सर्वोच्च अदालत सुनेगी अर्द्धसैनिकों की आवाज
नई दिल्ली— देश के सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को हिमाचल सहित देश के सभी उन अर्द्धसैनिकों (एसएसबी, सीआरपीएफ, बीएसएफ ,असम रायफल) की अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है, जिन्हें दिल्ली के उच्च न्यायालय ने 16 अगस्त, 2017 को जारीआदेश के तहत एसीपी (एश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन) स्कीम का लाभ देने से इनकार कर दिया था, जो शैक्षणिक योग्यता का मापदंड पूरा नहीं कर रहे थे। शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ के माननीय न्यायधीश मदन बी लोकुर और न्यायधीश दीपक गुप्ता के सामने रविंद्र सिंह किश्तवाडि़या सीडी, जीडी एसएसबी बनाम भारत सरकार की एसएलपी नंबर 44727, 2017 की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण व विनोद शर्मा ने मामले की पैरवी करते हुए बताया कि सेवानिवृत्त अर्द्धसैनिक बलों के साथ विभाग का ऐसा भेदभाव ठीक नहीं है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। इन दलीलों को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने भारत सरकार को आठ सप्ताह में इसका जवाब देने का नोटिस जारी किया है। अधिवक्ता विनोद शर्मा ने बताया कि यदि इस मामले की अंतिम सुनवाई में भी निर्णय देश के इन अर्द्धसैनिक बलों के पक्ष में जाता है तो इससे देश के हजारों जवान लाभान्वित होंगे। विदित रहे कि हिमाचल प्रदेश के जिला चंबा से रविंद्र सिंह किश्तवाडि़या, जिला कांगड़ा से रण सिंह, मंडी से नरोत्तम राम व हरियाणा के राम कुमार सिंह सहित अन्य अर्द्धसैनिक बलों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता विनोद शर्मा के माध्यम से यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि हिमाचल प्रदेश और देश के अन्य राज्य में हजारों अर्द्धसैनिक बल, जो भर्ती के समय मैट्रिक पास नहीं थे, लेकिन अन्य सभी योग्यताओं को पूर्ण करते हुए व एसीपी का लाभ लेने के हकदार थे। भारत सरकार ने नौ अगस्त, 1999 को अपने उन कर्मचारियों को आर्थिक लाभ देने के लिए एसीपी स्कीम बनाई थी, जो कर्मचारी नियमित रूप से 12 वर्ष की अवधि पूरी करता है, वह पहली पदोन्नति का हकदार होगा, जैसे नायक से हवलदार। अगले 12 वर्ष पूर्ण करने के बाद उन्हें दूसरी पदोन्नति मिलेगी जैसे हवलदार से सब इंस्पेक्टर। सरकार का इस स्कीम को लाने का मकसद यह था कि बहुत सारे अर्द्धसैनिक बल सिपाही के रूप में भर्ती होते थे और 25 से 30 वर्ष की नियमित सेवाओं के बाद सिपाही ही सेवानिवृत्त हो जाते थे, लेकिन विभाग में जो लोग मैट्रिक पास नहीं थे, उनको शैक्षणिक योग्यता पूर्ण न होने के कारण इस स्कीम से वंचित कर दिया गया। इस आदेश को जब इन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी तो उच्च न्यायलय ने भी विभाग के आदेश पर ही मुहर लगा दी थी। बहरहाल सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार अब भारत सरकार को आठ सप्ताह में इसका जवाब देना होगा।
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