रस्म अदायगी तक सीमित पौधा रोपण

By: Jul 5th, 2018 12:05 am

डा. चिरंजीत परमार

लेखक, मंडी के वरिष्ठ फल वैज्ञानिक हैं

आए दिन हम अखबारों में विभिन्न सरकारी विभाग, जैसे-वन विभाग, आयुष विभाग और बहुत सी कतिपय समाजसेवी संस्थाओं द्वारा आयोजित किए गए पौधारोपण समारोहों के बारे में भी पढ़ते रहते हैं। इनके हिसाब से तो आज पूरे देश में पेड़ ही पेड़ होने चाहिए थे, पर कहां हैं वे सब पेड़? इन कार्यक्रमों का अब तक तो कोई लाभ नहीं हुआ है और शायद न कभी होगा…

बरसात का मौसम शुरू हो गया है। सदापर्णी किस्म के पौधों को लगाने का यह सबसे उपयुक्त समय होता है, इसलिए नए पेड़ रोपने का काम शुरू हो गया है। इसके साथ ही विभिन्न सरकारी विभाग और कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं जो अपनी ओर से पौधारोपण कार्य करवाती हैं, भी सक्रिय हो गई हैं। आए दिन हम अखबारों में विभिन्न सरकारी विभाग, जैसे-वन विभाग, आयुष विभाग और बहुत सी कतिपय समाजसेवी संस्थाओं द्वारा आयोजित किए गए पौधारोपण समारोहों के बारे में भी पढ़ते रहते हैं। पूरे देश में ऐसे आयोजनों की संख्या लाखों में हो जाती है और यह कार्यक्रम देश में आधी सदी से अधिक समय से चल रहा है। सरकारी कार्यक्रम को वन महोत्सव का नाम दिया गया है और इसे अधिकांश प्रांतों में वन विभाग आयोजित करता है। वनमहोत्सव को प्रतिवर्ष देश के हरेक जिले में एक समारोह की तरह मनाया जाता है और इस काम पर काफी खर्च भी हो जाता है, क्योंकि समारोह में एक ‘मुख्यातिथि’ होता है। मुख्यातिथि के स्टेटस के हिसाब से लोग होते हैं, सरकारी कर्मचारी होते हैं, शामियाने आदि लगाए जाते हैं और भोजन नहीं, तो समुचित चाय-पानी की व्यवस्था तो होती ही है। पेड़ लगाने के बाद भाषण होते हैं, खाना-पीना होता है और इस प्रकार समारोह समाप्त हो जाता है।  अगले दिन के अखबारों में चित्रों सहित समारोह की खबर भी छप जाती है।

पर क्या आप जानते हैं उसके बाद क्या होता है? उसके बाद उस स्थान पर न तो मुख्य अतिथि, न ही वे लोग व सरकारी अधिकारी, जिन्होंने वहां समारोह के दौरान एक-दो पेड़ लगाने का शुभ काम भी किया था, दोबारा जाते हैं। शायद वन विभाग का कोई मजदूर के दर्जे का कर्मचारी कभी-कभार चक्कर मार जाता होगा और नहीं भी। नए लगे पेड़ों को शुरू में अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है। उनको जंगली या आवारा जानवरों से बचाना पड़ता है। खासकर बरसात के मौसम में इन पेड़ों के आसपास 15-20 दिन में खुदाई भी करनी पड़ती है, ताकि अनावश्यक खरपतवार उनका विकास न रोक दे। बरसात के मौसम के बाद कम से कम एक साल तक उनकी सिंचाई भी करनी पड़ती है। तभी पेड़ जिंदा रह सकते हैं, परंतु यह सब कोई नहीं करता है। पौधारोपण समारोह के बाद सब उन पेड़ों को भूल जाते हैं, परिणाम यह होता है कि इन समारोहों में लगे अधिकांश पेड़ महीने-दो महीने में ही मर जाते हैं। मैं मंडी में रोटरी क्लब से जुड़ा हूं। रोटरी क्लब भी कई बार मेरे शहर मंडी और मंडी के आसपास ऐसे पौधारोपण समारोह आयोजित करता रहा है, पर परिणाम वही हुआ है, जो ऐसे समारोहों का हमेशा से होता आया है यानी आज मुश्किल से कोई पेड़ बचा हुआ दिखता है। इस तरह के पौधारोपण समारोहों का क्या लाभ है? क्या यह धन की बर्बादी नहीं है? पूरे भारतवर्ष में पिछले 6-7 दशकों से वन महोत्सव का कार्यक्रम चल रहा है, जिसके अंतर्गत आज तक अरबों-खरबों पौधे लगाए जा चुके हैं, परंतु वे पौधे कहां हैं?

