हाई पावर कमेटी को ठेंगा दिखा लगा दिए डस्टबिन

By: Jul 9th, 2018 12:20 am

धर्मशाला में मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव की नाराजगी के बाद भी स्थापना

शिमला— राज्य सरकार की हाई पावर कमेटी के विरोध के बावजूद स्मार्ट सिटी धर्मशाला में स्थापित अंडर ग्राउंड डस्टबिन का मामला उलझ गया है। वीरभद्र सरकार के तत्कालीन दो वरिष्ठ नौकरशाहों मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव ने इन डस्टबीन  की तकनीक और गुणवत्ता पर सवाल उठाए थे। इसके चलते हाईपावर कमेटी ने भूमिगत कूड़दानों की खरीद का प्रस्ताव खारिज कर दिया था। बावजूद इसके स्मार्ट सिटी में डस्टबिन स्थापित करने के लिए सभी नियम ताक पर रख दिए गए और इसकी खरीद के लिए एक अन्य कमेटी गठित कर इसकी औपचारिक अनुमति ली गई। इसी बीच सचिवालय से डस्टबिन खरीद की विजिलेंस जांच की फाइल गुम होने के मामले से खूब हड़कंप मचा है। रविवार को छुट्टी का दिन होने के बावजूद यह मामला सोशल मीडिया पर सुर्खियों पर रहा है। अब सवाल उठ रहे हैं कि मुख्य सचिव कार्यालय से भेजी गई विजिलेंस जांच की फाइल किसने गायब की? जाहिर है कि स्मार्ट सिटी धर्मशाला में स्थापित अंडरग्राउंड डस्टबिन घोटाले की फाइल सचिवालय से गायब हो गई है। राज्य सरकार ने इस मामले में स्टेट विजिलेंस एंड एंटी क्रप्शन ब्यूरो को जांच की सिफारिश की है। मुख्य सचिव कार्यालय से भेजी गई यह फाइल बीच रास्ते में सचिवालय में उड़न छू हो गई है। अगस्त 2015 में पारित इस निर्णय से लेकर डस्टबिन की स्थापना तक सारा मामला विवादों से घिरा रहा है। स्मार्ट सिटी धर्मशाला में कुल 140 अंडर ग्राउंड डस्टबीन स्थापित करने के लिए टेंडर प्रक्रिया आयोजित की गई है। इसमें अभी तक 92 डस्टबिन स्थापित हुए हैं। इस कड़ी में धर्मशाला शहर में स्वच्छ भारत मिशन के तहत 70 अंडरग्राउंड डस्टबिन स्थापित किए गए थे। इसके अलावा 22 डस्टबिन स्मार्ट सिटी के फंड से लगाए गए हैं। डस्टबिन की खरीद, इनकी राशि, गुणवत्ता और तकनीक सभी जांच के घेरे में है।

हर सौ मीटर के बाद लगने थे तीन डस्टबिन

प्रोजेक्ट में दिए गए लॉलीपॉप के अनुसार धर्मशाला शहर में 100 मीटर की दूरी पर तीन डस्टबिन एक साथ स्थापित होने थे।  इन अलग-अलग डस्टबिन में जलाने वाला कूड़ा, सड़ने वाला कूड़ा तथा कंकरीट कचरा अलग-अलग छन कर बाहर आना था। बावजूद इसके प्रोजेक्ट के मूल उद्देश्यों को ठेंगा दिखाकर डस्टबिन मर्जी से स्थापित कर दिए।

दृष्टिपत्र में था मामला

मामला भाजपा के दृष्टिपत्र का भी प्रमुख हिस्सा रहा है। इसी कारण प्रदेश की जयराम सरकार ने सत्ता संभालने के बाद इस मामले में जांच का निर्णय लिया था। इस आधार पर 18 जनवरी को शहरी विकास विभाग में इस मामले में राज्य सरकार को जांच की सिफारिश की थी।

विदेशी कंपनी को लाभ

जर्मन तकनीक के बताए गए डस्टबिन की नीदरलैंड से खरीदने पर भी कई प्रकार के गड़बड़झाले के खुलासे हो रहे हैं। आरोप है कि विदेशी कंपनी को लाभ देने के लिए डस्टबिन की खरीद नीदरलैंड से की गई है। ऐसे में अब जांच के विषय बढ़ गए हैं।

सस्ते डस्टबिन स्थापित किए

टेंडर प्रक्रिया के अनुसार शहर में लेवलिंग सेंसर के महंगे अंडरग्राउंड डस्टबिन स्थापित होने थे। बावजूद इसके मौके पर सस्ते दरों वाले एंपटिंग सेंसर के डस्टबिन स्थापित कर दिए। इस भयंकर चूक के बावजूद संबंधित फर्म को तीन करोड़ से ज्यादा पेमेंट कर दी गई।


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