगड़ गया।

कई लोगों ने, जिनमें स्वयं इंग्लैंड के लोग भी शामिल थे, भारत को ब्रिटिश प्रणाली अपनाने के फैसले के खिलाफ चेताया। वर्ष 1933 में ही एक ब्रिटिश संवैधानिक समिति ने रिपोर्ट दी कि ‘‘भारत में आज संसदीय सरकार के लिए आवश्यक तत्त्वों में से कोई भी मौजूद नहीं।’’ वर्ष 1939 में, मुहम्मद अली जिन्ना ने कहा कि वह ‘‘अटल रूप से… संसदीय प्रणाली के वेश में एक बहुसंख्यक सरकार के खिलाफ’’ हैं। अमरीकी दूत, लुई जॉनसन ने राष्ट्रपति रूजवेल्ट को लिखा कि भारत में ‘‘सरकार की बहुमत वाली किस्म लागू नहीं हो सकती।’’ इसी प्रकार वर्ष 1947 में, अंबेडकर ने भारत की संविधान सभा को लिखा कि ‘‘ब्रिटिश प्रकार की कार्यपालिका भारत के अल्पसंख्यकों के जीवन, स्वतंत्रता और प्रसन्नता के लिए खतरे से भरपूर होगी।’’

यहां तक कि महात्मा गांधी ने कहा, ‘‘अगर भारत इंग्लैंड की नकल करता है, तो मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि वह बर्बाद हो जाएगा।’’

अमरीका और भारत की स्वतंत्रता का इतिहास कितना समान है, यह उल्लेखनीय है। और फिर भी दोनों देशों की राज्य व्यवस्था, राजनीति और उपलब्धियां कितनी अधिक भिन्न हैं। हमें विचार करना होगा क्यों, और बेहतर करने के लिए प्रयास भी करने होंगे।

भानु धमीजा

सीएमडी, ‘दिव्य हिमाचल’ लेखक, चर्चित किताब ‘व्हाई इंडिया नीड्ज दि प्रेजिडेंशियल सिस्टम’ के रचनाकार हैं

अमरीकी स्वतंत्रता दिवस पर 

अंग्रेजी में ‘दि क्विंट’ में प्रकाशित (4 जुलाई, 2018)

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