सामाजिक राहों पर व्यापारी वर्ग

By: Jul 27th, 2018 12:05 am

अमूमन व्यापारी वर्ग अपने गिले शिकवों को पी जाता है या संयम के साथ अपने ही आक्रोश से किनारा कर लेता है, लेकिन हिमाचल की कुछ घटनाओं ने इस वर्ग को भी मोर्चे पर लाकर खड़ा कर दिया है। बद्दी और कुल्लू के व्यापार मंडल अगर बुधवार के दिन सड़कों पर रहे, तो आहत वर्ग की बात सुनी जानी चाहिए। बीबीएन में बिगड़ती कानून और कुल्लू अस्पताल की व्यवस्थाओं के खिलाफ अगर व्यापारी वर्ग सड़क पर आया, तो यह समाज का एक नया फैसला है। यानी सरकार और समाज के बीच व्यापारी वर्ग भी मुखिया हो सकता है, इसे साबित करते हुए प्रश्न पूछे जा रहे हैं। दोनों मसलों का हल इनसानी सुरक्षा से है। बीबीएन के हालात अनियंत्रित हैं और बिगड़ती कानून-व्यवस्था के सामने आर्थिक सफलता को मापना अति कठिन हो रहा है। अब तक की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि हिमाचल का यह हिस्सा, आपराधिक प्रवृत्तियों का अड्डा बन चुका है। क्या प्रदेश की आर्थिक राजधानी का यह स्वरूप हो सकता है कि हर दिशा से चोर-उचक्के और असामाजिक तत्त्व यहां घुसपैठ करने को स्वतंत्र रहें। दरअसल सारी व्यवस्था को समझे बिना बीबीएन में हिमाचली प्रशासन की क्षमता हर बार दुर्बल ही साबित हो रही है। पुलिस भी खिलौने की तरह उतनी ही चाबी अपने कर्त्तव्य में भरती है, जो केवल तमाशा कर सके, वरना किसी की क्या मजाल कि दिन दहाड़े लूटपाट करे। दूसरे यह भी कि हिमाचल के सीमावर्ती इलाकों में पुलिस प्रबंधन के तौर तरीके तथा सतर्कता के पैमाने बदलने पड़ेंगे। इसके लिए सामान्य प्रणाली पंगु हो चुकी है। एक कोशिश कांगड़ा पुलिस ने शुरू की है और जहां पड़ोसी पंजाब राज्य की पुलिस के साथ संयुक्त अभियान चलाकर नशे के कारोबार व अपराध पर कुछ शिकंजा कसना शुरू हुआ है। इतना ही नहीं, बीबीएन के कारोबारी माहौल के खिलाफ जो माफिया पनपा है, उसे वर्षों से सियासी संरक्षण प्राप्त है। ऐसे में उद्योगपतियों व कारोबारियों के अशांत मसलों के बजाय, मामलों को केवल पुलिसिया नजरिए से ही समझा जाता है। व्यापारी वर्ग को हिमाचल निर्माण की इकाई के रूप में देखें, तो इसके अधिकारों की गुंजाइश में कानून की व्यवस्था ही सर्वोपरि है। हालांकि इस वर्ग के मसले विभागीय विसंगतियों तथा तानाशाहीपूर्ण रवैयों के कारण अधिक हैं, फिर भी अब शिकायत यह है कि सामाजिक तानाबाना सही रहे। वह बद्दी में कानून व्यवस्था के लिए लड़ रहा है, तो कुल्लू अस्पताल के अपर्याप्त स्टाफ के लिए आवाज उठा रहा है। यानी अपनी प्राथमिकताओं की जगह दो व्यापार मंडल इसलिए आगे आए, ताकि सामाजिक राहें सुरक्षित व सलामत रहें। व्यापार मंडल के आचरण में विचारधारा व सियासी तरफदारी से कहीं अधिक अगर मुद्दों के प्रति संवेदना जाहिर हो रही है, तो यह अपने आप में एक नई दिशा है। प्रदेश के अन्य व्यापार मंडल भी बद्दी-कुल्लू की राह पर चलते हुए, जनता के मसलों का प्रतिनिधित्व करेंगे तो नागरिक समाज का ओहदा अधिक प्रासंगिक तथा शक्तिशाली होगा। खासतौर पर स्वच्छता, आवारा पशुओं तथा बंदरों से निजात दिलाने के मसलों पर व्यापार मंडलों की भूमिका विशाल हो सकती है। प्रदेश में पर्यटन की छवि को सुधारने के लिए व्यापार मंडल आगे आएं तो स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी भी बढ़ेगी। बेशक हिमाचल व्यापार मंडल के प्रादेशिक संदर्भ, अपने व्यापारिक हितों से अटे रहते हैं, फिर भी अब इसे सामाजिक संगठन के रूप में अपने आदर्श ऊंचे करते हुए, प्रदेश की आर्थिक मांग में भागीदारी बढ़ानी चाहिए। उदाहरण के लिए हिमाचल के बाजारों की रौनक के साथ जनता की सुविधाओं के सवाल अनसुलझे रहे हैं। ऐसे में हर व्यापार मंडल सरकार के साथ मिलकर पीपीपी मोड पर कुछ परियोजनाएं चला सकता है। शहरों में महापार्किंग से व्यापारिक उद्देश्य संपन्न होंगे, अतः ऐसी परियोजनाएं बनाकर बाजारों की तरक्की संभव है। अब वक्त आ चुका है जब निजी क्षेत्र की अमानत बनकर सरकारी नीतियां बनें तथा सहयोग की परिपाटी के तहत जनता के विभिन्न वर्ग अपनी भूमिका अदा करें। जनता के प्रश्नों के बीच शामिल होकर बीबीएन तथा कुल्लू के व्यापार मंडलों ने पूरे प्रदेश के व्यापारियों को गल्ले से बाहर निकल हल्ला बोलने की जरूरत भी समझाई है।


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