इनके हिसाब से तो आज पूरे देश में पेड़ ही पेड़ होने चाहिए थे, पर कहां हैं वे सब पेड़? आश्चर्य की बात तो यह है कि अब इस बात को सरकार और जनता में लगभग सभी जान गए हैं कि इन कार्यक्रमों का अब तक तो कोई लाभ नहीं हुआ है और शायद न कभी होगा। जब तक इनके क्रियान्वयन में पूर्ण बदलाव नहीं किया जाएगा, तब तक ऐसे समारोह आयोजित करने का कोई लाभ नहीं होगा। यह जानते हुए भी, इन कार्यक्रमों की रस्म अदायगी जारी है। पिछले दिनों हिमाचल में इसी तरह का एक और तुगलकी कार्यक्रम चला। पूरे प्रदेश में लोगों को मुफ्त मेडीसनल प्लांट बांटे गए। वैसे तो मेडीसनल प्लांट की कोइ पक्की परिभाषा नहीं है, क्योंकि पौधों के ऊपर लिखी गईं भारतीय पुस्तकों में लगभग प्रत्येक पौधे का कोई न कोई औषधीय गुण बताया गया है। फिर भी हम उस पौधे को आधिकारिक रूप से मेडीसनल प्लांट कह सकते हैं, जो उद्योग में दवा बनाने के काम आता हो। इस कार्यक्रम के अंतर्गत भी पौधों का चुनाव और बंटवारा कोई सुनियोजित ढंग से नहीं किया गया। मुफ्त में पेड़ मिल रहे थे, सो जिसके हाथ जो लगा उसने वही ले लिया, परंतु बाद में लगाया या नहीं। जो पेड़ लगाए गए, वे बचे या मर गए यह किसी को मालूम नहीं है, तो ऐसे कार्यक्रम का क्या लाभ हुआ? नए पेड़ लगने चाहिए, बल्कि इस काम की देश में आज बहुत आवश्यकता है, परंतु यह काम सुनियोजित ढंग से विशेषज्ञों की राय के अनुसार होना चाहिए। किस स्थान पर किस किस्म के पौधे की आवश्यकता है, यह विशेषज्ञों द्वारा तय किया जाना चाहिए और उन जातियों के पौधे पहले नर्सरियों में तैयार किए जाने चाहिए। यह नहीं कि जुलाई के महीने में जो भी पेड़ कहीं से मिल गए, वही रोप दिए।

सबसे जरूरी बात जो सबके ध्यान में होनी चाहिए, वह यह है कि पेड़ लगाने का काम पेड़ को रोपने भर का नहीं है, असली जिम्मेदारी तो उसके बाद शुरू होती है। यानी उस लगाए गए पेड़ को जिंदा भी रखना है। पौधारोपण कार्यक्रमों के आयोजक इस बात को अवश्य सुनिश्चित करें कि लगाने के बाद इन पेड़ों की देखभाल कैसे होगी। नए पेड़ की कम से कम दो साल तक पूरी देखभाल करनी पड़ती है, तभी वह जिंदा रहेगा। इस काम के लिए मानव तथा अन्य संबद्ध संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिसकी व्यवस्था समुचित कार्यक्रम शुरू किए जाने से पहले ही की जानी चाहिए, ताकि ऐसे समारोह आयोजनों से सही में लाभ भी मिल सके।

 


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