महात्मा गांधी को भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व

By: Jul 4th, 2018 12:05 am

14 जुलाई, 1942 ई. को कांग्रेस की कार्यकारिणी सभा ने वर्धा में गांधी जी के ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव को पारित किया। सात-आठ अगस्त, 1942 ई. को अखिल भारतीय-कांग्रेस कमेटी की बंबई  बैठक में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को व्यापक स्तर पर चलाने का निर्णय लिया गया और गांधी जी को इस आंदोलन का नेतृत्व सौंपा  गया…

सविनय अवज्ञा आंदोलन: 17 अक्तूबर, 1937 ई. में गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन करने का फैसला किया तथा इसका नाम ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ दिया। शिमला में इस सत्याग्रह में पंडित पद्मदेव, कांग्रेस के प्रधान श्याम लाल खन्ना और महामंत्री सालिग राम शर्मा के नाम अग्रिम थे। उन्होंने गंज में जनसभा की और भाषण दिए। पुलिस ने पद्मदेव को पकड़कर कैथू जेल भेज दिया। बाद में 18 मास की सजा देकर उन्हें लुधियाना और गुजरात की जेलों में बंदी बनाकर रखा गया। नवंबर, 1940 में कांगड़ा क्षेत्र में व्यक्तिगत सत्याग्रह के संचालन के लिए एक समिति बनाई गई। इस समिति में ठाकुर हजारा सिंह, पंडित परस राम तथा ब्रह्मानंद मुख्य थे। कांगड़ा नगर में लाला मंगतराम खन्ना प्रमुख थे। अन्य स्थानों में भी कई लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया और गिरफ्तारियां दीं।

अप्रैल, 1941 ई. तक कांगड़ा में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में असंख्य सत्याग्रही गिरफ्तार हो चुके थे। चार दिसंबर, 1941 को गांधी जी ने व्यक्तिगत आंदोलन को स्थगित कर दिया। परिणामस्वरूप इस आंदोलन में गिरफ्तार नेताओं को रिहा करना आरंभ कर दिया गया।

भारत छोड़ो आंदोलन: 14 जुलाई, 1942 ई. को कांग्रेस की कार्यकारिणी सभा ने वर्धा में गांधी जी के ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव को पारित किया। सात-आठ अगस्त, 1942 ई. को अखिल भारतीय-कांग्रेस कमेटी की बंबई  बैठक में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को व्यापक स्तर पर चलाने का निर्णय लिया गया और गांधी जी को इस आंदोलन का नेतृत्व सौंपा गया। शिमला, कांगड़ा और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ के संबंध में जलसे-जुलूस और आंदोलन आरंभ हुए। इस आंदोलन के दौरान शिमला में भागमल सौहटा, पंडित हरिराम, चौधरी दीवान चंद, सालिगराम शर्मा, नंद लाल वर्मा, तुफैल अहमद, ओम प्रकाश चोपड़ा, संत राम, हरि चंद आदि आंदोलनकारी गिरफ्तारी किए गए और कड़े कारावास की सजा देकर पंजाब की जेलों में बंद कर दिए गए। शिमला में राजकुमारी अमृत कौर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का संचालन करती रहीं तथा गांधी जी के कैद में होने पर उनकी पत्रिका ‘हरिजन’ का संपादन करती रहीं। शिमला की पहाड़ी रियासतों के कुछ लोग भी इसमें सक्रिय रूप में भाग लेते रहे। गांधी जी के सत्याग्रह के समर्थन में कांगड़ा के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी सत्याग्रह में भाग लिया। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के समय कई लोगों ने इसमें अपना योगदान दिया। इस प्रकार के आंदोलनों में मुख्य थे-मंगत राम खन्ना, हेमराज सूद, कामरेड रामचंद्र, परस राम, सरला शर्मा, ब्रह्मानंद और पंडित अमरनाथ। मई, 1944 ई. में महात्मा गांधी को जल से रिहा किया गया। परिणामस्वरूप ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में गिरफ्तार नेताओं की रिहाई हुई। नवंबर, 1944 ई. में शिमला के हरिराम शर्मा, चौधरी दीवान चंद, नंद लाल, विश्वेश्वर लाल आदि की रिहाई हुई, परंतु कांगड़ा, कुल्लू, शिमला और अन्य स्थानों में कांग्रेस के जलसे-जुलूस होते रहे।


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