हीरा चंद ने सुधारा राज्य का भू-राजस्व

By: Jul 4th, 2018 12:05 am

हीरा चंद ने अपने वजीर मियां भंगी की सहायता से राज्य की माली स्थिति को सुधारा। अब तक लोगों से भू-राजस्व अन्न के रूप में वसूल होता रहा। उसने भू-राजस्व विभाग को पुनः संगठित किया। यह फैसला किया कि भविष्य में लोगों से मालगुजारी आधी नकदी के रूप में और आधी अन्न के रूप में वसूल की जाए…

उन्होंने सतलुज के दाएं तट वाले भाग को, जो सन् 1809 से सिखों  के अधीन चला गया था, कहलूर को लोटा दिया। अंग्रेजों ने उस पर लिया जाने वाला राजकर भी समाप्त कर दिया। केवल एक शर्त थी कि राजा अपने राज्य में राहदारी-कर समाप्त कर दे। राजा जगत चंद का एक ही पुत्र ‘नरपत चंद’ था। उसकी सन् 1844 में मृत्यु हो गई थी। इसलिए उसने भारत सरकार से परामर्श करके राजपाट त्याग दिया और अपने पौत्र हीरा चंद को गद्दी पर बैठाया। इसके बाद वह वृंदावन चला गया, जहां उसकी 1857 ई. में मृत्यु हो गई। राजा हीरा चंद (1850 ई.) : जब हीरा चंद गद्दी पर बैठा तो उस समय राज्य का वजीर राजा जगत चंद का छोटा भाई मियां भंगी पुरगानिया था। वह व्यक्ति बड़ा ही चतुर और योग्य प्रशासक था। राज्य का सारा खजाना खड़क चंद की रानियां अपने साथ ले गई थीं और बीच में लड़ाई-झगड़े भी बहुत होते रहे। इसलिए जब हीरा चंद गद्दी पर बैठा तो, खजाना बिलकुल खाली था। हीरा चंद ने अपने वजीर मियां भंगी की सहायता से राज्य की माली स्थिति को सुधारा। अब तक लोगों से भू-राजस्व अन्न के रूप में वसूल होता रहा। उसने भू-राजस्व विभाग को पुनः संगठित किया। यह फैसला किया कि भविष्य में लोगों से मालगुजारी आधी नकदी के रूप में और आधी अन्न के रूप में वसूल की जाए। इससे राज्य की आर्थिक स्थिति सुधर गई। सार्वजनिक कामों की ओर अधिक ध्यान दिया गया। तालाब बनाए गए। मुख्य मार्गों पर छायादार पेड़ लगाए गए, यात्रियों के आराम के लिए पड़ावों (धर्मशाला) का प्रबंध किया गया। कई स्थानों पर भवनों का निर्माण करवाया गया। 1857 ई. के संग्राम में राजा हीरा चंद ने 500 सिपाहियों को भेजकर अंग्रेजों की सहायता की थी। इस सेवा के बदले में सरकार ने राजा को ‘ग्यारह तोपों की सलामी’ और ‘खिल्लत’ से सम्मानित किया। कहलूर के क्षेत्र कोटधार पर सिखों ने राजा महान चंद के समय में 1819 ई. में अधिकार कर लिया था और इसमें से बसेह और बछरेटू के परगने लाहौर दरबार ने सरदार लहना सिंह मजीठिया को जागीर के तौर पर दे दिए थे। सरदार लहना सिंह के मरने पर अंग्रेजी सरकार ने ये परगने कांगड़ा जिला में मिला दिए थे। राजा ने इसके बारे में सरकार से लिखा-पढ़ी की। इन क्षेत्रों को वापस लेने के लिए राजा ने 1857 ई. में पेशकश की कि राज्य इस क्षेत्र के बदले में सरकार को एक लाख साठ हजार रुपए नजराना के तौर पर या आठ हजार रुपए वार्षिक राजकर के रूप में देने को तैयार है। मामला विलायत तक गया। अंत में 1867 ई. को ये दोनों परगने कहलूर को आठ हजार रुपए वार्षिक राजकर पर लौटा दिए गए। सन् 1877 ई. में दिल्ली में महान घोषणा दरबार हुआ। उस दरबार में राजा हीरा चंद को ग्यारह तोपों की सलामी और मेडल मिले। राजा को एक सनद भी दी गई, जिसके द्वारा अगर राजा के कोई संतान न हो तो वह अपने किसी संबंधी को राज्य का हकदार बना सकता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App